7 May Ras Mains Answer Writing

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Subject – सामान्य विज्ञान

Topicधातु, अधातु और उपधातु, धातुकर्म सिद्धांत और विधियाँ; महत्वपूर्ण अयस्क और मिश्र धातु, अम्ल, क्षार और  लवण, तर और बफर की अवधारणा

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Q1 उपधातु क्या हैं? चार उपधातुओं के नाम लिखिए।(2M)

Answer:

मेटलॉइड्स (उपधातु) वे तत्व हैं जो धातुओं और अधातुओं के बीच मध्यवर्ती गुण प्रदर्शित करते हैं।
वे आवर्त सारणी में ज़िग-ज़ैग रेखा के रूप में स्थित हैं, जो धातुओं को गैर-धातुओं से अलग करती हैं।

  • बोरोन: हरी लपटों के लिए आतिशबाजी में प्रयुक्त; सफाई एजेंट और कीट नियंत्रण।
  • सिलिकॉन: कंप्यूटर चिप; वाटरप्रूफ सीलेंट (सिलिकॉन)।
  • जर्मेनियम: अर्धचालक का उत्पादन
  • आर्सेनिक: ऐतिहासिक रूप से एक कीटनाशक के रूप में, अर्धचालकों का उत्पादन
  • सुरमा(एंटीमनी ): कॉस्मेटिक के रूप में; पेंट और सिरेमिक एनामेल में उपयोग किया जाता है।
  • टेल्यूरियम: विद्युत उत्पादन और शीतलन अनुप्रयोगों के लिए थर्मोइलेक्ट्रिक उपकरणों का निर्माण।
  • पोलोनियम: दुर्लभ और अत्यधिक रेडियोधर्मी; अत्यंत विषाक्तता के कारण सीमित उपयोग

Q2 बफर विलयन क्या हैं, और वे पीएच में परिवर्तन को किस प्रकार रोकते हैं? उदाहरण सहित समझाइये(5M)

Answer:

बफर विलयन जलीय घोल होते हैं जो थोड़ी मात्रा में अम्ल या क्षार मिलाने पर पीएच में बदलाव का विरोध करते हैं।

  • वे अतिरिक्त अम्ल या क्षार को बेअसर करने के लिए एक दुर्बल अम्ल और उसके संयुग्मित क्षार (या एक दुर्बल क्षार और उसके संयुग्मित अम्ल) के बीच संतुलन का उपयोग करके पीएच में परिवर्तन को रोकते हैं, जिससे विलयन का पीएच अपेक्षाकृत संकीर्ण सीमा के भीतर बना रहता है।
  • उदाहरण के लिए रक्त का pH मान 7.4 है → इसमें कार्बोनेट/बाइकार्बोनेट बफर होता है

Q3 धातुकर्म को परिभाषित करें और अयस्कों से धातुओं के निष्कर्षण में शामिल प्रमुख प्रक्रियाओं की संक्षेप में व्याख्या करें।(10M)

Answer:

धातु को उसके अयस्कों से अलग करने के लिए उपयोग की जाने वाली संपूर्ण वैज्ञानिक और तकनीकी प्रक्रिया को धातुकर्म कहा जाता है।अयस्क आमतौर पर पार्थिव या अवांछित पदार्थों से दूषित होते हैं जिन्हें गैंग कहा जाता है।
अयस्कों से धातुओं के निष्कर्षण और पृथक्करण में निम्नलिखित प्रमुख चरण शामिल हैं:

  1. क्रशिंग(तोडना) और पीसना : चूर्णीकरण ⇒ रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिए सतह क्षेत्र को बढ़ाने के लिए पाउडर तैयार किया जाता है।
  2. अयस्कों का सांद्रण → अशुद्धियाँ (गेज) निकालने की प्रक्रिया को
    1. भौतिक विधियाँ
      • हाइड्रोलिक(द्रवचालित) धुलाई: अयस्क और गैंग कणों के गुरुत्वाकर्षण में अंतर के आधार पर ⇒ गुरुत्वाकर्षण अलगाव। जैसे सोना, क्रोमियम और आयरन के लिए
      • चुंबकीय पृथक्करण: जब अयस्क या गैंग (इन दोनों में से कोई एक) चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आकर्षित होने में सक्षम हो। पूर्व पायरोलुसाइट (MnO2) और क्रोमाइट (FeO.Cr2O3)
      • झाग प्लवन: सल्फाइड अयस्कों से गैंग को हटाने के लिए। पाउडर अयस्क का एक निलंबन पानी के साथ बनाया जाता है, जिसमें संग्राहक (जैसे, पाइन तेल, फैटी एसिड, ज़ैंथेट) और झाग स्टेबलाइजर्स (जैसे, क्रेसोल, एनिलिन) जोड़े जाते हैं।
    2. रासायनिक विधियाँ
      • लीचिंग: आमतौर पर तब नियोजित किया जाता है जब अयस्क उपयुक्त विलायक में घुलनशील होता है।
        • बॉक्साइट से एल्युमिना की लीचिंग: बॉक्साइट की  ऊंचे तापमान और दबाव पर NaOH के सांद्रित घोल के साथ अभिक्रिया कराई जाती  है। यह Al2O3 को सोडियम एलुमिनेट के रूप में बाहर निकालता है, जिससे अशुद्धियाँ पीछे रह जाती हैं।
  • अन्य उदाहरण: चांदी और सोना ⇒ संबंधित धातु को हवा की उपस्थिति में NaCN या KCN के तनु घोल से निक्षालित किया जाता है।

3. अयस्क का धातु ऑक्साइड में रूपांतरण:

  • अस्थिर अशुद्धियों, नमी और सल्फर को हटाने के लिए हवा की उपस्थिति में गर्म करना (भर्जन) या हवा के बिना (निस्तापन )। → धातु ऑक्साइड को पीछे छोड़ना
भर्जन : मुख्यतः सल्फाइड अयस्कों के लिएनिस्तापन → कार्बोनेट अयस्कों के लिए

4. धातु ऑक्साइड का अपचयन /प्रगलन  (कोई भी एक प्रतिक्रिया पर्याप्त है)
1.प्रगलन एक भट्ठी में कोक (कार्बन) जैसे अपचायक  के साथ गर्म करके ऑक्साइड अयस्क से धातु निकालने की प्रक्रिया है
2. क्यूप्रस ऑक्साइड [कॉपर (आई) ऑक्साइड] से तांबे का निष्कर्षण: अपचायक  के रूप में कोक
Cu2O(s)+C(s)→2Cu(s)+CO(g)
3.ज़िंक ऑक्साइड से ज़िंक का निष्कर्षण
ZnO + C  → Zn + CO (coke,1673K)

5. शोधन/शुद्धिकरण: शोधन विधियों में आसवन, भिन्नात्मक क्रिस्टलीकरण, तरलीकरण, इलेक्ट्रोलाइटिक शोधन, क्षेत्र शोधन, वाष्प चरण शोधन और क्रोमैटोग्राफिक तरीके शामिल हैं।

Q.4 निम्नलिखित विषय पर लगभग 250 शब्दों में निबंध लिखिए- 

भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियाँ

Answer:

समानो मन्त्रः समिति समानो 
समानं मनः सह चित्तमेषाम 
समानं मंत्राभिः मन्त्रये वः 
समानेन वो हविषा जुहोनि !!

लोकतंत्र में समस्त शासन व्यवस्था का स्वरूप जन सहमति पर आधारित मर्यादित सत्ता के आदर्श पर व्यवस्थित होता है। हाल ही में नई दिल्ली में संसद 20 (Parliament-20) शिखर सम्मेलन ने विश्व के सामने भारत की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत और मूल्यों को प्रदर्शित किया। समावेशिता, समानता तथा सद्भाव पर ज़ोर भारतीय लोकतंत्र का केंद्र है। लोकतंत्र केवल शासन के रूप तक ही सीमित नहीं है, वह समाज का एक संगठन भी है। लोकतंत्र वह समाज है जिसमें जाति, धर्म, वर्ण, वंश, धन, लिंग आदि के आधार पर व्यक्ति व्यक्ति के बीच भेदभाव नहीं किया जाता है। इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए विधानमंडलों में आरक्षण व्यवस्था लागू की गयी। राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो, 1951 में पहले आम चुनाव के दौरान, भारत में 54 राजनीतिक दल थे और अब 2019 के आम चुनाव में यह बढ़कर 464 हो गया है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गहराई का प्रमाण है। राजनीतिक लोकतंत्र की सफलता के लिए उसका आर्थिक लोकतंत्र से गठबंधन आवश्यक है। आर्थिक लोकतन्त्र का अर्थ है कि समाज के प्रत्येक सदस्य को अपने विकास की समान भौतिक सुविधाएँ मिलें। आजादी के समय दो तिहाई जनसंख्या गरीबी से ग्रस्त थी जो अब 20 प्रतिशत के आसपास है। साथ ही, विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियान्वयन से लेकर 1990 के दशक के आर्थिक संकट से निपटने तक लोकतांत्रिक मूल्यों का विशेष ख्याल रखा गया और इसी दायरे में रहते हुए एक क्षेत्रीय शक्ति के केंद्र के रूप में उभरना इसका प्रमाण है। एक ओर घोर निर्धनता तथा दूसरी ओर विपुल संपन्नता के वातावरण में लोकतंत्रात्मक राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है।

भारतीय लोकतंत्र समृद्ध है, अनूठा है, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है; परन्तु अब भारत जिसने हर संकट की घड़ी में बिना धैर्य खोये हर मुसीबत का सामना किया, अनेकों बुराइयों से जकड़ गया; मसलन आतंकवाद, भ्रष्टाचार, आर्थिक विषमता, जातिवाद, सत्ता लोलुपता के लिए सस्ती राजनीति करना जो कि कभी कभी सामाजिक वैमनस्य के साथ साथ देश की एकता को ही संकट में डाल देता है, राजनीति में वंशवाद व भाई-भतीजावाद, न्यायिक प्रक्रिया में विलम्ब आदि-आदि। राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग ने सिविल और न्यायिक प्रशासन के बारे में कहा है कि प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, उदासीनता और अक्षमता ने गैर-कानूनी प्रणालियों, समानांतर अर्थ-व्यवस्थाओं और सामानांतर सरकारों तक को जन्म दिया है। इस कुशासन की वजह से लोगों का अब लोकतंत्र की संस्थाओं में अविश्वास और मोहभंग हो गया है। अनुच्छेद 311 ने सिविल सेवाओं को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की है, बेईमान अधिकारी अपने गलत कामों के परिणामों से बचने के लिए इस अनुच्छेद की आड़ लेते हैं। संविधान द्वारा स्थापित लोकतंत्रात्मक राज्य-व्यवस्था पर भारी दबाव है। राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतिकरण, बाहुबल, धनबल, और माफिया शक्ति के बढ़ते हुए महत्त्व, राजनीतिक जीवन में जातिवाद, साम्प्रदायिकता तथा भ्रष्टाचार के प्रभाव ने राजनीतिक परिदृश्य को विषाक्त कर दिया है। 17वीं लोकसभा में 50% सदस्य आपराधिक रिकॉर्ड वाले हैं। भारत में आजादी के इतने वर्ष बाद अभी भी गरीब और अशिक्षित है जो कि एक कलंक के समान है। खंडित समाज में राष्ट्र की एकता, राष्ट्रीय अखंडता या भारतीय अस्मिता राजनीतिक मंचों से बोले जाने वाले नारे-मात्र सिद्ध हुए हैं। देश के लिए गर्व का ये मुहावरा “विविधता में एकता” जो भारत के लिए प्रयोग किया जाता है, राजनीतिज्ञों के दु-राजनीति करने का हथियार बन चुका है। 

डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत पर flawed democracy का टैग लगाना और वी डेम रिपोर्ट द्वारा इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी की संज्ञा देना सोचनीय है। राजनीतिक व्यवस्था में सत्ता के व्यापारियों वोटों के लिए धर्म, जाति, भाषा, प्रदेश आदि के नाम पर फूट डालकर एकता को खंडित करते हैं। उनके लिए विकास, जनसेवा अथवा राष्ट्र-निर्माण की बात करना बेईमानी है। पद लोलुपता और शक्ति का केंद्र बनने की लालसा के चलते आंशिक बहुमत और गठबंधन सरकारें विकासात्मक मुद्दों के बजाय “रिजॉर्ट डेमोक्रेसी” तक सीमित हो गई हैं जहां राजनेताओं की बाड़ेबंदी और नवीन सरकार गठन की तरकीबों के पीछे समय जाया किया जाता है। यद्यपि भारत ने आजादी के 75 वर्षों के सफर में उल्लेखनीय प्रगति की हैं, अनेक समस्याओं का समाधान किया है, परंतु चुनौतियाँ खत्म नहीं हुई हैं। यदि हर स्तर पर सामूहिक कोशिश की जाए तो अनेक समस्याओं से और इन चुनौतियों से निजात पायी जा सकती है।

उपरोक्त चुनौतियों के समाधान हेतु नवाचारों की जरूरत है। हाल ही में सांसद शशि थरूर जी ने  संसद में सप्ताह में एक दिन “अपोजिशन डे” के रूप में घोषित करने की मांग की जो ब्रिटिश संसदीय नवाचार है। यह नवाचार मजबूत लोकतंत्र हेतु मजबूत विपक्ष की धारणा को बलवती बनाएगा। आलोचनाओं का स्वागत करने की परंपरा, सामाजिक समरसता, सांप्रदायिक सौहार्द, धर्म और जाति पर राजनीति के बजाय मुद्दा आधारित राजनीति पर बल दिया जाए। इस हेतु चुनाव आयोग को पहल करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को भी न्यायिक सक्रियतावाद के तहत नज़ीर पेश करनी चाहिए। सुधारों का एक विकल्प गांधी जी का मॉडल है जिसके अंतर्गत राजनीति को जनता की सेवा का साधन समझा जाता है, सत्ता का निम्न स्तर तक विकेंद्रीकरण होता है; साधारण व्यक्ति अपने को स्वतंत्र समझता है और शासन-कार्यों में भाग लेता है। शासन की इकाई गाँव होता है, सत्ता का रूख नीचे से ऊपर की ओर होता है, समूचा शासन पारदर्शी होता है। उपरोक्त समाधान और नवाचारों को अपनाते हुए अमृत काल के अंत (2047) तक हमें सही मायने में सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और राजनीतिक लोकतंत्र की प्राप्ति करनी होगी।

विश्व भारत को लोकतंत्र की जननी (mother of democracy) के रूप में जनता है, पर अब देश के सामने जो चारित्रिक संकट है जो व्यक्तिगत भी है और सामूहिक भी। हर कर्तव्यपरायण नागरिक को विशेषकर युवाओं को व्यवस्था में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आगे आकर अपना विरोध जताना चाहिए; उनमें सुधार का प्रयास करना चाहिए। भारत युवाओं का देश हैं, युवा ही देश का भविष्य है। अब उन्हें ही समस्याओं तथा चुनौतियों के मूल तक जाना होगा और समझ कर उसका निदान ढूँढना होगा। युवाओं को अब स्वामी विवेकानंद जैसे चिंतको के द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का समय आ गया है, उन्होंने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा है कि-

“उत्तिष्ठत जाग्रत, 
प्राप्यवरान्निबोधत ! 
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्या 
दुर्ग पथस्तत कवर्योवदन्ति !!”

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