राजस्थान की मृदा | राजस्थान में मृदा संबंधी मुख्य समस्याएं

राजस्थान में मृदा संबंधी मुख्य समस्याएं

राजस्थान में मृदा संबंधी मुख्य समस्याएं | मृदा किसी भी देश की एक अमूल्य सम्पदा है इसका निर्माण चट्टानों के अपक्षय तथा पेड़ पौधों कार्बनिक पदार्थों के विच्छेदन से हुआ है। मानव स्वार्थों, अवैज्ञानिक व अमर्यादित क्रियाकलापों के कारण मृदा संरचना को हानि पहुँच रही है। औद्योगिकीकरण, अत्यधिक चराई, वनों का विनाश, अत्यधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग से मृदा प्रदूषित हो रही है। राजस्थान में मृदा संबंधी अनेक समस्याएं हैं|

राजस्थान में मृदा संबंधी मुख्य समस्याएं:

  • भूस्खलन
  • मृदा अपरदन
  • मरुस्थलीकरण
  • जलाभरण अथवा सेम

भूस्खलन

पर्वतीय ढाल पर कोई भी चट्टान गुरुत्व के कारण नीचे को और खिसकती है तो उसे भूस्खलन कहते है। इससे जन-धन की भारी क्षति होती है। तथा पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाते है। पहाड़ी क्षेत्रों में भारी वर्षा, बाढ़ तथा भूकम्प भूस्खलन के प्रमुख प्राकृतिक कारण है। मानव गतिवधियों जैसे वनो की कटाई और संशोधन, सड़क निर्माण, खनन व उत्खनन तकनीकों का उपयोग, पानी के पाइपों में रिसाव आदि के कारण भूस्खलन की समस्या बढ़ जाती है।

मृदा अपरदन

मिट्टी की ऊपरी सतह पर से उपजाऊ मृदा का प्राकृतिक अथवा मानवीय कारणों से वायु अथवा जल द्वारा स्थानांतरण होना मृदा अपरदन या मिट्टी का कटाव कहलाता है। राजस्थान में सर्वाधिक मृदा अपरदन वायु अपरदन से और उसके बाद जल अपरदन से होता है|

मृदा अपरदन के प्रकार:

मिट्टी का अपरदनकई प्रकार से होता है कहीं पर मिट्टी का ऊपरी अपक्षरण होता है तो कहीं जल द्वारा गहरी नलिकाएं बना के गढ्ढे के रूप में मिट्टी का अपरदन होता है। मुख्य रूप से मृदा अपरदन 4 प्रकार का होता है :

  1. आवरण अपरदन
  2. अवनालिका अपरदन
  3. वायु अपरदन
  4. धरातलीय अपरदन

आवरण अपरदन

वर्षा के समय पर्वतों की मिट्टी पानी द्वारा बहा ली जाती है। इससे मृदा की ऊपरी परत जो सबसे उपजाऊ होती है के उर्वरा तत्व पानी में हट कर चले जाते हैं इस अपरदन को भूमि का आवरण अपरदन कहते हैं।

  • राजस्थान में आवरण अपरदन सिरोही उदयपुर अलवर डूंगरपुर आदि जिलों में अधिक होता है।

अवनालिका अपरदन

अवनालिका अपरदन नदियों, नालों व भारी बारिश के जल बहाव से होता है जल धाराओं द्वारा मिट्टी के ऊपरी आवरण के साथ-साथ कुछ गहराई तक कटाव किया जाता है जिससे गहरे गड्ढे, घाटीयां तथा नाले बन जाते है इसे भूमि का अवनालिका अपरदन कहते हैं।

  • यह अपरदन सबसे अधिक हानिकारक होता है इससे संपूर्ण क्षेत्र कट फट जाता है।
  • इस अपरदन से कोटा (सर्वाधिक), बूंदी, धौलपुर, भरतपुर, जयपुर तथा सवाई माधोपुर जिले ग्रस्त हैं।
बीहड़ व उत्खनात स्थलाकृति
  • राजस्थान में चम्बल नदी द्वारा चम्बल बेसिन में निर्मित उबड़-खाबड़ भूमि आकृति को बीहड़ व उत्खनात स्थलाकृति कहते हैं।
  • यह कृषि के अयोग्य ऊंची नीची भूमि सवाईमाधोपुर, करौली तथा धौलपुर जिलों में सर्वाधिक है
  • कोटा से बाँरा के मध्य(काली सिंध के आसपास के क्षेत्र) को कुँवारी बीहड़ के नाम से जाना जाता है।
  • राज्य में सर्वाधिक बीहड़ भूमि कोटा में (1132 लाख हेक्टेयर ) फिर सवाई माधोपुर (1130 लाख हेक्टेयर) में है।

परत या वायु अपरदन

तेज हवाओं द्वारा मिट्टी की ऊपरी परत को उड़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करना परत या वायु अपरदन कहलाता है।

  • शुष्क प्रदेशों, मरुभूमियों में वायु और बालू कण मिलकर इस अपरदन के लिए सशक्त माध्यम बनते हैं
  • राजस्थान के पश्चिमी व उत्तरी भाग में इस प्रकार का अपरदन होता है।
  • वायु अपरदन मुख्यतः बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, सीकर, चूरू,अजमेर आदि जिलों में होता है।

धरातलीय अपरदन

पहाड़ी तथा सतही ढालों पर वायु, जल, नदियों द्वारा मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत का स्थानांतरण करना धरातलीय अपरदन कहलाता है।

  • यह राज्य के सभी क्षेत्रों में दिखाई देता है।

मृदा अपरदन के प्रमुख कारण

  • वनो की अंधाधुंध कटाई
  • अत्यधिक पशुचारण
  • अवैज्ञानिक कृषि पद्धति जैसे डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर में पहाड़ी ढालों पर आदिवासियों की झूमिंग या वालर कृषि प्रणाली द्वारा
  • त्रुटिपूर्ण फसल चक्र अपनाना
  • सिंचाई की दोषयुक्त विधियाँ अपनाना
  • खनन तथा निर्माण कार्य

मृदा अपरदन के दुष्परिणाम

  • निरंतर सूखा
  • निम्न जल स्तर
  • नदियों व नहरों के मार्ग अवरुद्ध होना
  • बाढ़ की स्थिति
  • कृषि योग्य भूमि का ह्रास

मृदा अपरदन रोकने के उपाय

  • वृक्षारोपण
  • ढालों पर पट्टीदार कृषि
  • चरागाहों का विकास
  • खेतों में मेड़ बांधना
  • नदी मार्ग में बांधो का निर्माण
  • वैज्ञानिक कृषि को प्रोत्साहन

मरुस्थलीकरण

सामान्य भूमि का मरुस्थल में रूपांतरण ही मरुस्थलीकरण कहलाता है। मरुस्थल बनने की प्रक्रिया शुष्क, अर्धशुष्क, अल्पवर्षा वाले क्षेत्रों में निरंतर चलती रहती है। विश्व का लगभग 35 % भाग मरुस्थल के रूप में है। न्यून वर्षा, उच्च तापक्रम, मृदा में वनस्पति विहीनता मरुस्थलीकरण के प्रमुख कारण है। मानव निर्मित गतिविधियों जैसे अविवेकपूर्ण पशु चराई, भूमिगत जल का अत्यधिक इस्तेमाल और मानवीय एवं औद्योगिक कार्यों हेतु नदियों के जल का रास्ता बदलना इसकी वजह है। थार मरुस्थल राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का दो तिहाई हिस्सा है।

मरुस्थलीकरण के प्रमुख कारण

  • वनोन्मूलन
  • मृदा अपरदन
  • मृदा लवणता तथा मृदा क्षारीयता
  • औद्योगिक अपशिष्ट

मरुस्थलीकरण को रोकने के उपाय

  • सघन वृक्षारोपण
  • अविवेकपूर्ण पशु चराई पर अंकुश
  • स्थानीय वृक्ष व वनस्पति उगाने को प्रोत्साहन
  • केंद्रीय मरू अनुसन्धान संस्थान जोधपुर द्वारा सेवण घास(पशुओं के लिए पौष्टिक) उगाने को प्रोत्साहन देने की आवशयकता बताई गई है।

जलाभरण अथवा सेम (Water Logging)

यह समस्या मूलतः सिंचित क्षेत्रों में वो भी कतिपय विशिष्ट क्षेत्रों में उत्पन्न हुई है। जलाभरण से तात्पर्य है किसी क्षेत्र में पानी का भरा रहना। इस पानी के भरने से उसके समीपवर्ती क्षेत्र में नमी अधिक हो जाती है जिसे स्थानीय भाषा में ‘सेम’ कहते हैं।

  • राजस्थान के इंदिरा नहर द्वारा सिंचित क्षेत्र में जब पानी दिया जाता है तो निरन्तर पानी देने या अधिक पानी देने से वह पानी जमीन द्वारा सोखा नहीं जाता और भरा रह जाता है।
  • इसका दसरा कारण भूमिगत जल का कतिपय क्षेत्रों में ऊपर आ जाना भी है।
  • इसके अतिरिक्त भूमि के नीचे यदि अप्रवेश्य चट्टान हो तो भी पानी भरा रहता है।
  • इस प्रकार के जलाभरण अथवा सेम की समस्या राजस्थान के गंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों में, सूरतगढ़, बढ़ोपल, रावतसर और बीकानेर के लूनकरणसर क्षेत्र में देखने को मिलती है।
  • सैकड़ों हैक्टेयर भूमि पर जलाभरण होने से वह कृषि के लिये उपयुक्त नहीं रही है और वहाँ का पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है।
  • इसके लिये सरकार ने नालियाँ बनाकर पानी की निकासी का प्रबन्ध किया है।

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