राजस्थान के ऐतिहासिक भरतपुर जिले का अतीत अनगिनत संघर्षों तथा साहस और पराक्रम की गाथाओं से परिपूर्ण रहा है। भरतपुर को भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाने में महाराजा सूरजमल का विशेष योगदान रहा है।
महाराजा सूरजमल भरतपुर राज्य के दूरदर्शी जाट महाराजा थे। भारत में महाराजा सूरजमल का नाम बड़ी श्रद्धा एवं गौरव से लिया जाता है। वे कुशल प्रशासक, दूरदर्शी व कूटनीतिज्ञ थे। उन्होंने युवावस्था में ही युद्ध फतह कर अपनी पहचान बनाई। महाराजा सूरजमल ने अपने जीवन में जितने भी युद्ध लड़े उनमें कभी कोई युद्ध नहीं हारे। मुगलों के आक्रमण का प्रतिकार करने में उत्तर भारत में जिन राजाओं की प्रमुख भूमिका रही है, उनमें महाराजा सूरजमल का नाम बड़ी श्रद्धा एवं गौरव से लिया जाता है। महाराजा सूरजमल की महान और अद्वितीय उपलब्धि यह थी कि उन्होंने भारतीय इतिहास की सबसे अस्थिर और डांवाडोल शताब्दी में परस्पर लड़ने वाले जाट गुटों को मिला कर एक किया।
महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी, 1707 को हुआ था। वे राव बदनसिंह के पुत्र थे। उन्हें पिता की ओर से वैर की जागीर मिली थी। उन्होंने 1733 में खेमकरण सोगरिया की फतहगढ़ी पर हमला कर विजय प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 1743 में उसी स्थान पर भरतपुर नगर की नींव रखी तथा 1753 में वहां आकर रहने लगे। राव बदन सिंह ने डीग को सबसे पहले अपनी राजधानी बनाया था। राव बदनसिंह के शासनकाल में कुम्हेर, डीग व भरतपुर के दुर्गों का निर्माण और वैर व दिल्ली के आस-पास ऐतिहासिक मन्दिरों और भवनों का निर्माण कराया गया। राव बदनसिंह की मृत्यु 1756 में हुई परन्तु उन्होंने 25 वर्ष पहले ही सूरजमल को राज्यभार सौंप दिया था। हालांकि बदनसिंह की मृत्यु के बाद 7 जून, 1756 को सूरजमल डीग के औपचारिक महाराजा बने। महाराजा सूरजमल ने 1740 से 1763 तक शासन किया। हमाम-सादात के लेखक ने महाराजा सूरजमल के विषय में लिखा है कि – राजस्व और सिविल मामलों के संचालन और प्रबन्ध में उनकी निपुणता, योग्यता तथा बुद्धिमानी की समता सिवाय निजाम आसफजाह बहादुर के कोई भी भारतीय प्रतापी व्यक्ति नहीं कर सकता। साहस, शक्ति, समझदारी, अदम्य चेतना, कूटनीति में उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
भरतपुर को राजपूताना ही नहीं, वरन् भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाने में महाराजा सूरजमल का विशेष योगदान है। उनकी दूरदर्शिता और कुशल नेतृत्व के कारण ही 1732 में हुए अश्वमेध यज्ञ में आमेर नरेश महाराजा सवाई जयसिंह ने सूरजमल को विशेष सम्मान दिया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर बूंदी के राजकवि सूर्यमल ने महाराजा सूरजमल को सूर्य की संज्ञा दी थी। 10 मई, 1753 को दिल्ली के नवाब गाजीउद्दीन को हरा कर सूरजमल ने दिल्ली और फिरोजशाह कोटला पर अधिकार कर लिया। दिल्ली के नवाब गाजीउद्दीन ने फिर मराठों को भड़का दिया। अत: मराठों ने 1754 में कई माह तक भरतपुर में उनके कुम्हेर किले को घेरे रखा। यद्यपि वे पूरी तरह उस पर कब्जा नहीं कर पाए और इस युद्ध में मल्हारराव का बेटा खांडेराव होल्कर मारा गया। आगे चलकर महारानी किशोरी ने सिंधियाओं की सहायता से मराठों और महाराजा सूरजमल में संधि करा दी। उन दिनों महाराजा सूरजमल और जाट शक्ति अपने चरमोत्कर्ष पर थी। कई बार तो मुगलों ने भी सूरजमल की सहायता ली। मराठा सेनाओं के अनेक अभियानों में उन्होंने ने बढ़-चढ़कर भाग लिया; पर किसी कारण से सूरजमल और सदाशिव भाऊ में मतभेद हो गये। इससे नाराज होकर वे वापस भरतपुर चले गए।
पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठा शक्तियों का संघर्ष अहमदशाह अब्दाली से हुआ। इसमें एक लाख में से आधे मराठा सैनिक मारे गये। मराठा सेना के पास न तो पूरा राशन था और न ही इस क्षेत्र की उन्हें विशेष जानकारी थी। यदि सदाशिव भाऊ के महाराजा सूरज मल से मतभेद न होते, तो इस युद्ध का परिणाम भारत के लिए शुभ होता। महाराजा सूरज मल ने अपनी मित्रता निभाई। उन्होंने शेष बचे घायल सैनिकों के लिए अन्न, वस्त्र और चिकित्सा का प्रबंध किया। महारानी किशोरी ने जनता से अपील कर अन्न आदि एकत्र किया। ठीक होने पर वापस जाते हुए हर सैनिक को रास्ते के लिए भी कुछ धन, अनाज तथा वस्त्र दिये। उन दिनों उनके क्षेत्र में भरतपुर के अतिरिक्त आगरा, धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुड़गांव और मथुरा सम्मिलित थे। महाराजा सूरजमल ने गाजियाबाद, रोहतक और झज्जर को जीता।
25 दिसम्बर, 1763 को नवाब नजीबुद्दौला के साथ हुए युद्ध में गाजियाबाद और दिल्ली के मध्य हिंडन नदी के तट पर महाराजा सूरज मल ने वीरगति पायी। उनके युद्धों एवं वीरता का वर्णन सूदन कवि ने ‘सुजान चरित्र’ नामक रचना में किया है। बताते हैं कि 1763 में उसकी मृत्यु के समय उसका राज्य विस्तार-भरतपुर, अलवर, धौलपुर, आगरा, बुलंदशहर, सहारनपुर, मथुरा, होडल, पलवल, गुड़गाँव, बल्लभगद, रेवाड़ी, अलीगढ़, हाथरस,मैनपुरी तथा दिल्ली के आसपास का क्षेत्र था।
सूरजमल ने हाडल के सरदार की बेटी किशोरी से शादी की थी। अपने पति की मृत्यु के बाद भी रानी किशोरी ने भरतपुर के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य किया। महाराजा सूरज मल की मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र जवाहर सिंह भरतपुर के महाराजा बने ।