राजस्थान की प्रमुख ख्यात
‘ख्यात’ शब्द ‘ख्याति’ से अपभ्रंश होकर बना है जिसका आशय प्रसिद्धि होना अथवा प्रकाशित होना है। ख्यात ग्रंथों को राजस्थानी गद्य का उत्तम स्वरूप माना गया है जिनमें गद्य साहित्य की प्रायः समस्त विधाओं के दर्शन होते हैं। इस प्रकार बात, विगत, वंशावली, हकीकत आदि इतिहास विषयक रचनाओं का विकसित स्वरूप ख्यात साहित्य है।
ख्यात लेखन का कार्य ईसा की सत्रहवीं सदी में आरम्भ हुआ। भाट, बड़वे तथा जागे कहलाने वाले लोग अपने यजमानों की वंशावलियां लिखते थे। प्रारम्भ में मूलतः ख्यात शब्द का प्रयोग इन्हीं वंशावलियों के लिये हुआ।
वंशावलियां लिखने वालों के पास वंश विशेष का विवरण रहता था इसलिये उनका समाज में आदर किसी ऋषि जैसा होता था। यदा- कदा समाज के इस विश्वास को बनाए रखने के लिये ख्यात लिखने वाले भाट, बड़वे एवं जागे अपनी सूचनाओं को कल्पनाओं के आधार पर भी पूरा कर देते थे। नैणसी जैसे इतिहास संग्रहकर्ताओं ने अपनी ख्यातों को वंशावलियों के रूप में न लिखकर इतिहास संग्रह के रूप में लिखा। राजस्थान की अन्य पूर्व रियासतों मेवाड़, कोटा, बूंदी, आमेर की अपेक्षा मारवाड़ रियासत में ही ख्यात लेखन का कार्य प्रमुखता से हुआ।राजस्थान की प्रमुख ख्यातें इस प्रकार है :
मुहणोत नैणसी री ख्यात
- यह राजस्थान की पहली ख्यात है।
- मुंशी देवीप्रसाद ने नैणसी को राजपूताने का अबुल फजल कहा है।
- रामनारायण दुग्गड़ ने “मुहणोत नैणसी री ख्यात ” का हिंदी अनुवाद किया है।
मुहणोत नैणसी को मुहता नैणसी तथा मूथा नैणसी भी कहा जाता है। इनका जन्म वि.सं. 1667 में जोधपुर राज्य में हुआ। वे जोधपुर नरेश जसवंतसिंह प्रथम के दीवान थे। नैणसी ने अपने समय की समस्त महत्त्वपूर्ण घटनाओं का प्रामाणिक संकलन ‘नैणसी री ख्यात’ के रूप में तैयार किया जिसे राजस्थान की पहली ख्यात माना जाता है। इस ग्रंथ में तत्कालीन समाज और सभ्यता का जीवंत चित्रण है।
तत्कालीन कृषि, व्यापार, रीति- रिवाज, मान मर्यादा, देवी-देवता, सैन्य संगठन, सैनिक आक्रमण, अस्त्र, शस्त्र, शिकार, वेषभूषा, आभूषण, महल, दुर्ग, कुएं तथा उस समय चलने वाली मुद्राओं का भी वर्णन किया गया है। राजपूताने की मारवाड़, जैसलमेर, आमेर, बीकानेर, कोटा एवं बूंदी आदि विभिन्न रियासतों के साथ-साथ गुजरात, सौराष्ट्र, मालवा तथा बुंदेलखण्ड की रियासतों का भी इतिहास दिया गया है।
बांकीदास री ख्यात
कविराजा बांकीदास का जन्म संवत् 1828 में जोधपुर राज्य के पचपद्रा परगने के भांडियावास गाँव में हुआ। वे चारणों की आसिया शाखा से थे। ये डिंगल भाषा के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। बांकीदास जी को मारवाड़ का बीरबल भी कहा जाता है। ये जोधपुर महाराजा मानसिंह के काव्य गुरु थे। इन्होंने 26 ग्रंथों की रचना की।
इनमें से ‘बांकीदास री ख्यात’ सर्वप्रमुख रचना है। यह ग्रंथ ख्यात लेखन परम्परा से हटकर लिखा गया है। यह राजस्थान के इतिहास से सम्बन्धित घटनाओं पर लिखा गया 2000 फुटकर टिप्पणियों का संग्रह है। ये टिप्पणियां एक पंक्ति से लेकर 5 से 6 पंक्तियों में लिखी गई हैं तथा राजस्थान के इतिहास लेखन की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। नागरी प्रचारणी काशी ने बांकीदास ग्रंथावली का प्रकाशन किया।
उदैभाण चांपावत री ख्यात
मुहणोत नैणसी री ख्यात में मारवाड़ के राठौड़ शासकों का क्रमबद्ध इतिहास नहीं मिलता। इस अभाव की पूर्ति उदैभाण चांपावत री ख्यात करती है। इसमें प्रारम्भ से लेकर महाराजा जसवंतसिंह (प्रथम) तक मारवाड़ के शासकों की जीवन घटनाओं, युद्ध अभियानों, मुख्य उपलब्धियों और संतति आदि का क्रमबद्ध विवरण मिलता है। वहीं उनके कुंवरों से अंकुरित होने वाली शाखाओं के बारे में भी अलग से प्रकाश डाला गया है जो मारवाड़ के राठौड़ ठिकाणेदारों के परिचय और उनकी भूमिका को समझने में सहायक है।
ई.1678 में महाराजा जसवंतसिंह की मृत्यु हो जाने के बाद जोधपुर दुर्ग पर मुगलों का अधिकार हो गया इस काल में दुर्ग में संचित विपुल साहित्य नष्ट हो गया किंतु एक ताक में बंद पड़ी रह जाने से उदैभाण चांपावत री ख्यात बची रह गई। रघुबीरसिंह सीतामऊ ने इसका सम्पादन किया।
जोधपुर राज्य री ख्यात
महाराजा मानसिंह (1803-43 ई.) ने इतिहास की बिखरी हुई सामग्री का संकलन करवाकर वृहदाकार ख्यात की रचना करवाई जो “राठौड़ों री वंशावली अर ख्यात” तथा जोधपुर राज्य री ख्यात के नाम से जानी जाती है। इसमें प्रारंभ से लेकर मानसिंह तक के शासकों का विस्तृत इतिहास लिपिबद्ध किया गया है।
इस मूल ख्यात की प्रतिलिपियां करते समय जोधपुर शासकों के नाम से अलग- अलग ख्यातें बना ली गई यथा- राव मालदेव री ख्यात, राव चंद्रसेन री ख्यात, मोटाराजा उदयसिंह री ख्यात, महाराजा जसवंतसिंह री ख्यात, महाराजा अजीतसिंह री ख्यात, महाराजा अभयसिंह री ख्यात, महाराजा विजयसिंह री ख्यात, महाराजा मानसिंह री ख्यात आदि।
मारवाड़ री ख्यात
इस ख्यात के प्रारम्भ में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा से लेकर महाराजा मानसिंह तक के शासकों, उनकी रानियों और मुत्सद्दियों आदि राजपरिवार से जुड़े हुए व्यक्तियों द्वारा बनवाए गए भवनों, कुओं, बावड़ियों, आदि जलाशयों का विवरण दिया गया है। इस ख्यात में महाराजा रामसिंह, महाराजा बखतसिंह, महाराजा विजयसिंह, महाराजा भीमसिंह के सम्पूर्ण कालखण्ड की और महाराजा मानसिंह के काल की प्रारम्भिक 10 वर्षों की घटनाओं का वर्णन किया गया है।
महाराजा जसवंतसिंह (प्रथम), अमरसिंह राठौड़ (नागौर), महाराजा अजीतसिंह और महाराजा अभयसिंह की कुछ घटनाओं का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। मारवाड़ के शासक जसवंतसिंह प्रथम से लेकर भीमसिंह तक के जन्म, मृत्यु, दाह संस्कार, ब्रह्मभोज आदि की भी जानकारी दी गई है। महाराजा मानसिंह द्वारा बनवाए गए मंदिरों, भवनों एवं जलाशयों की भी अच्छी जानकारी दी गई है। डॉ. हुकमसिंह भाटी ने मारवाड़ री ख्यात का सम्पादन किया है।
अन्य महत्त्वपूर्ण ख्यातें
शाहपुरा राज्य की ख्यात, झीथड़ां री ख्यात, मुरारीदान री ख्यात, मूंदियाड़ री ख्यात, ठिकाना पाल री ख्यात तथा गोगूंदा री ख्यात अन्य महत्त्वपूर्ण ख्यातें हैं।
दयालदास री ख्यात
यह राजस्थान की अंतिम ख्यात है।
दयालदास को राजस्थान का अंतिम ख्यातकार माना जाता है। उनका जन्म ई. 1798 में बीकानेर रियासत के कूबिया गांव में हुआ। 93 वर्ष की आयु में ई. 1891 में उनका निधन हुआ। उन्होंने बीकानेर राज्य की ख्यात लिखी जिसे ‘बीकानेर रै राठौड़ां री ख्यात’ तथा ‘दयालदास री ख्यात’ भी कहा जाता है। इसमें बीकानेर के राजाओं का प्रामाणिक इतिहास दिया गया है। इस ख्यात के बाद के समय की अब तक कोई भी ख्यात प्रकाश में नहीं आई है। अतः माना जा सकता है कि अठारहवीं शती के अवसान के साथ ही ख्यात लेखन परम्परा ने दम तोड़ दिया। तथा इसके कुछ ही समय बाद कर्नल टॉड ने राजस्थान में आधुनिक इतिहास लेखन का सूत्रपात किया।
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