राजस्थान में भेंड़ | भेड़ पालन में राजस्थान का देश में चौथा स्थान है। भारत की समस्त भेड़ों (74.26 मिलियन) का लगभग 10.63 प्रतिशत भाग यानि 79.04 लाख भेड़ें राजस्थान में पाया जाता है। तथा राजस्थान की कुल पशु-सम्पदा में भेड़ की संख्या लगभग 13.90 प्रतिशत है।
राजस्थान में भेंड़
भेड़ों सम्बंधित कुछ मुख्य बिंदु
- एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी बीकानेर में है जहां 250-300 ऊन धागे की फैक्ट्रियां है।
- राजस्थान ऊन उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर है।
- राजस्थान में सर्वाधिक ऊन उत्पादन जोधपुर, बीकानेर, नागौर में व न्यूनतम ऊन उत्पादन झालावाड़ में होता है।
- केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड जोधपुर में स्थित है।
- केन्द्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला बीकानेर में स्थित है।
- राजस्थान की भेड़ों से अन्य राज्यों के मुकाबले तीन गुना अधिक ऊन का उत्पादन होता है।
- यहां भेड़ों की चोकला, मगरा और नाली नस्लों की ऊन विश्व के बेजोड़ गलीचे और नमदा बनाने के लिए श्रेष्ठ है।
- मालपुरा, जैसलमेरी और मारवाडी नस्लों की ऊन दरियां बनाने में उत्तम हैं।
- मालपुरा, जैसलमेरी, मारवाड़ी, नाली नस्लें मांस के लिए उपयुक्त है।
- भेड़ों की मिंगणी की खाद उत्तम मानी जाती है।
राजस्थान में भेंड की प्रमुख नस्ले इस प्रकार है:
जैसलमेरी
- भेड़ की यह नस्ल सर्वाधिक ऊन देने वाली है।
- प्रमुख क्षेत्र – यह जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर में पाई जाती है।
नाली
- भेड़ की यह नस्ल अधिक ऊन उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। इसका ऊन लम्बे रेशे का होता है, जिसका उपयोग कालीन बनाने में किया जाता है।
- प्रमुख क्षेत्र – यह हनुमानगढ़, चूरू, बीकानेर था झुंझुनू जिलों में पाई जाती है।
मालपुरी
- इसे “देशी नस्ल” भी कहा जाता है।
- प्रमुख क्षेत्र – यह जयपुर, दौसा, टोंक, करौली तथा सवाई माधोपुर जिला में पाई जाती है।
मगरा
- इस नस्ल की भेड़ प्रतिवर्ष औसतन 2 किलोग्राम ऊन देती है।
- प्रमुख क्षेत्र – इस नस्ल की भेड़ अधिकांशतः जैसलमेर, बीकानेर, चूरू, नागौर आदि में पायी जाती है।
पूगल
- इनका उत्पत्ति स्थान बीकानेर की तहसील “पूगल” होने के कारण इस का नाम पूगल हो गया।
- इस नस्ल को मटन और कालीन ऊन प्राप्ति के लिए पाला जाता है।
मारवाड़ी
- राजस्थान की कुल भेड़ों में सर्वाधिक भेड़ें मारवाड़ी नस्ल (लगभग 45 प्रतिशत) की है। इसमें सर्वाधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है।
- प्रमुख क्षेत्र – ये राजस्थान में सर्वाधिक जोधपुर, बाड़मेर, पाली, दौसा, जयपुर आदि जिलों में पाई जाती है।
चोकला या शेखावाटी
- इसे भारत की मेरिनो भी कहा जाता है।
- यह सबसे उत्तम किस्म की ऊन देने वाली नस्ल है। यह प्रतिवर्ष 1 से 1.5 किलो तक ऊन देती है।
- इस नस्ल को कालीन ऊन प्राप्ति के लिए पाला जाता है।
- प्रमुख क्षेत्र – चुरू, सीकर, झुन्झुनू।
सोनाड़ी (चनोथर)
- यह भेड़ की लम्बे कान वाली नस्ल है।जब यह भेड़ जमीन पर घास चरती है तो इसके कान जमीन को स्पर्श करते है।
- प्रमुख क्षेत्र – राजस्थान में बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, दूंगरपुर, उदयपुर जिलों में पाई जाती है।
भेड़ों से सम्बंधित अनुसंधान संस्थान
- केंद्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान (अविकानगर) – मालपुरा (टोंक)
- भेड़ रोग अनुसंधान प्रयोगशाला – जोधपुर
- भेड़ एवं ऊन प्रशिक्षण संस्थान – जयपुर
- केन्द्रीय भेड़ प्रजनन केन्द्र – अविकानगर, टोंक
- राज्य भेड़ प्रजनन केन्द्र – चित्तौड़गढ़, जयपुर, फतेहपुर(सीकर), बांकलिया(नागौर)
भेड़ों में होने वाले मुख्य रोग
अ. जीवाणु जनित रोग
- न्यूमोनिआ
- एन्ट्रोटॉक्सीमिआ/फिड़किया रोग(जहरीले दस्त) – क्लोस्ट्रिडियम जीवाणु
- ब्रुसलोसिस (संक्रामक गर्भपात)
- गलघोंटू (हीमोरैजिक सेप्टिसिमीआ)
- अल्पकालिक ज्वर (एफिमरल फीवर ) – बालू मच्छर मखियों द्वारा
ब. विषाणु जनित रोग
- शीप पॉक्स (चेचक,भेड़माता)
- नील सर्ना (ब्लूटंग) रोग – क्यूलिकवाइडस मच्छर द्वारा
- पापिलोमा (मस्सा ) – पापिलोमा विषाणु
- रिफ्ट वैली ज्वर
- मंकी फीवर
स. परजीवी जनित रोग
- बेबेसिओसिस – कीलनियों, चीचड़ों