राजस्थान में यवन-शुंग-कुषाण काल

मौर्यों के अवसान के बाद शुंग वंश का उत्थान हुआ था। पंतजलि के महाभाष्य से ज्ञात होता है कि शुंगों ने यवनों से माध्यमिका की रक्षा की थी। यवन शासक मिनाण्डर ने 150 ई.पू. में माध्यमिका (नगरी) को जीता था। राजस्थान में नलियासर, बैराठ व नगरी से यूनानी राजाओं के 2 सिक्के मिले। कनिष्क के शिलालेखानुसार राजस्थान के पूर्वी भागों में उसका राज्य था। ई. पू. प्रथम शताब्दी में पश्चिमी राजस्थान पर सीथियनों के आक्रमण आरंभ हुए। ईसा से लगभग 90 वर्ष पहले राजस्थान से यूनानी शासकों का शासन समाप्त हो गया तथा सीथियनों ने अपने पांव जमा लिये।

कुषाण, पह्लव तथा शकों को सम्मिलित रूप से सीथियन कहा जाता है।

कुषाण शासकों के सम्पर्क ने राजस्थान के पत्थर और मृण्मय मूर्ति-कला को एक नवीन मोड़ दिया जिसके नमूने अजमेर के नाद की शिव प्रतिमा, साँभर का स्त्री धड़ अश्व तथा अजामुख ह्यग्रीव या अग्नि की मूर्ति अपने आप में कला के अद्वितीय नमूने है। 150 ई. के सुदर्शन झील अभिलेख से ज्ञात हुआ है कि कुषाणों का राज्य मरुप्रदेश से साबरमती के आस पास था।

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