श्रीलाल जोशी

Shri Lal Joshi

राजस्थान की लोक चित्रकला शैली फड़ की पहचान श्रीलाल जोशी के निधन के साथ ही फड परम्परा का सर्वाधिक रौशन सितारा कला जगत से लुप्त हो गया। फड़ कला के साथ राजस्थान के श्रीलाल जोशी का नाम ऐसे जुड़ा हआ था कि भारत ही नहीं विश्वभर में वे फड़ के पर्याय बन चुके थे। न केवल भारत वरन दनिया की प्रमुख कलादीर्घाओं के साथ निजी कला संग्रहों में श्रीलाल जोशी द्वारा अंकित फड़ कृतियां आज भी जीवन्त हैं और राजस्थान के इस कलाकार को अमर बनाए हुए हैं।

शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि भीलवाड़ा जिले के एक छोटे से स्थान शाहपुरा में जन्मा यह सामान्य बालक फड़ को राजस्थान की गांव-ढाणियों से निकालकर एक वैश्विक पहचान देगा। पिता से मिली फड़ परम्परा की सौगात को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने का श्रेय श्रीलाल जोशी को जाता है। यदि इन्हें फड़ परम्परा का भीष्म पितामह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने फड़ की समकालीन शैली विकसित की। उन्होंने अनेक नई तकनीकों की खोज की और मौलिक तथा सार्थक रचनाओं को चित्रित किया। उन्होंने फडके साथ भित्ति चित्रों के लिए भी प्रसिद्धि पाई। वह प्राचीन फ्रेस्को शैली में भित्ति चित्रण करते थे। हाथी, घोड़े, शेर और सिर पर घड़ा लिए हुए महिलाएं उनके चित्रों के सामान्य रूपांकन है।

5 मार्च, 1931 को रामचन्द्र जोशी के घर में जन्मे इस पुत्र को पिता ने मात्र 13 वर्ष की अल्प आयु में इस परम्परा की जिम्मेदारी सौंपी दी थी। कला की साधना करते हए इन्हें कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हुए। कला का सर्वश्रेष्ठ नेशनल अवार्ड काफी देरी से यानी 1984 में मिला लेकिन नाम और यश हमेशा इनके साथी रहे। भारत सरकार ने सन् 2006 में इन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया। सन् 2007 में इन्हें शिल्पगुरु की उपाधि प्रदान की गई। भारत सरकार ने उनकी प्रसिद्ध रचना श्री देवनारायण की फड़ के चित्रण पर 5 रुपये का डाक टिकट भी जारी किया है।

उनकी कला यात्रा के प्रत्यक्षदर्शियों में भारत सहित बीस से अधिक देश शामिल हैं जहां इनकी कलाकतियां प्रदर्शित हो चकी हैं। नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला संग्रहालय, राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय और संस्कृति संग्रहालय, हरे कृष्ण संग्रहालय, कुरुक्षेत्र, भारतीय लोक कला मंडल – उदयपुर, जवाहर कला केन्द्र – जयपुर के साथ विदेशों में लिन्डेन संग्रहालय – जर्मनी, लेफोरेट संग्रहालय – जापान, अलबर्ट संग्रहालय – लंदन, लंदेस संग्रहालय – ऑस्ट्रिया, स्मिथ सोनियन संग्रहालय-वाशिंगटन, सिरैक्यूज़ विश्वविद्यालय – संयुक्त राज्य अमरीका, एतेनोग्रफिस्का संग्रहालय – स्टोल्खोल्म और सिंगापुर, जर्मनी, नीदरलैंड और फ्रांस के संग्रहालयों को उनकी कृतियां संग्रहित करने का गौरव प्राप्त है। श्रीलाल जोशी के देहान्त के बाद इन संग्रहित कृतियों की कीमतों में खासा उछाल आया है।

श्रीलाल जोशी के चित्रांकन पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणि कौल के साथ ललित कला अकादमी, दूरदर्शन, बीबीसी व जे.सी. मिलर वृत्तचित्र बना चुके हैं।

जीवन पर्यन्त कला की साधना करने वाले श्रीलाल जोशी को सम्मानित करने के अन्तिम अवसर का गौरव प्रदेश की राजधानी, जयपुर को प्राप्त हुआ। बीते दिनों जवाहर कला केन्द्र में सम्पन्न हुए आर्ट फिएस्टा के दौरान लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से इन्हें सम्मानित किया गया __ था। इसी अवसर पर लेखक की अंतिम भेंट श्रीलाल जोशी से हुई और फड़ के वर्तमान व भविष्य को लेकर अनेक बातें भी हई। तब यह आभास तक नहीं था कि हर भेंट में आत्मीयता के नए रंग घोलने वाले राजस्थान के फड़ सम्राट श्रीलाल जोशी से यह भेंट अन्तिम होगी।

आज वे हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु आज के समकालीन चित्रण को श्रीलाल जोशी की दूरदर्शिता ने कई वर्ष पूर्व ही भांप लिया था। उन्होंने राजस्थान के धर्मिक व ऐतिहासिक प्रसंगों के आधार पर पारम्परिक कला के लिए नए विषयों के साथ छोटे आकार की फड़ को चित्रित करना आरम्भ किया था। यह नवाचार कला प्रेमियों के लिये कीमत व संग्रह के रूप में सुविधाजनक हो गया। अपनी इसी शैली व तकनीक की विरासत वे अपने दोनों पुत्रों कल्याण जोशी और गोपाल जोशी को सौंप कर गए हैं। सुखद यह है कि अपनी पिता द्वारा सौंपी विरासत को दोनों पुत्र कुशलता से आगे बढ़ा रहे हैं।

आभार:

  • आलेख व छाया : राहल सेन, जयपुर ।

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