राजस्थान के लोकदेवता : देवनारायण जी को सम्पूर्ण राजस्थान में लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। मुख्य रूप से ये गुर्जर समाज के आराध्य देव है। ये मेवाड शासक महाराणा साँगा के भी आराध्य देव थे इसी कारण राणा साँगा ने देवदूँगरी (चित्तौड़रगढ) मे देवनारायणजी का मंदिर बनवाया था ।
बाल्यकाल
देवनारायण जी का जन्म 1243 ई. के लगभग हुआ था। वे बगड़ावत प्रमुख भोजा और सेंदु गूजरी के पुत्र थे, इनका जन्म का नाम उदयसिंह था। इनके पिता इनके जन्म के पूर्व ही भिनाय के शासक से संघर्ष में अपने तेइस भाइयों सहित मारे गए थे। तब भिनाय शासक से इनकी रक्षा हेतु इनकी माँ सेढू इन्हें लेकर अपने पीहर मालवा चली गई।
वीरता गाथा
दस वर्ष की अल्पायु में देवनारायण जी पिता की मृत्यु का बदला लेने राजस्थान की ओर लौट रहे थे तो मार्ग में धारा नगरी में जयसिंह देव परमार की पुत्री पीपलदे से उन्होंने विवाह किया। कुछ समय बाद वे बदला लेने हेतु भिनाय पहुँचे। जहाँ गायों को लेकर भिनाय ठाकुर से हुए संघर्ष में देवजी ने उसे मौत के घाट उतार दिया। इन्होने गायों के रक्षार्थ भिनाय ठाकुर को मारा था। अतः इन्हे गौरक्षक लोक देवता के रूप में भी स्मरण किया जाता है। देवनारायण जी ने मुस्लिम आक्रमणकारियों से युद्ध करते हुए देवमाली ब्यावर में देह त्यागी थी।
देवनारायण जी की फड़ – ‘देवजी की फड़’
फड़ वाचन में उपयुक्त वाद्य यंत्र – “जन्तर”
इनके मुख्य अनुयायी गूर्जर देवजी और बगड़ावतों से संबद्ध काव्य ‘बगड़ावत’ के गायन द्वारा इनका यशोगान करते हैं।
भारत सरकार ने 2 सितम्बर 1992 को देवनारायण जी की फड़ पर 5रू. का डाक टिकट जारी किया था।
इनकी फंड राज्य की सबसे लम्बी फंड़ है। किंवदंती है कि हर रात तीन पहर गाये जाने पर यह छ: माह में पूर्ण होती है।
देवनारायण जी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
अन्य नाम | देव जी, आयुर्वेद के ज्ञाता, विष्णु के अवतार |
जन्म | 1243 ई. के लगभग(माघ शुक्ल सप्तमी) |
जन्म स्थान | मालासेरी डूंगरी, (आसींद, भीलवाड़ा) |
पिता | भोजा(बगड़ावत प्रमुख) |
माता | सेंदु गूजरी |
पत्नी | पीपलदे(जयसिंह देव परमार की पुत्री) |
कुल | बगडावत (नागवंशीय गुर्जर) |
घोड़ा | लीलागर |
मुख्य स्मृति स्थल/ मंदिर | आसींद (भीलवाड़ा) इस मंदिर में नीम के पतों का प्रसाद चढाया जाता है। |
मेला | देवनारायण जी की स्मृति में भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को आसींद(भीलवाड़ा) में मेला लगता है। भाद्रपद शुक्ल सप्तमी के दिन गुर्जर जाति के लोग दूध नही बेचते है। |
पूजा स्थल(देवरे) | देवधाम-जोधपुरिया (निवाई, टोंक) देवमाली (भीलवाड़ा) देवमाली (ब्यावर) देव डूंगरी (चित्तौड़) |
पूजा प्रतीक | देवनारायण जी के मंदिरों(देवरों) में उनकी प्रतिमा के स्थान पर ईंटों की पूजा की जाती है। |
फड़ | ‘देवजी की फड़’ फड़ वाचन में उपयुक्त वाद्य यंत्र – “जन्तर“ |