विजय सिंह पथिक

बिजौलिया आंदोलन का नेतृत्वकर्ता विजय सिंह पथिक का मूल नाम भूपसिंह था। उनका जन्म बुलन्दशहर जिले के ग्राम गुठावली कलाँ के एक गुर्जर परिवार में हुआ था। उनके दादा इन्द्र सिंह बुलन्दशहर स्थित मालागढ़ रियासत के दीवान (प्रधानमंत्री) थे जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की थी। बिजौलिया आने से पूर्व वे एक क्रांतिकारी थे, वे रास बिहारी बोस के अनुयायी थे। रास बिहारी बोस ने देश व्यापी क्रान्ति के लिये उन्हें राजस्थान भेजा। किन्तु क्रान्ति असफल होने के कारण वे पकडे गये और टाटगढ़ की जेल में बंद कर दिये गये। छूटने के बाद वे चित्तौड़ के ओछड़ी गाँव में बस गए।

उन्होंने ही बिजौलिया आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया। कृषकों की समस्याओं का उन्होंने ‘प्रताप’ समाचार पत्र के माध्यम से अखिल भारतीय स्तर पर प्रचारित किया। 1919 में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की और 1920 में उसे अजमेर स्थानान्तरित कर दिया। “नवीन राजस्थान” समाचार पत्र का प्रकाशन भी अजमेर से शुरू हुआ। 1922 में पथिक जी के प्रयासों से कृषकों व प्रशासन के बीच समझौता हुआ। बिजौलिया का आंदोलन जब बेगूं में फैला तो पथिक जी ने वहां के आन्दोलन की भी बागडोर संभाली और उन्हें तीन साल के लिये कारावास की सजा दे दी गई। कारावास से छूटने के बाद वे निर्वासित कर दिए गए। 1927 में जब बिजौलिया में माल भूमि छोड़ने का प्रश्न उठा तो पथिक जी ने कृषकों को भूमि छोड़ने की सलाह दी। वे सम्भवतः बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों को भांप नहीं पाये। भूमि जब्त होने पर किसानों का मनोबल टूटा। पथिक जी के हाथों से नेतृत्व निकल कर अखिल भारतीय स्तर पर स्थानान्तरित हो गया।

विजय सिंह पथिक: कवि, लेखक और पत्रकार

पथिक जी क्रांतिकारी व सत्याग्रही होने के अलावा कवि, लेखक और पत्रकार भी थे। अजमेर से उन्होंने नव संदेश और राजस्थान संदेश के नाम से हिन्दी के अखबार भी निकाले। तरुण राजस्थान नाम के एक हिन्दी साप्ताहिक में वे “राष्ट्रीय पथिक” के नाम से अपने विचार भी व्यक्त किया करते थे। पूरे राजस्थान में वे राष्ट्रीय पथिक के नाम से अधिक लोकप्रिय हुए। उनकी कुछ पुस्तकें इस प्रकार हैं:

  • अजय मेरु (उपन्यास),
  • पथिक प्रमोद (कहानी संग्रह),
  • पथिकजी के जेल के पत्र एवं
  • पथिक की कविताओं का संग्रह

विजय सिंह पथिक:

  • 1915 के फ़िरोज़पुर षड्यन्त्र के बाद उन्होंने अपना असली नाम भूपसिंह गुर्जर से बदल कर विजय सिंह पथिक रख लिया था।
  • 1919 में अमृतसर कांग्रेस में पथिक जी के प्रयत्न से बाल गंगाधर तिलक ने बिजौलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा।
  • 1920 में पथिक जी के प्रयत्नों से अजमेर में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना हुई।
  • विजय सिंह पथिक की लोकप्रिय पंक्तियाँ : – “यश वैभव सुख की चाह नहीं, परवाह नहीं जीवन न रहे; यदि इच्छा है तो यह है-जग में स्वेच्छाचार दमन न रहे।”
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