भीलवाडा जिले में कोठारी नदी तट पर स्थित बागोर में महासतियाँ नामक स्थल पर डॉ. वी.एन.मिश्र के निर्देशन में 1967 से 1970 ई. तक उत्खनन कार्य किया गया। उत्खनन के दौरान यहाँ प्रागैतिहासिक काल की सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो चार से पाँच हजार ईसा पूर्व के माने जाते हैं। बागोर मध्य पाषाण कालीन सभ्यता का स्थल और लघुपाषाणोपकरणों का घर था। पाषाण के उपकरण के साथ-साथ मानव ने यहाँ लोह उपकरणों का प्रयोग भी किया।
बागोर सभ्यता से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
सभ्यता | उत्तरपाषाण कालीन सभ्यता |
जिला | भीलवाड़ा |
खुदाई स्थल | महासतियाँ स्थल |
नदी क्षेत्र | कोठारी नदी |
उत्खनन कार्य | वी.एन. मिश्रा(1967-1970) |
बागोर सभ्यता के तीन स्तरों के अवशेष प्राप्त हुए है।
प्रथम स्तर – 4480-3285 ईसा पूर्व
इस स्तर के उत्खनन से प्राप्त लघुपाषाणास्त्र एवं मृत पशुओं के अवशेष से मानव की भोजन संग्राहक अवस्था एवं शिकार से जीवन निर्वाह करने का अनुमान लगाया जाता है। मृत शरीर का ढाँचा भी मिला है जिसे अपने निवास पर ही पश्चिम-पूर्व दिशा में दफनाया गया था।
दूसरा स्तर – 2765-500 ईसा पूर्व
इस स्तर से मृदभांडों के अवशेष, आभूषण, धातु अस्त्र, तथा भोजन सामाग्री प्राप्त हुई है। तथा मृत शरीर पूर्व-पश्चिम दिशा में लेटे हुए मिले हैं। इस युग का मानव पाषाणोपकरण के साथ मिट्टी के बर्तन भी बनाता था तथा शिकार तथा कन्दमूल एकत्र करने के साथ ही वह पशुपालन एव कृषि करना भी सीख गया था। उत्खनन से प्राप्त अवशेष मृत शरीरों को घरों में गाड़न तथा उनके साथ बर्तन, खाद्य पदार्थ व उपकरण रखना प्रमाणित करते हैं।
तीसरा स्तर – 500 ईसा पूर्व से चौथी सदी तक का माना जाता है।
सभ्यता के इस स्तर से लोहास्त्रों के साथ-साथ चाक पर बने मृदभांड एव बर्तन मिले हैं जो अच्छी तरह से पके हुए और सुदृढ़ हैं। यहाँ से बड़ी संख्या में लघुपाषाणोपकरण मिले हैं, जो मानव की निर्भरता आखेट पर होना प्रमाणित करते हैं। आवास बनाने के लिए पत्थर के साथ ईंटों का प्रयोग किया गया तथा मृत शरीर उत्तरदक्षिण दिशा में लिटाया जाने लगा।
बागोर से प्राप्त मुख्य वस्तुएं
- तांबे की छेद वाली सुई
- लघु पाषाण उपकरण
- कृषि व पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य
- मृदभांड के अवशेष, धातु अस्त्र, आभूषण तथा भोजन सामाग्री
- मृत पशुओं के अवशेष
- अपने निवास पर दफनाया गया मृत शरीर का ढाँचा