सहरिया जनजाति

सहरिया जनजाति

सहरिया शब्द की उत्पति ‘सहर’ से हुई है जिसका अर्थ जंगल होता है। यह राजस्थान राज्य की एक मात्र आदिम जाति है जिसे भारत सरकार ने आदिम जनजाति समूह (पी.टी.जी) में शामिल किया है यह बांरा जिले की किशनगंज एवं शाहबाद तहसीलों में निवास करती है। उक्त दोनों ही तहसीलों के क्षेत्रों को सहरिया क्षेत्र में सम्मिलित कर सहरिया वर्ग के विकास के लिये सहरिया विकास समिति का गठन किया गया है। क्षेत्र की कुल जनसंखया 2.73 लाख है जिसमें से सहरिया क्षेत्र की अनुसूचित जनजाति की जनसंखया 1.02 लाख है जो क्षेत्र की कुल जनसंखया का 37.44 प्रतिशत है।

कुलदेवता – तेजाजी
कुल देवी – कोडिया देवी
इष्टगुरु – ऋषि वाल्मीकि

सहरिया जनजाति से जुड़े कुछ शब्द :

निवास क्षेत्र :

  • सहराना – सहरिया जनजाति की बस्ती।
  • सहरोल – इस जनजाति के गांव।
  • हथाई या बंगला – सहरिया समाज की सामुदायिक सम्पति के रूप में सहराना के बीच में एक छतरीनमा गोल या चौकोर झोपडी या ढालिया बनाया जाता है। जिसमे पंचायत आदि का आयोजन किया जाता है।
  • टापरी – इनके मिट्टी, पत्थर, लकडी और घासफूस के बने घर।
  • थोक – एक गाँव के लोगों के घरों के समूह।
  • टोपा (गोपना, कोरूआ) – घने जंगलों में पेड़ों या बल्लियों पर बनाई गई मचाननुमा झोपड़ी।
  • कोतवाल – सहरिया जनजाति का मुखिया।
  • कुसिला – अनाज संग्रह हेतु मिट्टी से बनाई गई छोटी कोठियां।
  • भंडेरी – आटा संग्रह करने का पात्र।

वेशभूषा :

  • सलका – सहरिया पुरूषों की अंगरखी
  • खफ्टा – सहरिया पुरूषों का साफा
  • पंछा – सहरिया पुरूषों की धोती
  • रेजा – विवाहित महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला वस्त्र।

प्रमुख प्रथाएं :

  • इस जनजाति में भीख मांगना वर्जित हैं
  • सहरिया जनजाति में लड़की के जन्म को शुभ माना जाता है।
  • इस जनजाति के लोग महुवा के फल से बनाई गई शराब पीते हैं।
  • इस जनजाति के पुरूष वर्ग में गोदना वर्जित हैं।
  • चौरासिया पंचायत : सहरियों की सबसे बड़ी पंचायत है जिसका आयोजन सीतावाड़ी के वाल्मिकि मन्दिर में किया जाता हैं।
  • धारी संस्कार : मृत्यु के तीसरे दिन मृतक की अस्थियों व राख को एकत्र कर रात्रि में साफ आंगन में बिछाकर ढक देते है तथा दूसरे दिन उसमे बनने वाली आकृति के पदचिन्ह को देखते है। माना जाता है की इस से मृत व्यक्ति के अगले जन्म की योनि का पता लगाया जाता है। आकृति देखने के बाद अस्थियों एवं राख को सीताबाडी में स्थित बाणगंगा या कपिलधारा में प्रवाहित कर दिया जाता है।

लोकगीत व लोकनृत्य :

  • फाग व राई नृत्य – होली के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य।
  • हिन्डा – दीपावली के अवसर पर गया जाने वाला गीत।
  • लहंगी एव आल्हा – वर्षा ऋतु में गाये जाने वाले गीत।
  • शिकारी नृत्य – यह बारां जिले का प्रसिद्ध लोक नृत्य है।यह समूह नृत्य नहीं होकर एकल व्यक्ति नृत्य है
  • झेला- आषाढ़ माह में फसल की पकाई के समय युगल रूप से झेला गीत गाकर यह नृत्य किया जाता हैं।
  • इनरपरी – यह नृत्य पुरूष अपने मुंह पर भांति-भांति मुखौटे लगाकर करते हैं।
  • सांग – स्त्री-पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
  • लहंगी नृत्य
  • लैंगी – मकर संक्रांति पर लकड़ी के डंडो से खेला जाने वाला खेल।

मेलें :

  • सीताबाड़ी का मेला (बांरा) – यह मेला बारां जिले के सीताबाड़ी नामक स्थान पर वैषाख अमावस्या को भरता है।हाडौती आंचल का यह सबसे बडा मेला है। इसे सहरिया जनजाति का कुंभ भी कहते है।
  • कपिल धारा का मेला (बांरा) – यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को आयोजित होता है।
  • भंवरगढ़ का मेला – तेजाजी की स्मृति में लगने वाला मेला

3 thoughts on “सहरिया जनजाति”

  1. Can you please provide this content in English as well or it would be great if you could send it on Dhara Sanskriti.
    Thanks!

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