4 April 2024 RAS Mains answer writing

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Subject – राजस्थान का इतिहास

Topic – राजस्थान के संत, लोक देवता एवं महत्वपूर्ण विभूतियाँ

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Q.1 केसरी सिंह बारहट कौन थे ?(2 M)

Sol:

  •  मेवाड़ (राजस्थान) में सक्रिय क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी ।
  • श्याम जी कृष्णवर्मा, रासबिहारी बोस और अन्य क्रांतिकारियों से संपर्क ।
  • 1903 में जब महा राज फतेहसिंह लॉर्ड कर्जन के “दिल्ली दरबार ” के लिए निकले तो उन्हों ने डिंगल में 13 व्यंग्यात्मक सोरठे – “चेतवानी रा चुंगट्या “ भेजा 
  • प्यारे लाल नामक संत की हत्या और देशद्रोह का आरोप लगा कर हजारी बाग जेल भेज दिया गया ।

अश्वघोष द्वारा लिखित “ बुद्ध चरित” का हिंदी अनुवाद और कवि राजा श्यामलदास की जीवनी लिखी ।

दादूदयाल की शिक्षाओं पर प्रकाश डालिए।(5M)

दादूदयाल, जिनका जन्म 1544 ई. में अहमदाबाद, गुजरात में हुआ था और जिन्हें ‘राजस्थान के कबीर‘ के नाम से जाना जाता है, ने आध्यात्मिक गतिविधियों से भरपूर जीवन जीया।

  • दादू ने कर्मकांड, जाति-प्रथा, मूर्ति पूजा, रूढ़िवाद आदि का कड़ा विरोध किया।
  • उन्होंने एकेश्वरवाद पर जोर दिया।
  • उन्होंने धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा दिया अर्थात ईश्वर वह है जो हिंदू-मुसलमान के बीच भेदभाव नहीं करता।
  • दादू ने ब्रह्म, जीव, जगत और मोक्ष पर अपनी शिक्षा सरल भाषा (सधुक्कड़ी) में दी।
  • उन्होंने निर्गुण भक्ति (भगवान का कोई अमूर्त रूप नहीं है) का प्रचार किया।

राजस्थान की सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति में प्रमुख लोक देवताओं के योगदान पर प्रकाश डालिए।(10M)

जिन व्यक्तियों ने मातृभूमि के लिए बलिदान दिया या नैतिक जीवन व्यतीत किया वे लोक देवता बन गये और धीरे-धीरे पूजा पद्धतियों का उदय हुआ। धीरे-धीरे, वे लोगों की पहचान और परंपराओं का अभिन्न अंग बन गये।

प्रसिद्ध लोक देवता → पंच पीर (पाबूजी, हरबूजी, रामदेवजी, गोगा जी और मेहा जी), मल्लीनाथ जी आदि

प्रसिद्ध लोक देवियाँ → करणी माता, जीण माता, शीतला माता आदि

सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व:

  1. समाज सुधारक: छुआछूत और जातिगत भेदभाव का विरोध किया, इसके बजाय सामाजिक सद्भाव और समानता को बढ़ावा दिया – रामदेव जी, करणी माता
  2. महिला सशक्तिकरण: दलित वर्ग की एक महिला रामदेव जी की मुंहबोली बहन थी
  3. सांप्रदायिक सद्भाव: उनकी पूजा विभिन्न समुदायों के लोगों को एक साथ लाती है, एकता और आपसी सम्मान को बढ़ावा देती है।
  • रामदेव को “पीरों का पीर” और सांप्रदायिक सद्भाव का देवता कहा जाता है
  1. ग्रामीण समुदायों के लिए पूजा का सरलीकरण
  • उन्होंने लोगों को यह अहसास कराया कि मंदिर, मूर्ति और उनसे जुड़े कर्मकांड निरर्थक हैं। यानी रामदेव जी ने मूर्ति पूजा का विरोध किया
  • लोक देवताओं में विश्वास उन्हें औपचारिक धार्मिक अध्ययन के बिना एकता, समानता और नैतिक मूल्यों के सांस्कृतिक मंत्रों को समझने में मदद कर रहा है।
  1. वीरता: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वीर फत्ता जी, डूंग जी-जवाहर जी
  2. पशु रक्षा: पाबूजी और तेजाजी ने गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया,
  3. स्थानीय साहित्य और स्थानीय भाषा को बढ़ावा: रामदेव जी ने “चोबीस वानिया” लिखी; देवनारायण जी की “फड़”।
  4. आध्यात्मिक उपचार: गोगा को सर्प रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। किसान खेत जोतने से पहले अपने हाथ में “गोगा रखड़ी” बांधते हैं
  5. मान्यताएँ → मामा देव – वर्षा के देवता, शीतला माता – चेचक की देवी,
  6. लोक संगीत और नृत्य → तेरह ताली (रामदेव जी), अग्नि नृत्य, रामदेव जी का जम्मा, फड़ आदि को बढ़ावा देना।
  7. मेले और त्यौहार → इन त्यौहारों में पारंपरिक संगीत और नृत्य सहित विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं, जो राजस्थान की सांस्कृतिक जीवंतता को बढ़ावा देती हैं।

पाबूजी का मेला – कोलमुंड गांव, गोगा जी का मेला – ददरेवा और गोगामेढ़ी

तेजाजी का पशु मेला – परबतसर (नागोर), मल्लीनाथ पशु मेला – तिलवाड़ा, शीतला माता गधा मेला – चाकसू

उनकी पूजा न केवल सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देती है बल्कि एकता और समानता को भी प्रोत्साहित करती है, जो विभिन्न त्योहारों और परंपराओं के माध्यम से राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाती है।

अधोलिखित गद्यांश उचित शीर्षक लिखिए और उसका एक-तिहाई (1/3) शब्दों में संक्षिप्तीकरण कीजिए।
प्राचीन भारतीय मनीषियों ने मानव-जीवन को चार पुरुषार्थों में विभक्त किया है : (1) धर्म (2) अर्थ (3) काम और (4) मोक्ष । आज संस्कृति शब्द का जो अर्थ ग्रहण किया जाता है, वे सब बातें इन चारों में आ जाती हैं । अन्य शब्दों में संस्कृति का ही प्राचीन नाम पुरुषार्थ है । इन चारों में मोक्ष का धर्म के साथ सीधा संबंध माना गया है । लेकिन यह तथ्य भी स्मरणीय है कि अर्थ और काम के लिए भी धर्म की मर्यादा को आवश्यक माना गया है । प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति की यह धारणा रही है कि जो व्यक्ति या समाज धर्म को छोड़ देता है, धर्म-विरुद्ध रास्ते पर चलता है, उसके अर्थ और काम भी नष्ट हो जाते हैं । वस्तुतः प्राचीन भारतीय संस्कृति अर्थ और काम को हेय नहीं मानती, बस उन पर धर्म का नियंत्रण आवश्यक मानती है । इससे यह स्पष्टत: ध्वनित होता है कि धर्म ही संस्कृति को धारण करने वाला आधारभूत तत्त्व है । जो अर्थ और काम धर्म सम्मत है, वह संस्कृति का ही अंश है । इसके विपरीत धर्म विरुद्ध अर्थ और काम संस्कृति के लिए घातक होने के साथ ही व्यक्ति और समाज के लिए भी पतन का कारण माने गये हैं I


शीर्षक-धर्म : मानवीय जीवन का केंद्र

भारतीय परम्परा के अनुसार धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष, संस्कृति शब्द में ही निहित हैं। पुरुषार्थ के इन चारो पहियों में धर्म वह धुरी है जिस पर अर्थ एवं काम का टिका होना बहुत आवश्यक है। धर्म के अनुसार किये गए काम एवं अर्थ ही मानव को मोक्ष की ओर अग्रसर करते हैं एवं अधार्मिक काम एवं अर्थ मानव जाती के लिए घातक हैं ।

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