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दधिमति माता मंदिर

दधिमति माता मंदिर

नागौर जिले की जायल तहसील में गोठ और मांगलोद गांवों की सीमा परदधिमति माता के नाम से विख्यात यह मंदिर नवीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है। यह मंदिर प्रतिहारकालीन मंदिर स्थापत्य की अनुपम थाती है। वेदीबंध की सादगी, जंघा भाग की रथिकाओं में देवीदेवताओं की मूर्तियां, मंडोवर व शिखर की मध्यवर्ती कंठिका में चहुंओर …

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1947 के बाद : राजस्थान का एकीकरण

स्वाधीनता के बाद: राजस्थान का एकीकरण

15 अगस्त 1947 ई. को भारत स्वाधीन हुआ। परन्तु भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 की आठवीं धारा के अनुसार ब्रिटिश सरकार की भारतीय देशी रियासतों पर स्थापित सर्वोच्चता पुनः देशी रियासतों को हस्तांतरित कर दी गयी। इसका तात्पर्य था कि देशी रियासतें स्वयँ इस बात का निर्णय करेंगी कि वह किसी अधिराज्य में (भारत अथवा पाकिस्तान …

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पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान

बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में चौहान साम्राज्य उत्तरी भारत में अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था। चौहान साम्राज्य का विस्तार कन्नौज से जहाजपुर (मेवाड़) की सीमा तक विस्तृत हो गया था। सोमेश्वर देव की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान 11 वर्ष की अल्पायु में सिंहासन पर बैठा । माता कर्पूरीदेवी अपने अल्पवयस्क पुत्र के राज्य …

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बापा बप्पा रावल

बप्पा रावल: गुहिल राजवंश के वास्तविक संस्थापक

मेवाड़ के गुहिल वंशी शासकों में बप्पा रावल (713-810) का महत्वपूर्ण स्थान है। मेवाड़ का शक्तिशाली राजवंश गुहिल के नाम से जाना जाता है इसका प्रारंभिक संस्थापक गुहादित्य थे, जिन्होंने 566 ई. में मेवाड़ राज्य पर गुहिल वंश की नींव रखी |गुहादित्य के पश्चात् 734 ई. में बप्पा रावल को गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक …

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खेजड़ी - राजस्थान का राज्य वृक्ष

खेजड़ी – राजस्थान का राज्य वृक्ष

राजस्थान की शुष्क जलवायु के कारण यहां की वनस्पतियां पारिस्थितिकी के अनुकूल विशिष्टता लिए हुए होती हैं। प्रदेश का एक बड़ा भू-भाग मरुस्थलीय होने का कारण यहां कम पानी में पनपने वाले पेड़-पौधे अधिक पाये जाते हैं। खेजड़ी एक ऐसा ही पेड़ है जो यहां बहुतायत से पाया जाता है। इस बहुउद्देश्यीय वृक्ष का प्रत्येक …

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आदिग्रन्थो में जल का महिमा वर्णन

आदिग्रन्थो में जल का महिमा वर्णन

आदिग्रन्थो में जल का महिमा वर्णन: सृष्टि के प्रारम्भ से ही जनमानस में जल का विशेष महत्त्व रहा है। भारतीय संस्कृति में जल को जीवन का आधार माना गया है। जीवन के उद्भव और विकास का आधार होने के कारण ही जल को सदैव सहेजने की परम्परा रही है। नदियों को देव तुल्य मानते हुए …

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