राजस्थान के पशु संसाधन

राजस्थान में गायें | गायों की नस्ल

गाय पशुपालन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। राजस्थान में गायें सर्वाधिक क्रमशः उदयपुर व चित्तौड़गढ़ में तथा न्यूनतम धौलपुर में है। लेकिन मरूस्थलीय जिलों बाड़मेर, नागौर, बीकानेर, श्रीगंगानगर, चूरू व हनुमानगढ में गौ पालन एक प्रमुख व्यवसाय है। आजिविका के अन्य साधनों की कमी, वर्षाकाल में चारागाहों की उपलब्धता, पौष्टिक सेवण घास, परम्परागत व्यवसाय का अनुभव, मौसम के अनुसार स्थानान्तरण तथा वर्तमान में इन्दिरा गांधी नहर परियोजना का पानी इस क्षेत्र में गौवंश पालन में सहायोगी तत्त्व है।

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भारत की समस्त गायों (192.49 मिलियन) का 6.98 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है। तथा राजस्थान की कुल पशु-सम्पदा में गौ-वंश की संख्या 24.47 प्रतिशत है।

राजस्थान में गायें

राजस्थान में गौवंश की प्रमुख नस्लों का क्षेत्रीय वितरण निम्न प्रकार है

गीर

गीर
  • मूल स्थान – गुजरात के सौराष्ट्र के गिर बन
  • अन्य नाम – राजस्थान में रैण्डा व अजमेरी, काठियावाड़ी, देसान
  • प्रमुख स्थान – इस नस्ल की गायें अजमेर, भीलवाड़ा, पाली व चित्तौड़गढ़ जिलों में पायी जाती है।
  • भारतीय नस्ल की ये गायें दूध (उत्पादन) के लिए प्रसिद्ध है।

थारपारकर

थारपारकर
  • मूल स्थान – बाड़मेर का मालाणी क्षेत्र
  • अन्य नाम – स्थानीय भागों में “मालाणी नस्ल” के नाम से जाना जाता है।
  • प्रमुख स्थान – जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर व जालौर में इस नस्ल की गाय अधिक संख्या में पायी जाती है।
  • यह गायें पूर्णतया शुष्क परिस्थितियों में भी अत्यधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध है।

नागौरी

नागौरी
  • मूल स्थान – नागौर जिले का सुहालक प्रदेश
  • प्रमुख स्थान – इस नस्ल की गाये नागौर, जोधपुर के उत्तरी-पूर्वी भाग व नोखा (बीकानेर) में प्रमुखता से पायी जाती है।
  • नागौरी बैल दौड़ने में तेज, मजबूत व भारवाहक होते है।
  • इस नस्ल की गायें कम दूध देती है।

कांकरेज

कांकरेज
  • मूल स्थान – गुजरात का कच्छ का रन
  • प्रमुख स्थान – इस नस्ल की गाये राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों बाड़मेर, सिरोही, जालौर तथा जोधपुर के कुछ क्षेत्रों में पाली जाती है।
  • इस नस्ल के बैल अच्छे भार वाहक होते हैं। इसी कारण इस नस्ल के गौ-वंश को “द्वि-परियोजनीय नस्ल” कहते है।
  • इस नस्ल की गायें प्रतिदिन 5 से 10 लीटर दूध देती है।

राठी

राठी
  • यह लाल सिंधी व साहीवाल की मिश्रित नस्ल है।
  • इस नस्ल की गायें अत्यधिक दूध देती है इस कारण इसे राजस्थान की कामधेनु कहा जाता है।
  • प्रमुख स्थान – यह राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भागों में बीकानेर, श्रीगंगानगर, जैसलमेर व चूरू के कुछ भागों में पाली जाती है।
  • इस नस्ल के बैलों में भार वहन क्षमता कम होती है।

हरियाणवी

हरियाणवी
  • यह गाये भारवाहन व दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
  • प्रमुख स्थान – इस नस्ल की गाये सीकर, झुन्झुनूं, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ, अलवर व भरतपुर जिलों में पायी जाती है।

मालवी

मालवी
  • मूल स्थान – मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र
  • यह मुख्यतः भारवाही नस्ल है।
  • प्रमुख स्थान – राजस्थान में झालावाड़, बाँरा, कोटा व चित्तौड़गढ़ इनका प्रमुख क्षेत्र है।

सांचौरी

  • प्रमुख स्थान – इस नस्ल की गाये जालौर जिले के सांचौर, सिरोही एवं उदयपुर जिलों में पाई जाती है।
  • यह गौवंश संख्या में अधिक किन्तु दुग्ध उत्पादकता में सामान्य श्रेणी का है।

मेवाती

  • अन्य नाम – कोठी
  • गाय की यह नस्ल हल जोतने व बोझा ढोने हेतु उपयुक्त है।
  • प्रमुख स्थान – इस नस्ल की गायें अलवर व भरतपुर जिलों में अधिक पायी जाती है।

विदेशी नस्ल

  • वर्तमान में राजस्थान में अधिक दूध देने वाली विदेशी नस्लों की जर्सी, हॉलिस्टिन व रेड डेन गाये भी पाली जाने लगी है।

राजस्थान में गौवंश प्रजनन केन्द्र

  • बस्सी(जयपुर)
  • कुम्हेर(भरतपुर)
  • डग(झालावाड़)
  • नोहर(हनुमानगढ़)
  • चांदन(जैसलमेर)
  • नागौर

गोवंश में होने वाले मुख्य रोग

अ. जीवाणु जनित रोग

  • एंथ्रेक्स (तिल्ली बुखार) – बेसिलस एन्थ्रेसिस जीवाणु द्वारा
  • ब्रुसलोसिस (संक्रामक गर्भपात)
  • गलघोंटू /घुर्रका(हीमोरैजिक सेप्टिसिमीआ)
  • थनैला रोग (थनों में होने वाला रोग )

ब. विषाणु जनित रोग

  • खुरपका मुहपका (F. M. D)
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