गोविन्द गुरु

गोविन्द गुरु

गोविन्द गुरु का जन्म 20 दिसम्बर, 1858 को राजस्थान में डूंगरपुर के बासिया गाँव में एक बंजारा परिवार में हुआ था। उसके पुत्रों व पत्नी की मृत्यु ने उन्हें अध्यात्म की ओर मोड़ दिया और वे संन्यासी बन गए। कोटा-बूंदी अखाड़े के साधु राजगिरी के शिष्य बने तथा बेड़सा गाँव में अपनी धूनी स्थापित कर एवं ध्वज लगाकर आस-पास के क्षेत्र के भीलों को आध्यात्मिक शिक्षा देना प्रारम्भ किया।
गोविन्द गिरी ने भील जनजाति को संगठित करने एवं उनमें सामाजिक व राजनीतिक चेतना जागृत करने के लिए 1883 ई. में ‘सम्प सभा’ की स्थापना की। सम्प सभा के मुख्य नियम इस प्रकार थे

  1. शराब न पीना व नित्य स्नान, ईश्वर पूजा तथा हवन करना।
  2. चोरी, लूटमार व डकैती नहीं करना
  3. गाँव-गाँव में स्कूल खोलना व पिछड़ी जातियों की आर्थिक स्थिति सुधारना
  4. आपसी विवादों के फैसले पंचायतों में करना और अदालत में न जाना
  5. बेगार नहीं करना और अन्याय का विरोध करना
  6. स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग करना।

भीलों में सामाजिक सुधार कार्यों के कारण गोविन्दगिरी बाँसवाड़ा, डूंगरपुर एवं तक भील क्षेत्रों में लोकप्रिय हो गए। भीलों ने जागीरदारों एवं राज्य कर्मचारियों व सामन्तों की बैठ-बेगार करना बंद कर दिया।यह देखकर रियासतों के शासक चिन्तित हो उठे। उन्होंने भीलों के संगठन को कुचलने के लिए षड्यंत्र करने शुरू कर दिये। 1911 में गोविन्द गुरु ने “भगत पंथ” की स्थापना की। उन्होंने भीलों में धार्मिक जागृति के साथ साथ उन्हें सामंतों व जागीरदारों के शोषण के विरुद्ध भी तैयार करना शुरू किया।

अन्य नाम गोविन्द गिरी
जन्म20 दिसम्बर, 1858
जन्म स्थानबासिया गाँव(डूंगरपुर)
परिवारबंजारा परिवार
गुरुसाधु राजगिरी
संगठनसम्प सभा
आंदोलनभगत आंदोलन

राजस्थान का जलियांवाला बाग़ हत्याकांड(मानगढ़ पहाड़ी, बांसवाड़ा)

अक्टूबर 1913 में गोविन्द गिरी ने भीलों को मानगढ़ पहाड़ी पर एकत्र होने का सन्देश भेजा। सन्देश मिलते ही हजारों भील रसद लेकर सशस्त्र मानगढ़ में इकट्ठे हुए हैं। भीलों की गतिविधियों से ईडर व बांसवाड़ा के शासक भयभीत हो गए। उन्होंने ए.जी.जी. से गोविन्द गिरी की गिरफ़्तारी व भील संगठन को ख़त्म करने का आग्रह किया। 10 नवंबर 1913 तक ए.जी.जी. के आदेश पर मेवाड़ भील कोर, राजपूत रेजिमेंट, वेलेजली राइफल्स व जाट रेजिमेंट की सेना ने मानगढ़ की पहाड़ी को घेर लिया। अंग्रेज अधिकारी गोविन्द गिरी से मिलना चाहते थे। अत: 12 नवम्बर, 1913 को गोविन्द गिरी ने अपने प्रतिनिधियों के हाथों एक पत्र अंग्रेज अधिकारियों के पास भेजा, जिनमें निम्न माँगें थी

  1. गोविन्द गिरी की धूनियों को पुनः स्थापित किया जाए तथा उसके शिष्यों को दर्शनार्थ आने से नहीं रोका जाए।
  2. भीलों से बैठ बेगार नहीं ली जाए व उनका उत्पीड़न नहीं किया जाए।
  3. भीलों की जंगल की उपज नि:शुल्क प्राप्त करने का अधिकार पुनः दिया जाए
  4. भू-राजस्व पुरानी प्रथा के अनुसार ही वसूला जाए

अंग्रेज अधिकारियों ने गोविन्द गिरी की मांगों पर विचार करने का आश्वासन देकर भीलों को वहां से हटने का आदेश दिया। लेकिन भीलों ने अपनी माँगें नहीं माने जाने तक वहाँ से हटने से इंकार कर दिया।

17 नवम्बर, 1913(मार्गशीर्ष पूर्णिमा) को अंग्रेजी सेना ने फायरिंग शुरू कर दी। तोपें, मशीनगर्ने और बन्दूकें गरजने लगीं और देखते ही देखते 1500 से भी अधिक आदिवासी शहीद हो गए। गोविन्द गुरु को गिरफ्तार कर अहमदाबाद की जेल में बन्द कर दिया गया। ‘सम्प सभा’ को अवैध घोषित कर दिया गया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद गोविन्द गुरु जेल से छूटे लेकिन उन्हें बाँसवाड़ा व डूंगरपुर राज्यों की सीमाओं में प्रवेश नहीं करने दिया गया। जेल से मुक्त होकर वे भील सेवा सदन, झालोद के माध्यम से लोक सेवा के विभिन्न कार्य करते रहे। 30 अक्तूबर, 1931 को गुजरात के कम्बोई ग्राम में उनका देहान्त हुआ।

मानगढ़ पहाड़ी का नरसंहार जलियांवाला बाग से भी बड़ा एवं विभत्स था। देश की आजादी में इस आंदोलन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। मानगढ़ धाम पर प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें राजस्थान, गुजरात एवं मध्यप्रदेश से हज़ारों श्रृद्धालु आते हैं।

वनवासियों के बलिदान एवं गोविन्द गुरू के योगदान को रेखांकित करने के लिए राज्य सरकार ने मानगढ़ धाम में जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय बनाया है। साथ ही, मानगढ धाम तक मार्ग एवं इस स्थल के विकास के कार्य किये गए हैं। जनजाति/आदिवासी बहुल क्षेत्र बांसवाड़ा, डूंगरपुर आदि जिलों के जनप्रतिनिधियों द्वारा मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किये जाने की मांग लम्बे समय से की जा रही है।

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