बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में चौहान साम्राज्य उत्तरी भारत में अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था। चौहान साम्राज्य का विस्तार कन्नौज से जहाजपुर (मेवाड़) की सीमा तक विस्तृत हो गया था। सोमेश्वर देव की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान 11 वर्ष की अल्पायु में सिंहासन पर बैठा । माता कर्पूरीदेवी अपने अल्पवयस्क पुत्र के राज्य की संरक्षिका बनी। अपने मंत्री व सेनापति के सहयोग से पृथ्वीराज ने शासन चलाया। उसने अपने विश्वस्त सहयोगियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया।
साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से पृथ्वीराज चौहान ने पड़ोसी राज्यों के प्रति दिग्विजय नीति का अनुसरण किया। 1182 ई. में महोबा के चन्देल शासक को पराजित किया। इसके उपरांत पृथ्वीराज चौहान का चालुक्यों से एवं कन्नौज के गहड़वालों से संघर्ष हुआ।
पृथ्वीराज चौहान के संघर्ष
सन् 1178 में गजनी के शासक मोहम्मद गौरी ने गुजरात पर आक्रमण किया। यहां के शासक भीमदेव चालुक्य ने खासहरड़ के मैदान में गौरी को बुरी तरह परास्त किया। गौरी ने सीमा प्रान्त के राज्य सियालकोट और लाहोर पर अधिकार किया। सन् 1186 से 1191 ई. तक मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान से कई बार पराजित हुआ । हम्मीर महाकाव्य के अनुसार 07 बार, पृथ्वीराज प्रबन्ध में 08 बार, पृथ्वीराज रासो में 21 बार, प्रबन्ध चिन्तामणि में 23 बार मोहम्मद गौरी के पराजित होने का उल्लेख है। दोनों के मध्य दो प्रसिद्ध युद्ध हुए।
तराइन का प्रथम युद्ध
तराइन के प्रथम युद्ध में 1191 ई. में राजपूतों के प्रहार से गौरी की सेना में तबाही मच गई तथा गौरी गोविन्दराय के भाले से घायल हो गया, उसके साथी उसे बचाकर ले गये। पृथ्वीराज ने गौरी की भागती हुई सेना का पीछा नहीं किया।
तराइन का दूसरा युद्ध
सन् 1192 में गौरी पुनः नये ढंग से तैयारी के साथ तराइन के मैदान में आ डटा। मोहम्मद गौरी ने सन्धिवार्ता का बहाना करके पृथ्वीराज चौहान को भुलावे में रखा। गौरी ने प्रातःकाल राजपूत जब अपने नित्यकार्य में व्यस्त थे, तब अचानक आक्रमण कर दिया। गोविन्दराय व अनेक वीर योद्धा युद्ध भूमि में काम आये। गौरी ने भागती हुई सेना का पीछा किया व उन्हें घेर लिया। दिल्ली व अजमेर पर तुर्कों का अधिपत्य हो गया। पृथ्वीराज रासो में उल्लेख है कि पृथ्वीराज को गजनी ले जाया गया, उन्हें नेत्रहीन कर दिया गया। वहाँ पृथ्वीराज ने अपने शब्द भेदी बाणों से गौरी को मार दिया और उसके बाद स्वयं को समाप्त कर दिया, किंतु इतिहासकार इस बात पर एकमत नहीं हैं।
पृथ्वीराज वीर,साहसी एवं विलक्षण प्रतिभा का धनी था। पृथ्वीराज का विद्या एवं साहित्य के प्रति विशेष लगाव था। जयानक, विद्यापति, बागीश्वर, जनार्दन, चन्दबरदाई आदि उसके दरबार में थे।
पृथ्वीराज ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा की दृष्टि से पड़ोसी राज्यों को अपनी शक्ति का परिचय कराया। कई आक्रमणकारियों को उसने बुरी तरह खदेड़ा, इसलिए इन राज्यों ने पृथ्वीराज चौहान की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखा। इतना सब होने पर भी पृथ्वीराज में दूरदर्शिता व कूटनीति का अभाव था। उसने पड़ौसी राज्यों से युद्ध करके शत्रुता उत्पन्न कर ली। गौरी को पराजित करने के बाद भी उसको पूरी तरह से समाप्त नहीं किया। डॉ. दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज चौहान को एक सुयोग्य शासक कहा है।