मेवाड़ के गुहिल

गुहिल वंश

मेवाड़ को प्राचीन काल में शिवि, प्राग्वाट, मेदपाट कहा गया है। गुहिल वंश को गुहिलोत, गोहिल्य, गोहिल, गोमिल भी कहा गया है। इस वंश का आदिपुरुष गुहिल था। इस कारण इस वंश के राजपूत जहाँ-जहाँ जाकर बसे उन्होंने स्वयं को गुहिलवंशीय कहा। गौरीशंकर हीराचन्द ओझा गुहिलों को विशुद्ध सूर्यवंशीय मानते हैं, जबकि डी. आर. भण्डारकर के अनुसार मेवाड़ के राजा ब्राह्मण थे।

आहड़ से पूर्व गुहिल वंश की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र नागदा था। गुहिलों ने तेरहवीं सदी के प्रारम्भिक काल तक मेवाड़ में कई उथल-पुथल के बावजूद भी अपने कुल परम्परागत राज्य को बनाये रखा।

गुहिल वंश के शासक

गुहिल
  • गुहिल या गुहादित्य – गुहिल वंश का संस्थापक था।
  • भगवान राम के पुत्र कुश व वंशज माना जाने वाला गुहिल आनन्दपुर (गुजरात) का निवासी था।
  • गुहिल ने 565ई. में नागदा (उदयपुर) को अपनी राजधान बनाकर स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
  • इनके पिता का नाम शिलादित्य एवं माता का नाम पुष्पवती था।
बप्पा रावल
  • बप्पा का मूल नाम कालभोज था तथा ‘बप्पा’ इसकी उपाधि थी।
  • बप्पा रावल महेन्द्र द्वितीय का पुत्र था।
  • हारित ऋषि के शिष्य बापा रावल ने 734 ई. में मार्य राजा मान मोरी से चित्तौड़ दुर्ग जीता।
  • बप्पा रावल ने कैलाशपुरी में एकलिंग मंदिर का निर्माण करवाया।
  • बापा रावल भगवान एकलिंग नाथ को अपना कुलदेवता मानता था।
  • बप्पा ने सोने के सिक्के चलाए थे।
  • एकलिंग जी के पास इनकी समाधि ‘बप्पा रावल’ नाम से प्रसिद्ध है।
  • इतिहासकार सी. वी. वैध ने बप्पा को ‘चार्ल्स मार्टल’ कहा है |
  • रावल खुमाण (753 ई०
  • मत्तट (773 – 793 ई०)
  • भर्तभट्त (793 – 813 ई०)
  • रावल सिंह (813 – 828 ई०)
  • खुमाण सिंह द्वितीय (828 – 853 ई०)
  • महायक (853 – 878 ई०)
  • खुमाण तृतीय (878 – 903 ई०)
  • भर्तभट्ट द्वितीय (903 – 951 ई०)
अल्लट (951 – 971 ई०)
  • अल्लट (आलूराव) के समय मेवाड़ में बड़ी उन्नति हुई।
  • उसने आहड़ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
  • उसने मेवाड़ ने सर्वप्रथम नौकरशाही का गठन किया।
  • उसने हूण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया
  • नरवाहन (971 – 973 ई०)
  • शालिवाहन (973 – 977 ई०)
  • शक्ति कुमार 977 – 993 ई०
  • अम्बा प्रसाद – 993 – 1007 ई०
  • शुची वरमा – 1007 – 1021 ई०
  • नर वर्मा – 1021 – 1035 ई०
  • कीर्ति वर्मा – 1035 – 1051 ई०
  • योगराज – 1051 – 1068 ई०
  • वैरठ – 1068 – 1088 ई०
  • हंस पाल – 1088 – 1103 ई०
  • वैरी सिंह – 1103 – 1107 ई०
  • विजय सिंह – 1107 – 1127 ई०
  • अरि सिंह – 1127 – 1138 ई०
  • चौड सिंह – 1138 – 1148 ई०
  • विक्रम सिंह – 1148 – 1158 ई०
  • रण सिंह (कर्ण सिंह ) – 1158 – 1168 ई०
  • क्षेम सिंह – 1168 – 1172 ई०
    • गुहिल शासक क्षेमसिंह (रणसिंह) ने मेवाड़ की रावल शाखा को जन्म दिया।
  • सामंत सिंह – 1172 – 1179 ई०
  • कुमार सिंह – 1179 – 1191 ई०
  • मंथन सिंह – 1191 – 1211 ई०
  • पद्म सिंह – 1211 – 1213 ई०
जैत्र सिंह – 1213 – 1261 ई०
  • तुर्क शासक इल्तुतमिश के नागदा आक्रमण (1222-29 ई.) का सफल प्रतिरोध किया।
  • जयसिंह सूरी के नाटक हम्मीर मान-मर्दन में इसका वर्णनमिलता है।
  • इन्होंने नागदा के स्थान पर चित्तौड़ को मेवाड़ की राजधानीबनाया |
  • सन् 1248 ई. में सुल्तान नासिरूददीन महमूद ने मेवाड़ परआक्रमण किया किन्तु उसे जैत्रसिंह ने हराया।
  • जत्रसिंह के वंशज कुम्भकरण ने नेपाल में इस वंश की नींव डाली।
तेज सिंह -1261 – 1273 ई०
  • तेजसिंह ने महाराजधिराज, परमेश्वर व परमभट्टारक उपाधियाँ धारण की।
  • उसके शासन काल में ‘श्रावक प्रतिक्रमण सुत्रचुर्णी’ पुस्तक – की रचना की गयी थी।
समर सिंह – 1273 – 1301 ई०
रतन सिंह ( 1301-1303 ई० )
  • राजा रतनसिंह की रानी पद्मिनी के जौहर की गाथा विश्व प्रसिद्ध है।
  • गौरा-बादल रत्नसिंह के सेनापति थे।
  • उनके समय चित्तौड़ का प्रथम साका (26 अगस्त 1303 ई.) हुआ था।
  • रतनसिंह की मृत्यु के साथ रावल शाखा समाप्त हो गई।
  • अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का राज्य अपने पुत्र खिज्र खां को सौंपकर उसका नाम खिजाबाद रखा।
  • इस युद्ध (1303 ई.) में इतिहासकार अमीर खुसरों उपस्थित था।
  • अलाउद्दीन के आक्रमण के कारणों में उसकी महत्वाकांक्षा, चित्तौड़ की महत्वूपर्ण भौगोलिक स्थिति एवं रानी पद्मिनी को प्राप्त करना प्रमुख था।
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