15 अगस्त 1947 ई. को भारत स्वाधीन हुआ। परन्तु भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 की आठवीं धारा के अनुसार ब्रिटिश सरकार की भारतीय देशी रियासतों पर स्थापित सर्वोच्चता पुनः देशी रियासतों को हस्तांतरित कर दी गयी। इसका तात्पर्य था कि देशी रियासतें स्वयँ इस बात का निर्णय करेंगी कि वह किसी अधिराज्य में (भारत अथवा पाकिस्तान में) अपना अस्तित्व रखेंगी। यदि कोई रियासत किसी अधिराज्य में शामिल न हो तो वह स्वतंत्र राज्य के रूप में भी अपना अस्तित्व रख सकती थी। यदि ऐसा होने दिया जाता है तो भारत अनेक छोटे-छोटे खंडो में विभक्त हो जाता एवं भारत की एकता समाप्त हो जाती। तत्कालीन भारत सरकार का राजनैतिक विभाग जो अब तक देशी रियासतों पर नियंत्रण रखता था, समाप्त कर दिया गया और 5 जुलाई 1947 को सरदार बल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में रियासत सचिवालय गठित किया गया। रियासत सचिवालय सभी छोटी बड़ी रियासतों का विलीनीकरण या समूहीकरण चाहता था। इन रियासतों का एकीकरण इस प्रकार किया जाना था कि भाषा, संस्कृति और भौगोलिक सीमा की दृष्टि से एक संयुक्त राज्य संगठित हो सके।
राजस्थान के एकीकरण के प्रारम्भिक प्रयास
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय राजस्थान में 22 छोटी-बड़ी रियासतें थी। इसके अलावा अजमेर-मेरवाड़ा का छोटा सा क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत था। इन सभी रियासतों तथा ब्रिटिश शासित क्षेत्र को मिलाकर एक इकाई के रूप में संगठित करने की अत्यन्त विकट समस्या थी। सितम्बर 1946 ई. को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक-परिषद ने निर्णय लिया था कि समस्त राजस्थान को एक इकाई के रूप में भारतीय संघ में शामिल होना चाहिए। इधर भारत सरकार के रियासत सचिवालय ने निर्णय लिया कि स्वतंत्र भारत में वे ही रियासतें अपना पृथक अस्तित्व रख सकेंगी जिनकी आय एक करोड़ रुपये वार्षिक एवं जनसंख्या दस लाख या उससे अधिक हो। इस मापदण्ड के अनुसार राजस्थान में केवल जोधपुर, जयपुर, उदयपुर एवं बीकानेर ही इस शर्त को पूरा करते थे। राजस्थान की छोटी रियासतें यह तो अनुभव कर रही थी कि स्वतंत्र भारत में आपस में मिलकर स्वावलम्बी इकाइयाँ बनाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है, परन्तु ऐतिहासिक तथा कुछ अन्य कारणों से शासकों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास एवं ईर्ष्या भरी हुई थी।
राजस्थान एकीकरण के विभिन्न चरण:
एकीकृत राजस्थान का गठन निम्न पाँच चरणों में पूरा हुआ :
- प्रथम चरण में “मत्स्य संघ का निर्माण किया गया। इस संघ में अलवर, भरतपुर, धौलपुर एवं करौली को शामिल किया गया।
- द्वितीय चरण में “संयुक्त राजस्थान” का निर्माण किया गया जिसमें कोटा, बूंदी, झालावाड़, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ और शाहपुरा शामिल किए गये।
- तृतीय चरण में मेवाड़ को संयुक्त राजस्थान में शामिल किया गया।
- चतुर्थ चरण में जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर राज्यों को संयुक्त राजस्थान में शामिल कर “वृहत राजस्थान” का निर्माण किया गया।
- पंचम चरण में “मत्स्य संघ’ को “वृहत राजस्थान” में शामिल किया गया।
उपर्युक्त पाँच चरणों में सिरोही व अजमेर-मेरवाड़ा एकीकृत राजस्थान में शामिल नहीं हो पाये। इनका राजस्थान में विलय 1956 में ही संभव हो सका।
एकीकृत राजस्थान का गठन: चरण
क्र.सं. | तिथि/वर्ष | नाम | राज्य | प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री | राजप्रमुख |
प्रथम | 19 माचे 1948 | मत्स्य संघ | अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली | श्री शोभाराम | धौलपुर के शासक उदयभान सिंह |
द्वितीय | 25 मार्च 1948 | संयुक्त राजस्थान संघ | कोटा, बूंदी, झालावाड़, दूंगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, किशनगढ़, टोंक | श्री गोकुल लाल असावा | कोटा नरेश भीम सिंह |
तृतीय | 18 अप्रेल 1948 | संयुक्त राजस्थान (मेवाड़ का विलय) | द्वितीय चरण के राज्यों के साथ मेवाड़ | श्री माणिक्य लाल वर्मा | उदयपुर (मेवाड़) महाराणा भूपाल सिंह |
चतुर्थ | 30 मार्च 1949 | वृहत् राजस्थान | तृतीय चरण के राज्यों के साथ जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर व लावा(ठिकाना) | श्री हीरालाल शास्त्री | उदयपुर महाराणा भूपाल सिंह महाराज प्रमुख, जयपुर नरेश राजप्रमुख |
पंचम | 15 मई 1949 | वृहत् राजस्थान | प्रथम व चतुर्थ चरण के राज्य (नीमराणा ठिकाना सहित) | उदयपुर महाराणा भूपाल सिंह महाराज प्रमुख, जयपुर नरेश राजप्रमुख | |
षष्ठम | 26 जनवरी 1950 | वृहत् राजस्थान | पंचम चरण के साथ सिरोही (आबू व देलवाड़ा ) को छोड़कर) | राज्यपाल गुरूमुख निहाल सिंह | |
सप्तम | 1 नवम्बर 1956 | राजस्थान | षष्ठम चरण के साथ अजमेर, मा. आबू, देलवाडा व सुनेल टप्पा |
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