राजस्थान की संस्कृति | राजस्थान देश के सम्पूर्ण सांस्कृतिक परिदृश्य से भिन्न नहीं है, लेकिन खास प्रकार की भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियों के कारण इसकी अपनी कुछ विशेषताएँ जरूर हैं। एकीकरण से पहले तक यह प्रदेश कई छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था इसलिए मेले और पर्व-त्योहार यहाँ कई हैं।
इसी तरह रीति-रिवाजों और परम्पराओं का विकास भी अलग-अलग ढंग से हुआ है। यह अवश्य है कि अब संचार के साधनों के बढ़ जाने से इनमें एकरूपता बढ़ रही है। रंग, राग, उल्लास और उत्सव राजस्थान के पर्याय हैं।
एक तरफ जीवन की बड़ी चुनौतियों से सतत टकराहट और दूसरी तरफ उत्सवों, मेलों, पर्वो और त्योहारों में उस तमाम थकान और अवसाद को बहा डालने की प्रेरणादायक कोशिशें, यही राजस्थान की खासियत है।
यहां की रंग बिरंगी वेशभूषा, संगीत की मधुर स्वर लहरियां और जीवन के आनन्द से सराबोर पर्व, उत्सव और त्योहार, इन सब से मिलकर राजस्थान का मनोरम सांस्कृतिक परिदृश्य बनता है।
मूर्धन्य कवि कन्हैयालाल सेठिया ने लिखा था- ‘आ तो सुरगां ने सरमावै, इण पर देव रमण ने आवै, धरती धोरां री……. अर्थात राजस्थान की रेतीली धरती तो स्वर्ग को भी लज्जित करती है और देवता भी यहां विचरण करने के लिए आते हैं!
राजस्थान की संस्कृति – विस्तृत लेख
- राजस्थान की कला और स्थापत्य
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