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SUBJECT – अंतरराष्ट्रीय संबंध
TOPIC – शीत युद्धोत्तर दौर में उदीयमान विश्व-व्यवस्था, संयुक्त राज्य अमरीका का वर्चस्व एवं इसका प्रतिरोध, संयुक्त राष्ट्र एवं क्षेत्रीय संगठन, अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की गत्यात्मकता, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद एवं पर्यावरणीय मुद्दे | भारत की विदेश नीति : उद्विकास, निर्धारक तत्व, संयुक्त राज्य अमरीका, चीन, रूस, यूरोपीय संघ एवं पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध, संयुक्त राष्ट्र, गुट निरपेक्ष आंदोलन, ब्रिक्स, जी- 20, जी-77 एवं सार्क में भारत की भूमिका ।
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Q1 ऑकस 2M
Answer:
- AUKUS 2021 में अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच गठित एक त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी है।
- इसका उद्देश्य सुरक्षा और रक्षा हितों का समर्थन करने के लिए प्रत्येक सरकार की क्षमता को मजबूत करना है।
- इस व्यवस्था का मुख्य आकर्षण ऑस्ट्रेलिया के साथ अमेरिकी परमाणु पनडुब्बी प्रौद्योगिकी साझा करना है।
- इसका इंडो-पैसिफिक अभिविन्यास इसे दक्षिण चीन सागर में चीन की मुखर कार्रवाइयों के खिलाफ एक गठबंधन बनाता है।
- इसमें तीन देशों के बीच बैठकों और जुड़ाव की एक नई पहल , साथ ही उभरती प्रौद्योगिकियों ( एआई, क्वांटम प्रौद्योगिकी और पानी के नीचे की क्षमताएं) में सहयोग शामिल है।
- AUKUS के प्रयास की दो प्राथमिक रेखाएँ हैं:
- स्तंभ I – पारंपरिक रूप से सशस्त्र, परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ
- स्तंभ II – उन्नत क्षमता विकास।
Q2 भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के महत्व और चुनौतियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। 5M
Answer:
यह एक प्रस्तावित पारगमन नेटवर्क है जिसका उद्देश्य एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप को एकीकृत करना है। इसमें रेलमार्ग, जहाज से रेल और सड़क परिवहन मार्ग और नेटवर्क शामिल हैं।
हस्ताक्षर: नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन में सहमति हुई। इस समझौते पर आठ हस्ताक्षरकर्ता शामिल हैं: भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई, यूरोपीय संघ, इटली, फ्रांस और जर्मनी।
IMEC का महत्व
- यह अमेरिका और यूरोपीय संघ की ओर से उभरती गैर-पश्चिमी शक्तियों की स्वीकृति के रूप में कार्य करता है।
- भारत और यूरोप के बीच व्यापार, ऊर्जा और डिजिटल संचार के प्रवाह को गति प्रदान करता है और अरब दुनिया के साथ रणनीतिक जुड़ाव बढ़ाने में भारत की मदद करता है।
- यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को और अधिक लचीला बनाएगा।
- चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
- भारत से यूरोप तक यात्रा के समय में अनुमानित 40% की कमी
- अनुकूलित मार्ग के माध्यम से पारगमन लागत में 30% तक की कटौती की जा सकती है।
- वैकल्पिक मार्ग लाल सागर चोकपॉइंट भेद्यता को रोकता है
चुनौतियाँ:-
- क्षेत्र की जटिल भू-राजनीति (इज़राइल-हमास-ईरान संकट)।
- सऊदी अरब और इज़राइल के बीच आधिकारिक राजनयिक संबंधों का अभाव।
- BRI परियोजना से संभावित विरोध और प्रतिस्पर्धा
- अन्य चुनौतियाँ: वित्तीय प्रतिबद्धताओं की कमी, समन्वय समस्या, रसद, कनेक्टिविटी चुनौतियाँ।
Q3 पश्चिम एशिया के साथ संबंधों में भारत के लिए आने वाले अवसरों और चुनौतियों का संक्षेप में वर्णन करें। 10M
Answer:
अनेक संघर्षों और प्रतिद्वंद्विताओं के कारण पश्चिम एशिया भारतीय कूटनीति के लिए एक जटिल और चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है।
- 2005 में लुक वेस्ट नीति को अपनाना भारत की अपने एशियाई पङौसी देशो के साथ जुङाव को दर्शाता है।
मध्य एशिया देशों में भारत हेतु अवसर
- व्यापार और निवेश:-
- संयुक्त अरब अमीरात : तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार , अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य; भारत-यूएई CEPA औपचारिक रूप से लॉन्च किया गया
- सऊदी अरब: पश्चिम तटीय रिफाइनरी प्रोजेक्ट (रत्नागिरी) – इस परियोजना के लिए सऊदी अरब से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश का वादा किया गया है।
- आवागमन हेतु पहल
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा: जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के दौरान घोषणा की गई → एक विशाल बुनियादी ढांचा परियोजना जो भारत को पश्चिम एशिया के माध्यम से यूरोप से जोड़ेगी, और चीन की बेल्ट और रोड पहल का विकल्प प्रस्तुत करेगा। यह अरब प्रायद्वीप के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी को गहरा करेगा।
- रणनीतिक साझेदारी: चाबहार बंदरगाह और INSTC जैसी परियोजनाएं कनेक्टिविटी और ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच में सुधार करती हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा:
- तेल आयात: भारत का 40% से अधिक कच्चा तेल पश्चिम एशिया से आता है; इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं।
- प्रवासी योगदान:
- भारतीय प्रवासी: संयुक्त अरब अमीरात में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय; यूएई की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान।
- प्रेषण: लगभग $40 बिलियन सालाना, जिसमें 82% पश्चिम एशिया से है।
- रणनीतिक साझेदारी
- इज़राइल: भारत के शीर्ष चार हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक, जिसकी सालाना बिक्री लगभग 1 बिलियन डॉलर है।
- संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब: आतंकवाद विरोधी और समुद्री सुरक्षा में सहयोग।
- राजनयिक और सांस्कृतिक जुड़ाव
- मध्य पूर्व क्वाड (I2U2):
- सदस्य: भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका।
- फोकस: आर्थिक, तकनीकी और राजनयिक सहयोग।
- सांस्कृतिक कूटनीति:
- RuPay कार्ड: वित्तीय संबंधों को मजबूत करने के लिए अबू धाबी में लॉन्च किया गया।
- दुबई में हिंदू मंदिर: भारतीय समुदाय के लिए एक सांस्कृतिक संकेत के रूप में उद्घाटन किया गया।
पश्चिम एशिया संबंधों में भारत के लिए चुनौतियाँ
क्षेत्रीय अस्थिरता और सुरक्षा चिंताएँ
- सैन्यीकरण: वैश्विक हथियारों के आयात में पश्चिम एशिया का हिस्सा 30% है।
- चल रहे संघर्ष: इज़राइल-गाजा, ईरान-इज़राइल शत्रुता, सीरियाई गृहयुद्ध, यमनी गृहयुद्ध।
भारतीय हितों पर प्रभाव
- ऊर्जा सुरक्षा: क्षेत्रीय संघर्षों के कारण मूल्य में अस्थिरता और आपूर्ति में व्यवधान।
- प्रवासी सुरक्षा: अस्थिर क्षेत्रों में भारतीय प्रवासी समुदाय के लिए जोखिम।
- आर्थिक प्रभाव:
- व्यापार में व्यवधान: अस्थिरता के कारण व्यापार मार्गों और निवेश पर संभावित प्रभाव।
- तेल की ऊंची कीमतें: बढ़ी हुई लागत भारत के चालू खाते घाटे और विदेशी मुद्रा भंडार को प्रभावित कर सकती है।
रणनीतिक असंतुलन
- प्रतिद्वंद्विता से निपटना:
- ईरान बनाम अरब राज्य: क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता के बीच संतुलित संबंध बनाए रखना।
- अमेरिका-इज़राइल संबंध: ईरान के साथ संबंधों का प्रबंधन करते हुए अमेरिका और इज़राइल के साथ तालमेल बिठाना।
- घरेलू राजनीतिक तनाव: कुछ पश्चिम एशियाई देशों के साथ संबंध आंतरिक राजनीतिक चुनौतियों का कारण बन सकते हैं।
बढ़ता चीनी प्रभाव: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) जैसी पहल और ईरान और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ गठबंधन के माध्यम से चीन का प्रभाव बढ़ रहा है।.
- मार्च 2021 में, चीन अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए तेल की स्थिर आपूर्ति के बदले में 25 वर्षों में ईरान में 400 बिलियन डॉलर का निवेश करने पर भी सहमत हुआ।
- इजराइल के हाइफा बंदरगाह का चीन ने विस्तार किया है
- यूएई उन पहले देशों में से एक था जिसे अपने 5जी प्रोजेक्ट के लिए हुआवेई (एक चीनी एमएनसी) की सहायता मिली थी।
निष्कर्ष:
पश्चिम एशिया के साथ भारत का जुड़ाव व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और रणनीतिक साझेदारी में महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है। हालाँकि, इसे क्षेत्रीय अस्थिरता, सुरक्षा चिंताओं और बढ़ते चीनी प्रभाव के कारण चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। अपनी नरम शक्ति का लाभ उठाकर, संतुलित नीति बनाए रखकर और लचीला और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाकर, भारत पश्चिम एशिया के जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य से निपट सकता है।
Q4. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 250 शब्दों में निबंध लिखिए –
बेरोज़गारी निवारण में शिक्षा की भूमिका
Answer:
बेरोज़गारी निवारण में शिक्षा की भूमिका
घर की दीवार भी अब टूट कर मुँह चिढ़ा रही,
बेरोज़गारी के जश्न में सबको शरीक होना था।
बेरोज़गारी के दर्द को बयाँ करती ये पंक्तियाँ बोल रही हों जैसे कि अब तो घर की दीवारों को भी इंतजार है, अगली पीढ़ी के रोज़गार का। बेरोज़गारी आज भारत की ही नहीं वरन् विश्व की सबसे बड़ी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं में से एक है। भारत में इस समय करोड़ों लोग बेरोज़गारी का सामना कर रहे हैं। कार्य अनुभव तथा आय के निश्चित क्षेत्र की अनुपस्थिति निर्धनता को जन्म देती हैं तथा इसके बाद निर्धनता व बेरोज़गारी का यह दुष्चक्र सदा चलता रहता है। बेहतर अवसरों की तलाश में युवा गाँव, प्रदेश अथवा देश से पलायन करते रहते हैं। ऐसे पलायन के फलस्वरूप उनका शोषण किये जाने का संकट बना रहता है। बेरोज़गारी की अधिकता से उनका शोषण किये जाने का संकट बना रहता है। बेरोज़गारी की अधिकता राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की प्रगति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।
युवाओं में बेरोज़गारी का मूल कारण अशिक्षा तथा रोज़गारपरक कौशल की कमी है। बेरोज़गारी व निर्धनता के निवारण का सबसे सशक्त माध्यम शिक्षा ही है। शिक्षा व्यापक अर्थों में लगभग हर सामाजिक-आर्थिक समस्या का समाधान बन सकती है, परंतु बेरोज़गारी निवारण में इसकी भूमिका अतुलनीय है। यदि भारत में शिक्षा तंत्र को जड़ से लेकर उच्चतम स्तर तक सशक्त बना दिया जाए तो बेरोज़गारी की समस्या का हल ढूँढना बेहद आसान हो जाएगा। यह ध्यान देने योग्य है कि प्राथमिक स्तर पर अवधारणा विकास तथा उच्च स्तरों पर रोज़गारपक कौशल विकास आधारित शिक्षा तंत्र को विकसित किया जाए।
प्राचीन समय में शिक्षा बिना किसी औपचारिक शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से दी जाती थी किंतु कालांतर में ‘शिक्षा’ संस्थाओं के माध्यम से दी जाने लगी। पहले मनुष्य प्रकृति, परिवेश एवं अपने अनुभवों तथा जीवन के संघर्षों के माध्यम से सीखता था। जब शिक्षा का संस्थानीकरण हुआ तो भेदभाव की भी शुरुआत हुई। हालाँकि शिक्षा सभी को समान रूप से प्रदान की जाती है लेकिन उसे ग्रहण करना व्यक्ति विशेष की मानसिक क्षमता पर निर्भर करने लगा। इससे सबकी योग्यताओं में भिन्नता आने लगी एवं ऐसे लोगों की संख्या में वृद्धि होने लगी। आगे चलकर जब उन्हें अपनी योग्यता अनुरूप कार्य नहीं मिला तो वे बेरोज़गार की श्रेणी में शामिल होते गए । हालाँकि शिक्षित या गैर-शिक्षित मनुष्य का बेरोज़गार होना ‘उत्पादन प्रणाली’ से जुड़ा हुआ मुद्दा माना जाता है। वर्तमान समय में शिक्षा सभी के लिये सुलभ नहीं है परंतु शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत भी रोज़गार प्राप्त नहीं हो रहा। इसलिये शिक्षा प्राप्त करने भर से रोज़गार मिलना ज़रूरी नहीं है। बेरोज़गारी एक सापेक्षिक अवधारणा है एवं शिक्षा द्वारा समझ विकसित की जाती है जिससे चेतना का आविर्भाव होता है। अतएव बेरोज़गारी एवं शिक्षा को दो भिन्न प्रकार से देखने की आवश्यकता है। बेरोज़गारी की समस्या का वास्तविक हल रोज़गार सृजन में ही निहित है।
यहाँ पर गांधी जी की प्रासंगकिता बढ़ जाती है जिन्होंने ‘चरखा’ को आधुनिक मशीनी सभ्यता के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत किया था। वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सर्वाधिक तीव्र गति से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। देश की तीव्र आर्थिक विकास दर को बनाए रखने के लिये हमें बड़े पैमाने पर कुशल मानव श्रम की आवश्यकता है। वर्तमान कोविड महामारी के दौरान बेरोज़गारी की संख्या में भी वृद्धि हुई है एवं लोगों के समक्ष जीविका का प्रश्न उपस्थित हो गया है। साथ ही इस विपदा के समय कुशल श्रम की आवश्यकता में भी वृद्धि हुई है। लेकिन यह विडंबना ही है कि भारत जैसे युवा देश में कुशल मानव कार्यबल की अत्यधिक कमी है। यह भी देखा गया है कि भारतीय युवा विनिर्माण उद्योगों में कार्य हेतु आवश्यक योग्यता नहीं रखते। ऐसे में यह आवश्यक है कि युवाओं को कौशल प्रशिक्षण एवं रोज़गारपरक शिक्षा दी जाए। इस समस्या के समाधान हेतु ही भारत सरकार द्वारा ‘‘स्किल इंडिया’’ कार्यक्रम चलाया जा रहा है जिसका उद्देश्य युवाओं को रोज़गारपरक कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।
भारत सरकार द्वारा ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ के तहत युवाओं में कौशल निर्माण के उद्देश्य से जगह-जगह कौशल विकास केंद्रों की स्थापना की गई है। इन केंद्रों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षणों द्वारा युवाओं के कौशल का विकास किया जाता है। स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया जैसी योजनाएँ भी इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इन योजनाओं के तहत भारत में प्रौद्योगिकी आधारित उद्योगों को विभिन्न प्रकार के अनुदान तथा कर लाभ प्रदान किये जाते हैं। इन योजनाओं के माध्यम से सरकार का लक्ष्य देश को विनिर्माण गतिविधियों का हब बनाना है, जिसके लिये लाखों की संख्या में कौशल प्रशिक्षित युवाओं की आवश्यकता है। यदि इन योजनाओं को सुचारु रूप से संचालित किया जाए तो न केवल उच्च आर्थिक संवृद्धि दर प्राप्त की जा सकती है बल्कि काफी हद तक बेरोज़गारी की समस्या का भी समाधान किया जा सकता है।
शिक्षा बेरोज़गारी दूर करने का लगभग अकेला माध्यम है, परंतु यह भी सुनिश्चित व विनियमित किया जाना आवश्यक है कि कितने लोगों को गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान की जा रही है तथा शिक्षा प्राप्ति के बाद उनकी रोज़गार तक पहुँच सुनिश्चित हो पाती है या नहीं। शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न होने पर यह स्थिति राष्ट्र व अर्थव्यवस्था के लिये अच्छी नहीं मानी जाती। भारत वर्ममान में शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या से ग्रस्त है। ऐसे में आगे बढ़ने के लिये अशिक्षितों को शिक्षा तथा शिक्षितों को उनकी क्षमता के अनुरूप रोज़गार दिलाने हेतु पर्याप्त प्रयास किये जाने चाहिये।
वर्तमान भूमंडलीकरण के दौर में शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप कैसा हो तथा आधारभूत संरचनात्मक संसाधनों की प्रकृति कैसी हो? यह एक विवाद का विषय है। देखा जाता है कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में कक्षा पाँच के छात्रों के पास न्यूनतम सामान्य ज्ञान भी नहीं होता। इस तरह से प्राथमिक स्तर पर ही असमान शिक्षा प्रणाली दो भिन्न मानसिक स्तर एवं योग्यता वाले छात्रों को जन्म देती है, जिन्हें रोज़गार प्राप्त करने हेतु भविष्य में एक ही प्रतियोगी परीक्षा में प्रतिस्पर्द्धी बनना पड़ता है। सरकारी हाईस्कूल व इंटर कॉलेजों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम व उनमें पढ़ाने वाले अध्यापकों की योग्यता भी वर्तमान समय की मांग अनुरूप नहीं है। वहीं दूसरी तरफ सीबीएसई व आईएससी जैसे केंद्रीय बोर्डों से निकलने वाले छात्र अपेक्षित रूप से राज्य बोर्ड के छात्रों से कुशल व भिन्न सोच वाले होते हैं। इस तरह माध्यमिक स्तर पर भी असमान प्रतिभा व योग्यता वाले छात्रों का एक वर्ग तैयार हो जाता है।
ऐसे में आवश्यक है कि प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर तक एक समान शिक्षा प्रणाली लागू की जाए। स्कूलों के विभिन्न स्तरों को समाप्त कर एक समान स्कूल प्रणाली अगर लागू कर दी जाए तो गरीब व अमीर परिवार दोनों के बच्चों की मानसिक योग्यता एक प्रकार की होगी। शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वाले अध्यापकों के लिये निरंतर मूल्यांकन प्रक्रिया का होना बहुत आवश्यक है। इसके अलावा शिक्षा संस्थानों को अत्याधुनिक संसाधनों जैसे- कंप्यूटर, प्रोजेक्टर, वाई-फाई जैसी सुविधाओं से भी सुसज्जित होना चाहिये।
हम पाते हैं कि शिक्षा समाज में आमूलचूल परिवर्तन लाने में सक्षम एक अस्त्र है, परंतु उसे कारगर बनाने हेतु उसका कुशल संचालन तथा लक्ष्य तय करना आवश्यक है। शिक्षा को रोज़गार से जोड़कर बेरोज़गारी एवं अन्य कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।