एक जमाना था जब गुलाबी नगर की शान गुलाल गोटों की बड़ी धूम थी। जयपुर के मणिहारों के रास्ते में ये आज भी बनाये जाते हैं। गुलाल गोटे बनाने के लिए लाख में बेरजा और सोपस्टोन पाउडर मिलाकर उसे कढ़ाही में पिघला लिया जाता है। इस लाख को एक डंडी में लिपटा कर आग में तपाकर उससे छोटा टुकड़ा अलग कर तर्जनी अंगुली की सहायता से छेद करते हुए गोल कर लिया जाता है। उसे फुकनी में फंसा कर फूंक मारते हुए फुला लिया जाता है। ठंडा होने पर उसमें अरारोट की गुलाल भर कर रंगीन कागज चिपका कर उसका मुंह बंद कर दिया जाता है । गुलाल गोटे लाल, गुलाबी, हरे, बैंगनी, पीले आदि कई प्रकार के बनाये जाते हैं। जिस रंग का गोटा होता है उसमें उसी रंग की गुलाल भरी जाती है और मुंह पर भी उसी रंग का कागज चिपका होता है। ये ईको फ्रेंडली गुलाल गोटे जहां भी फूटते हैं रंगीला परिवेश सृजित कर देते हैं।