आयड़ सभ्यता

आहड़ सभ्यता

वर्तमान उदयपुर जिले में स्थित आहड़ सभ्यता, दक्षिण-पश्चिमी राजस्थान का सभ्यता का केन्द्र था। यह सभ्यता बनास नदी सभ्यता का प्रमुख भाग थी। ताम्र सभ्यता के रूप में प्रसिद्ध यह सभ्यता आयड़ नदी के किनारे मौजूद थी।

यह लगभग 4000 वर्ष पुरानी सभ्यता थी।यहाँ उत्खनन में बस्तियों के आठ स्तर मिले है। इन स्तरों से पता चलता है कि बसने से लेकर 18वीं सदी तक यहाँ कई बार बस्ती बसी और उजड़ी। ऐसा लगता है कि आयड़ के आस-पास तांबे की अनेक खानों के होने से सतत रूप से इस स्थान के निवासी इस धातु के उपकरणों को बनाते रहें और उसे एक ताम्रयुगीय कौशल केन्द्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उत्खनन में चौथे स्तर से तांबे की 2 कुल्हाड़ियाँ प्राप्त हुई है।

इसका संपर्क नवदाटोली, हड़प्पा, नागदा, एरन, कायथा आदि भागों की प्राचीन सभ्यता से भी था | उत्तरी काले चमकीले पात्र, ब्राह्मी शब्दों युक्त मिट्टी की मुहर, इंडो ग्रीक सिक्कों और कुषाण पात्रों के आधार पर इस काल का निर्धारण तृतीया शताब्दी पूर्व से द्वितीय शताब्दी ईस्वी किया गया है।

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अन्य नामताम्रवती नगरी, धूलकोट
उत्खननसर्वप्रथम
1953 में अक्षयकीर्ति व्यास एवं तत्पश्चात
1956 में रतनचंद्र अग्रवाल एवं
1961-62 में एच. डी. सांकलियाँ के निर्देशन में यहाँ उत्खनन कार्य हुआ।

आहड़ सभ्यता उत्खनन से प्राप्त मुख्य आकर्षण :

स्थापत्य

इस सभ्यता में लोग मकान बनाने में धूप में सुखाई गई ईंटों व पत्थरों का प्रयोग करते थे। बड़े व चौकोर मकान, पत्थर की नींव डालकर बनाते थे जबकि दीवारों के लिए मिटटी की ईंटों का प्रयोग होता था। मकान की छत पर बांस बिछा कर उस पर मिटटी का लेप किया जाता था। अनुमानित है कि मकानों की योजना में आंगन या गली या खुला स्थान रखने की व्यवस्था थी। पानी की निकासी हेतु नालियों के प्रमाण भी यहाँ मिले है।

घरेलु उपकरण

उत्खनन में मृदभांड सर्वाधिक मिले है। यहाँ मिले बर्तनो में भोजन के बर्तन की पाश्र्वभूमि काली है, किनारा लाल तथा कुछ बर्तनो में सफेदी से चित्रकारी भी की गई है। यह मृदभांड आहड़ को लाल-काले मृदभांड वाली संस्कृति का प्रमुख केंद्र सिद्ध करते है। अन्य उपयोग के बर्तन इन बर्तनो से भिन्न है। इनमे चित्रकारी नहीं है परन्तु उन्हें छोटे छोटे टुकड़ों से सजाया गया था किन्तु यहाँ सजावट केवल ऊपरी भाग में है जबकि निचला हिस्सा खुरदरा व रद्दी है, इस से अनुमान लगाया जाता है की यह बर्तन जमीन में गाड़ के रखे जाते थे।आहड़ का मानव विशिष्ट व नुकीले पत्थरों का उपयोग ब्लेड के रूप में चीज़ों को काटने में नहीं करता था। इसके लिए उसके पास धातु के औजार थे जो की आहड़ में ही बनाये जाते थे।

अर्थव्यवस्था

धातु का काम इस मानव की अर्थव्यवस्था का प्रमुख साधन था। ये लोग तांबा गलना जानते थे। यहाँ तांबे के औजार व उपकरणों के अत्यधिक प्रयोग के प्रमाण मिले है। ये लोग पशुपालन तथा कृषि का कार्य भी किया करते थे। उदयपुर के आसपास तांबे के भंडारों ने दूर दूर से लोगों को यहाँ आकर्षित किया। लेकिन वे कहाँ से आये ये स्पष्ट नहीं है। पर मनकों तथा तकली के नीचे के चक्के से इनकी बनावट 2000 ई.पू. में टर्की और ईरान के इसी प्रकार के पदार्थ से मिलती जुलती प्रतीत होती है। इससे लगता है की यह सभ्यता किसी न किसी रूप में पश्चिम एशिया के मानव तथा विचारों से सम्बंधित रही होगी। उत्खनन से प्राप्त ठप्पों से रंगाई-छपाई के व्यवसाय के उन्नत होने के प्रमाण भी यहाँ मिले है। यहाँ तौल के बाट व माप भी मिले है जिस से वाणिज्य व्यापर की उन्नति से संकेत मिलते है।

सामाजिक व घरेलु स्थिति

आहड़वासी चावल से परिचित थे। ये लोग कृषि व पशुपालन कार्य में भी संलग्न थे। एक मकान में 4 से 6 बड़े चूल्हों का होना आहड़ में वृहत् परिवार या सामूहिक भोजन बनाने की व्यवस्था पर प्रकाश डालते हैं | इस सभ्यता के लोग शवों को गाड़ते थे।

आहड़ से मिले प्रमुख सामग्री

  • तांबे की छह मुद्राएं
  • तृतीय ईसा पूर्व से प्रथम ईसा पूर्व की यूनानी मुद्राएँ मिली हैं।
  • ताम्बे की कुल्हाड़ियाँ
  • अंगूठियां, चूड़ियां
  • तांबे की कलाकृतियां व चद्दरे
  • मिट्टी व पत्थर के मनके व आभूषण
  • पक्की मिट्टी से मैल उतारने का उपकरण
  • सिर खुजलाने वाला उपकरण
  • द्वार को रोकने वाला उपकरण
  • पशु पक्षी की आकृति युक्त मिट्टी के खिलोने
  • एक से अधिक चूल्हे
  • पूजा पात्र, मनौती पात्र

आहड़ सभ्यता से जुड़े मुख्य स्थल

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