जल केवल जल नहीं है बल्कि यह जीवन का रस है, जीवनी शक्ति है और इसी में जीवन की गति है। जल हमारे लिए ईश्वरका सबसे बड़ा वरदान है जो हमें वर्षा, झरनों, धरती के स्रोतों, नदियों, तालाबों, कूपों और बांधों आदि से प्राप्त होता है। अत: यह हमारा पुनीत कर्तव्य है कि हम इस ईश्वरीय वरदान को सहेजें तभी हमारा कल्याण हो सकेगा। अन्यथा जिस दौर से हम गुजर रहे हैं, अंधाधुंध दोहन और अविवेकपूर्ण तरीके से इसका उपभोग कर रहे हैं उससे वह दिन दूर नहीं जब जल के अभाव में हमारा अस्तित्व ही संकट में पड़ जाए।
प्रकृति की इस अप्रतिम संजीवनी सम्पदा को सहेज कर रखने के प्रयत्न प्रारम्भ से ही किये जाते रहे हैं क्योंकि जहां जल है वहीं जीवन, प्राण और स्पन्दन है, जीवन की गति और प्रकृति की लय है। राजस्थान चूंकि मरु प्रदेश रहा है अत: जल को सहेजने के लिए कुएं, बावड़ी, तलाई, सर, सागर, समन्द, सरोवर, तालाब, जोहड़, झील, नाड़ी, कुण्ड, खड़ीन आदि बनाने की परम्परा रही है। इतना ही नहीं पुराने भवन स्थापत्य में तो वर्षा जल व्यर्थ न बहे, इसके लिए घर में ही टांका, टंकी, कुण्डी आदि भी बनाये जाते थे ताकि मकान की छत से होता हुआ यह जल उस कुण्ड में एकत्र हो जाए। यही जल वर्ष भर घर में उपयोग होता था। बीकानेर के पुराने घरों में आज भी इस तरह का स्थापत्य देखा जा सकता है।
राजस्थान के हर क्षेत्र में जल संचय के पारम्परिक तरीके अपनाये गये । यही कारण है कि प्रत्येक जिले में कुएं, बावड़ी आदि मिल जाते हैं। इतना ही नहीं इन जल स्रोतों को ऐसा कलात्मक रूप दिया गया कि वे जल स्थापत्य के अद्भुत नमूने बन गये। चाहे पानी के वेग को रोक कर बांध बनाया गया हो, पहाड़ों की गोद में पानी को रोक कर अथवा खोद कर उसे झील का रूप दिया गया हो किन्तु उसे इस तरह का कलात्मक रूप दिया गया कि आज वे न केवल पर्यटन स्थल बन गये हैं अपितु आज उन्हें जल स्थापत्य के कलात्मक स्थापत्य की श्रेणी में रखा जाता है। शेखावाटी के कलात्मक कुएं, गड़ सीसर (जैसलमेर), सागर (अलवर) जैसे कलात्मक तालाब, राजसमन्द और जयसमन्द झील तथा जोधपुर की तापी बावड़ी, आभानेरी की चांद बावड़ी, अलवर की नीमराणा बावड़ी, दौसा में भांडारेज की बावड़ी तथा बूंदी की कलात्मक बावड़ियां इसी श्रृंखला के अनुपम उदाहरण हैं।
हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो के उत्खनन से भी कूप निर्माण के साक्ष्य मिले हैं। नांदसा यूप स्तम्भ पर तीसरी सदी का शिलालेख उत्कीर्ण है जिसमें कूप सरोवर का उल्लेख है। गंगधार से प्राप्त विक्रम संवत् 480 के शिलालेख में वापी (बावड़ी) निर्माण का उल्लेख है। जोधपुर के मण्डोर रेलवे स्टेशन के पास चट्टान खोद कर अंग्रेजी के ‘एल’ अक्षर की तरह एक बावड़ी है जो सातवीं सदी की मानी जाती है। ओसियां में आठवीं सदी की बावड़ी के अवशेष हैं। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में भी आठवीं सदी के सूर्य मंदिर के पास सूर्यकुंड है जो ‘मान मोरिय’ शासक के राज्यकाल में बना था। इसी प्रकार भीनमाल की बावड़ी, आहाड़ का गंगोद भेद कुण्ड तथा आठवीं सदी की ही आभानेरी बावड़ी सहित राजस्थान में अनेक ऐसी बावड़ियां हैं जो जल संचय की प्राचीन परम्परा के जीवन्त साक्ष्य हैं।
प्रतिहार कालीन बावड़ियों में आभानेरी की बावड़ी महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। बावड़ी में असंख्य सीढ़ियां और विचित्र गुंथाव को देखकर दर्शक चमत्कृत हो उठता है। अपराजित पृच्छा तथा विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र के अनुसार इस प्रकार की वर्गाकार, चारों ओर से खुली सोपानयुक्त बावड़ी विजया वापी की श्रेणी में आती है। इस बावड़ी में तीनओर सोपान श्रृंखलाएं तथा एक ओर देवकुलिकाएं हैं। बावड़ी का कलात्मक शिल्प और प्रतिमा सौन्दर्य दर्शनीय है।
भांडारेज गांव की बावड़ी बड़ी बावड़ी के नाम से विख्यात है। पांच मंजिली इस बावड़ी में पानी की सतह तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। सीढ़ियों के ऊपर बरामदे तथा पीछे की ऊपरी मंजिल पर अंधेरीउजाली है जहां पहुंचने पर दर्शक को अद्भुत रोमांच की अनुभूति होती है।
बूंदी में रानीजी की बावड़ी दर्शनीय है। इसका कलात्मक तोरण द्वार तथा इसका प्रतिमा शिल्प भी आकर्षण का केन्द्र है। उदयपुर की जयसमन्द झील मानवकृत कृत्रिम झीलों में विश्व प्रसिद्ध है। बांध पर जड़ा संगमरमर पत्थर तथा कलात्मक छतरियों और मंदिरों का सम्मोहन अद्भुत रोमांच उत्पन्न करता है। इसी प्रकार महाराणा राजसिंह के समय बनी राजसमन्द झील भी दर्शनीय है। संगमरमर से निर्मित सीढ़ियां, बांध पर बने कलात्मक मंडप और उनमें अद्भुत मूर्तिशिल्प तथा पचीस विशाल शिलाओं पर उत्कीर्ण राजप्रशस्ति महाकाव्य इस झील को कला, साहित्य एवं जल की त्रिवेणी बना देते हैं। बीकानेर की कोलायत झील भी दर्शनीय है।
अलवर जिले में महाराजा जयसिंह के समय बने जयसमन्द और विजय सागर दर्शनीय हैं वहीं राजप्रासादों के पीछे मूसी महारानी की भव्य एवं कलात्मक छतरी के पास बना सागर भी कलात्मक जल स्थापत्य का अद्भुत नमूना है। इसी जिले में नीमराणा की बावड़ी भी प्राचीन जल स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है।
जोधपुर की तापी बावड़ी प्राचीन एवं कलात्मक तो है ही, शहर की अन्य बावड़ियों से लम्बी भी है। छह खण्डों में विभाजित इस बावड़ी की प्रत्येक मंजिल कलात्मक है। जैसलमेर में यों तो अमर सागर, मूल सागर और गजरूप सागर जैसे अनेक जल स्थापत्य हैं किंतु गड़सीसर का कलात्मक स्थापत्य अनूठा है । जैसलमेर के दुर्ग एवं राजप्रासादों को देखने के उपरांत गड़सीसर दर्शकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र होता है।
जल संचय कलात्मक स्थापत्य – डॉ. देवदत्त शर्मा उपनिदेशक (सेवानिवृत्त) सूचना एवं जनसम्पर्क, जयपुर