मध्यकाल

राजस्थान की मध्यकालीन भू राजस्व व्यवस्था

प्रशासन के तीन प्रमुख स्तम्भ थे सैनिक व सामान्य प्रशासन दूसरा न्याय व्यवस्था और तीसरा भू-राजस्व व्यवस्था, सैनिक और न्याय व्यवस्था के समान ही भू राजस्व व्यवस्था में भी सामन्तों की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। मध्यकाल में कृषि ही आय का मुख्य स्रोत था, इस दृष्टि से भूमि और उस पर उत्पादित फसल पर लगान वसूल …

राजस्थान की मध्यकालीन भू राजस्व व्यवस्था Read More »

राजस्थान की मध्यकालीन न्याय व्यवस्था

परम्परागत न्याय व्यवस्था थी, राजा सर्वोच्च न्यायाधीश होता था, सामन्त अपनी जागीर में प्रमुख न्यायाधीश की स्थिति रखता था। इसके अतिरिक्त गाँवों में ग्राम पंचायते होती थी। खालसा क्षेत्र में न्याय का कार्य हाकिमों के द्वारा किया जाता था, जागीर में जागीरदार न्यायाधिकारी होता था। जातिय पंचायते भी होती थी। छोटी चौरियों और सामाजिक अपराध …

राजस्थान की मध्यकालीन न्याय व्यवस्था Read More »

राजस्थान की मध्यकालीन प्रशासनिक व्यवस्था

एक व्यवस्थित राज्य के लिये प्रशासनिक व्यवस्था अनिवार्य तत्त्व है। मध्यकाल में राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था से तात्पर्य मुगलों से सम्पर्क के बाद से लेकर 1818 ई. में अंग्रेजों के साथ हुई सन्धियों की काल अवधि के अध्ययन से है। इस काल अवधि में राजस्थान 22 छोटी-बड़ी रियासतें थी, और अजमेर मुगल सूबा था, इन …

राजस्थान की मध्यकालीन प्रशासनिक व्यवस्था Read More »

राजस्थान में सामन्त व्यवस्था

राजस्थान में सामन्त व्यवस्था

राजस्थान की सामन्त व्यवस्था रक्त सम्बन्ध और कुलीय भावना पर आधारित थी। सर्वप्रथम कर्नल जेम्स टॉड ने यहाँ की सामन्त व्यवस्था के लिये इंगलैण्ड की फ्यूडल व्यवस्था के समान मानते हुए उल्लेख किया है। इसे विद्वानों ने केवल राजनीतिक शब्दावली के रूप में नहीं लिया वरन् सम्पूर्ण अर्थ में सामन्त व्यवस्था को समझना आवश्यक समझा, …

राजस्थान में सामन्त व्यवस्था Read More »

error: © RajRAS