राजस्थान के पशुधन क्षेत्र की प्रमुख चुनोतियाँ

राजस्थान के पशुधन क्षेत्र की प्रमुख चुनोतियाँ

राज्य में पशुधन क्षेत्र निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिस पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है ताकि क्षेत्र को क्षमता अनुसार बढ़ने में सक्षम किया जा सके।

पशु खाद्य और चारे की कमी

  • पशुधन की बढ़ती जनसंख्या से, पशुखाद्य और चारे की आवश्यकता और उपलब्धता के बीच की खाई बढ़ रही है, जिसका मूल कारण चारे की खेती के लिये घटते क्षेत्र और चारे के रूप में फसल अवशेषों की कम उपलब्धता है।
  • मौजूदा घास के मैदानों में अधिक चराई के कारण प्राकृतिक संसाधनों में निरंतर कमी हो रही है।
  • विभिन्न पशुधन प्रजातियों की आनुवंशिक क्षमता के कुशल उपयोग और उत्पादकता में स्थायी सुधार के लिए पर्याप्त मात्रा में अच्छी गुणवत्ता वाले पशुखाद्य और चारे की व्यवस्था करना अनिवार्य है।

उत्पादकता में कमी

  • हालांकि राज्य में पशुओं की उत्कृष्ट नस्लें हैं, फिर भी पशुधन की औसत उत्पादकता कम है। इसका मुख्य कारण फीड और चारे की अपर्याप्त उपलब्धता, कृत्रिम गर्भाधान की अपर्याप्त पहुँच, कम गर्भाधान दर, प्रजनन के लिए गुणवत्ता वाले नर पशुओं की अनुपलब्धता, बड़ी संख्या में गैर- वर्णित सांड का होना, खराब प्रबंधन नीति, मुफ्त चराई की व्यापकता, उच्च मृत्यु दर और रुग्णता है। अपर्याप्त विपणन व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा और असंगठित विपणन अन्य दूसरी प्रमुख चिंताएँ हैं।

पशुधन स्वास्थ्य

  • पशुधन में संक्रामक और उपापचय रोगों की एक बड़ी संख्या पशु उत्पादकता, निर्यात क्षमता, सुरक्षा और पशुधन उत्पादों की गुणवत्ता को प्रभावित करने का गंभीर कारण है और इनमें से कई बीमारियों तो प्राणीरूजा (जूनोटिक) हैं।
  • पशुधन रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए वर्तमान प्रयासों को मजबूत करने की आवश्यकता है। राज्य की सीमाओं से बीमारियों बिमारियों का प्रवेश रोकने के लिए जैव-सुरक्षा, उचित पृथकीकरण प्रणाली और सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है।

पशुधन और पर्यावरण

  • जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग पशुधन क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। ये उष्मागत तनाव, गुणवत्तापूर्ण पशुखाद्य और चारे की कमी, और तेजी से फैलने वाले वेक्टर जनित रोगों के रूप में परिवर्तन आदि के रूप में दिखाई दे सकता है जिससे अंततः उत्पादन में कमी और पशुपालकों को आर्थिक नुकसान होगा।
  • स्थिति के निरंतर मुल्यांकन एवं अग्रिम योजना निर्माण कर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना।

जागरूकता की कमी

  • ज्यादातर पशुधन उत्पादक छोटे और सीमांत किसान हैं, अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित नवीनतम तकनीकों का उपभोग करने के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने की उनकी क्षमता सीमित है। प्रभावी प्रचार-प्रसार की कमी इस समस्या को और बढ़ा देती है।
  • नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाकर उत्पादकता में सुधार के लिए आवश्यक निवेश को आकर्षित करने के लिए संस्थागत वित्त की कमी एक प्रमुख बाधा है।

विपणन प्रसंस्करण, मूल्यसंवर्धन और विपणन के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढांचा:

  • प्रसंस्करण और विपणन के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढांचा पशुधन क्षेत्र को अपंग बनाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्राथमिक उत्पादकों को अधिकांश समय सही पारिश्रमिक मूल्य नहीं मिल पाता हैं।
  • यद्यपि डेयरी विकास के लिए विभिन्न प्रयासों ने राज्य में जीवंत डेयरी सहकारी समितियों को जन्म दिया है, फिर भी बड़ी संख्या में दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों द्वारा कवर नहीं किए गए हैं।
  • अभी भी दूध और अन्य पशुधन उत्पादों का विपणन योग्य बड़ा हिस्सा संगठित प्रसंस्करण उद्योग द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता है, जिसके कारण उत्पादन होते हुए भी अपव्यय के कारण किसानों को कम कीमत की प्राप्ति होती है।

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