जीरो बजट प्राकृतिक खेती (Zero Budget Natural Farming)
जीरो बजट प्राकृतिक खेती करने में किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ती है | जीरोबजट प्राकृतिक खेती के तहत किसान केवल उनके द्वारा बनाई गई खाद और अन्य चीजों का प्रयोग खेती के दौरान करते हैं |
इस तकनीक के तहत खेती करने के लिए किसानों को बाजार से किसी भी प्रकार के केमिकल्स को खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है. जिसके कारण जीरोबजट प्राकृतिक खेती करने के दौरान शून्य रुपए का खर्चा आता है और इसलिए इस खेती को जीरोबजट प्राकृतिक खेती का नाम दिया गया है |
जीरोबजट प्राकृतिक खेती में मूल रूप से पारंपरिक तरीके, कम सिंचाई एवं प्राकृतिक खाद का प्रयोग होता है। राजस्थान में इस योजना का प्रारम्भ बांसवाड़ा, टोंक एवं सिरोही जिलों की 36 ग्राम पंचायतों के 20 हजार किसानों को शामिल करते हुए किया जाएगा। योजना में कार्यक्रम के प्रति जागरूकता लाने, प्राकृतिक खाद-बीज तैयार करने, प्रशिक्षण । एवं एक्सपोजर विजिट सम्बन्धी कार्य किए जाएंगे। इस हेतु 10 करोड़ का व्यय किया जाएगा।
भारत में जीरो बजट प्राकृतिक खेती की शुरुआत:
भारत में इस खेती की शुरूआत सबसे पहले दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में हुई थी | इस खेती की शुरूआत कर्नाटक राज्य में सुभाष पालेकर ने स्टेट फार्मर्स एसोसिएशन कर्नाटक राज्य रैथा संघ (KRRS), के साथ मिलकर की थी | इस वक्त कनार्टक के करीब एक लाख किसानों ने इस खेती की तकनीक को अपना लिया है |
जीरोबजट प्राकृतिक खेती के फायदे:
- कम लागत लगती है |
- जमीन के लिए फायदेमंद |
- मुनाफा ज्यादा होता है|
- अच्छी पैदावार होती है |
जीरोबजट प्राकृतिक खेती के चार स्तंभ:
- जीवामृत / जीवनमूर्ति
- बीजामृत / बीजामूर्ति
- आच्छादन / मल्चिंग
- व्हापासा / मॉइस्चर