हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास वर्ष का आठवां महीना होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह अक्टूबर-नवम्बर महीने में आता है।इस महीने में पूजा, दान पुण्य का विशेष महत्व होता है। इस माह में करवा चौथ, धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, छठ महापर्व व देवोत्थान एकादशी समेत कई पर्व आते है।
राजस्थान में कार्तिक मास में मनाये जाने वाले त्यौहार निम्न है :
कृष्ण पक्ष | शुक्ल पक्ष |
चतुर्थी – करवा चौथ यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे से आरंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के उपरांत संपूर्ण होता है। इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। चौथ माता का प्रमुख मंदिर सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है। चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया। | प्रतिपदा – गोवर्धन पूजा दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है।इस त्यौहार के पीछे लोककथा प्रचलित है जिसमे श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को देवराज इन्द्र के भीषण वर्षा के प्रकोप से बचाने के लिए लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा तभी से यह उत्सव हर वर्ष मनाया जाने लगा।नाथद्वारा में अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। भील जनजाति इसम भाग लेती है। |
अष्टमी – अहोई अष्टमी पुत्र की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से पुत्रवती महिलाएं इस दिन अहोई माता का व्रत करती हैं। | द्वितीया – भैया दूज/ राम दूज |
द्वादशी – गोवत्स द्वादशी | षष्टी – छठ पूजा |
एकादशी – रमा एकादशी | अष्टमी – गोपा अष्टमी इस दिन गायों की पूजा कर उन्हें हरा चारा खिलाया जाता है। तथा ग्वालों को भोजन करवाया जाता है। |
त्रयोदशी – धनतेरस(धन्वंतरि जयंती) | नवमी – आंवला नवमी/ अक्षय नवमी इस दिन महिलाएं आंवले के वृक्ष का पूजन करती है। इस वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास माना जाता है तथा यह श्री हरी विष्णु का प्रिय फल है, इसके अतिरिक्त आयुर्वेद के अनुसार भी आंवला अमृतफल देने वाला है इस कारन इसका महत्त्व बढ़ जाता है। |
चतुर्दशी – रूप चौदस/ रूप चतुर्दशी काली चौदस नरक चतुर्दशी | एकादशी – देवउठनी एकादशी प्रबोधिनी एकादशी तुलसी विवाह देवउठनी एकादशी तिथि पर चतुर्मास अवधि खत्म हो जाती है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को सो जाते हैं और देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन तुलसी व शालिग्राम विवाह भी संपन्न किया जाता है। इस तिथि से ही मांगलिक कार्यों प्रारंभ हो जाते हैं। |
अमावस्या – दिवाली दिवाली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह दीपों का त्योहार है। यह ‘अन्धकार पर प्रकाश की विजय’ को दर्शाता है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या रात्रि को दीयों की रोशनी से जगमगा दिया था। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। | पूर्णिमा – सत्यनारायण पूर्णिमा |
राजस्थान में कार्तिक मास में लगने वाले मेले निम्न है :
पुष्कर मेला, अजमेर
अजमेर जिले का पुष्कर हिन्दू धर्मावलम्बियों की आस्था का एक प्रमुख केन्द्र है। इसे तीर्थराज,कोंकण तीर्थ तथा तीर्थो का मामा भी कहा जाता है। कदाचित पूरे देश में यहीं ब्रह्माजी का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें विधिवत उनकी पूजा होती है। इसी मंदिर के पीछे की पहाड़ियों पर सावित्री और गायत्री माता के मंदिर भी हैं। यहाँ का रंगनाथ मंदिर तथा 52 घाट प्रसिद्ध है। इसी तीर्थ स्थली पुष्कर में प्रति माह की पूर्णिमा को तो मेला लगता ही है किन्तु कार्तिक माह की पूर्णिमा का मेला अपनी विशालता के कारण अनुपम माना जाता है। यह मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक चलता है। वैसे तो पूरे ही कार्तिक माह में पुष्कर तीर्थयात्रियों से भरा रहता है लेकिन कार्तिक पूर्णिमा पर तो यहां तिल धरने की भी जगह नहीं होती है। मेले के समय यहां सुबह 3-4 बजे से ही घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगती है और पूरे दिन यह क्रम चलता रहता है। सायं यहां दीपदान भी होता है। मेला अवधि के पूर्वार्द्ध में पशु मेला और उत्तरार्द्ध में धार्मिक मेला प्रमुख होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि किसी समय पुष्कर में विजनाथ नामक राक्षस का आतंक हुआ करता था। कहा जाता है कि इस राक्षस ने ब्रह्मा जी की सन्तानों की भी हत्या कर दी थी। जब इस बात की जानकारी स्वयं ब्रह्मा जी को हुई तो उन्होंने प्रकट होकर कमल के पुष्प से राक्षस का संहार किया। कमल की पंखुड़ियां जिन तीन स्थानों पर गिरी वहां झीलें बन गई। माना जाता है कि पुष्कर उन्हीं तीन झीलों में से एक है। राक्षस के संहार के बाद ब्रह्मा जी ने इसी स्थान पर एक यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं और ऋषि मुनियों को भी आमंत्रित किया। वह यज्ञ कार्तिक मास में सम्पन्न हुआ था। इसीलिए कार्तिक मास में लगने वाले इस मेले को महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस मेले के अवसर पर यहाँ बहुत विशाल बाजार भी लगता है और विदेशी पर्यटक भी खूब आते हैं। इसी मौके पर राज्य सरकार का पर्यटन विभाग भी अनेक प्रकार के आयोजन कर मेले की शोभा और आकर्षण में वृद्धि करता है।
कपिल मुनि का मेला (कोलायत, बीकानेर)
कोलायत में लगने वाला कपिल मुनि का मेला बीकानेर जिले का एक बड़ा मेला माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाला यह मेला सांख्य दर्शन के जनक कपिल मुनि के सम्मान में होता है। कोलायत का मूल नाम भी उन्हीं के नाम पर कपिलायतन था। भक्त गण मेले वाले दिन पवित्र नदी में स्नान कर अपने को धन्य करते हैं। इस मेले के अवसर पर यहाँ एक विशाल पशु मेला भी लगाया जाता है।
चंद्रभागा मेला(झालरापाटन, झालावाड़)
झालावाड़ के झालरापाटन में कार्तिक मास की पूर्णिमा को यह मेला चंद्रभागा नदी के सम्मान में लगाया जाता है।कार्तिक मास के पूरे चांद में इस नदी में स्नान करना उत्तम माना गया है। इस दिन दूर दूर से श्रद्धालु आकर यहाँ डुबकी लगाते हैं।इसे हाड़ोती का सुरंगा मेला भी कहा जाता है।
इस मेले की ख़ासियत यहाँ का पशु मेला है। पशु पालन विभाग की देख रेख में बहुत बड़ा पशु मेला लगता है, जिसमें कई अलग अलग पशु प्रदर्शित होते हैं। साथ ही में सबसे स्वस्थ और सुंदर पशु को इनाम भी दिया जाता है।मध्य प्रदेश से बड़ी संख्या में व्यापारी यहाँ पहुँचते है। मालवी नस्ल के पशुओं के क्रय-विक्रय के लिए यह मेला प्रसिद्ध है।
रामेश्वरम मेला, सवाईमाधोपुर
राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित तीन नदियों के संगम पर बना भगवान शिव का पवित्र स्थल राजस्थान का त्रिवेणी संगम नाम से प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां तीन प्रमुख नदियाँ बनास नदी, चंबल नदी, सींप नदी आके मिलती है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष ‘कार्तिक पूर्णिमा’ एवं ‘महा शिवरात्री’ पर विशाल मेला भरता है, लाखों की तादाद में यहाँ पर भीड़ इकट्ठा होती है। इसे राजस्थान में “मीणा जनजाति का प्रयागराज” भी कहाँ जाता है। इस त्रिवेणी संगम के पास ही भगवान चतुर्भुजनाथ का मंदिर भी बना हुआ है।
नोट :
- तीर्थराज/ तीर्थों का मामा/ कोंकण तीर्थ – पुष्कर
- तीर्थों का भांजा – मचकुण्ड, धौलपुर
- तीर्थों की नानी – देवयानी(सांभर, जयपुर)