टॉडगढ़ रावली वन्य जीव अभ्यारण्य

टॉडगढ़ रावली वन्य जीव अभ्यारण्य

तीन जिलों का त्रिवेणी धाम  टॉडगढ़ रावली वन्य जीव अभ्यारण्य के नाम से मशहूर यह अभ्यारण्य राजसमन्द, पाली और अजमेर  जिलों में पसरा हुआ है। इस भू-भाग में 55 मीटर ऊँचाई से गिरने वाला मनोरम भील बेरी झरना है जो बरसात के कई माह बाद तक अविराम झरता रहकर सुकून देता है। अभ्यारण्य में घनी हरियाली के बीच कई दर्शनीय स्थल हैं जो जंगल में मंगल का साक्षात आनंद प्रदान करते हैं। सुकून का समन्दर लहराता है यहाँकुल जमा 475 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पसरे हुए इस पहाड़ी जंगल में वह सब कुछ है जो तन-मन को यादगार एवं अपूर्व सुकून देने वाला है।

2प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप ने इन्हीं सघन हरियाली भरी वादियों, घाटियों और गुफाओं को विहार स्थल बनाया।  इस मायने में यह पूरा इलाका अपने भीतर इतिहास की कई कही-अनकही गाथाओं को भी समेटे हुए है। ऎतिहासिक तथ्यों के अनुसार हल्दी घाटी युद्ध के छह वर्ष बाद महाराणा प्रताप ने अकबर की छावनी पर धावा बोलकर सेना नायकों सहित पूरी सेना को नष्ट कर दिया।  राणाकड़ा घाटी में महाराणा प्रताप एवं अकबर की सेना के बीच 26 अक्टूबर 1582  विजयादशमी को हुए युद्ध में महाराणा की जीत हुई। इसमें सेना के साथ ही आम लोगों ने भी युद्ध में हिस्सा लिया। इस ऎतिहासिक घाटी को कर्नल जेम्स टाड ने मैराथन ऑफ मेवाड़ की संज्ञा दी।

इतिहास बाँचता है यह दस्तावेज यहीं पर अंग्रेजों के जमाने में बना रावली इको स्थल है जहाँ सन् 1932 से अपनी तरह का अद्वितीय एवं अनूठा रेस्ट हाउस है जिसमें देश और दुनिया की बड़ी-बड़ी हस्तियों से लेकर प्रकृतिप्रेमियों, शोधार्थियों, प्रकृतिप्रेमियों और विशिष्टजनों के अनुभवों का अंकन विजिट बुक में है जिसे अभी तक अच्छी तरह संजो कर रखा गया है। इसमें यह तक अंकित है कि किस जमाने में कौन आया, किसने क्या देखा और किसका शिकार किया तथा कैसा अनुभव हुआ। इन अनुभवों से भरी विजिट बुक के हर पन्ने को लेमिनेटेड करवा कर यादगार स्वरूप दिया गया है।  यह ऎतिहासिक दस्तावेज इस अभ्यारण्य की अमूल्य धरोहर के रूप में संजोया हुआ है।

प्रकृति का अनुपम तोहफा इतिहास, प्रकृति और पर्यटन की जाने कितनी त्रिवेणियां बहाने वाले इस अभ्यारण्य की स्थिति ‘तीन लोक से मथुरा न्यारी’ वाली ही है।  वन विभाग ने इस अभ्यारण्य को मौलिकता से ओत-प्रोत नैसर्गिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया है और अब इसके बारे में आम लोगों को जागरुक करने, देशी-विदेशी सैलानियों में इसके प्रति आकर्षण जगाने के लिए खास प्रयास आरंभ किए गए हैं। वनदेवी की गोद में अलौकिक आनंद यहां दूधालेश्वर महादेव का प्राचीन शिवालय है जहाँ भूगर्भ से साल भर अहर्निश जल धाराएँ हमेशा समान वेग से फूटती रहती हैं।

क्षेत्र में दिवेर इको स्थल, गोरम घाट ट्रेन सफारी, बगड़ी इको स्थल, दिवेर विजय स्मारक,युद्ध स्मारक, प्राकृतिक रमणीयता से भरे-पूरे गांव छापली, नवलीपुग, इकोट्रेक, गोकुलगढ़ व्यू पाइंट आदि विशिष्ट स्थल हैं जो अपने आप में खास आकर्षण जगाने के साथ ही मन मोह लेने वाले हैं।  मैराथन ऑफ मेवाड़ की परिकल्पना यहां मूर्त रूप लेती प्रतीत होती है।  इस वन तीर्थ से देश और दुनिया के लोगों को परिचित कराने के लिए इस बार वन विभाग ने अभिनव पहल की है। इसी मकसद से दिवेर युद्ध की वर्षगांठ पर आगामी 26 अक्टूबर को इको टूरिज्म को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष कार्यक्रम हाथ में लिया गया है।

टॉडगढ़ रावली वन्य जीव अभ्यारण्य:

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