राजस्थान का पूर्वी मैदानी प्रदेश अरावली के पूर्व में विस्तृत है। इसके अन्तर्गत राज्य के भरतपुर, अलवर, धौलपुर, करौली, सवाई माधौपुर, जयपुर, दौसा, टोंक तथा भीलवाड़ा जिलों के मैदानी भाग सम्मलित है। तथा दक्षिण में स्थित मध्य माही का क्षेत्र भी इसमें सम्मिलित किया जाता है। यह प्रदेश नदी बेसिन’ प्रदेश है अर्थात् नदियों द्वारा जमा की गई मिट्टी से इस प्रदेश का निर्माण हुआ है। यह मैदान प्रदेश संपूर्ण राज्य के 23.3% भू-भाग पर फैला हुआ है। पश्चिमी सीमा अरावली के पूर्वी किनारों द्वारा उदयपुर के उत्तर तक और इससे आगे उत्तर में 50 सेमी. की समवर्षा रेखा द्वारा निर्धारित होती है। मैदान की दक्षिण-पूर्वी सीमा विन्ध्यन पठार द्वारा बनाई जाती है।
यहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 60 से 100 सेमी. तक रहता है। राज्य की लगभग 39 प्रतिशत जनसंख्या यहाँ निवास करती है| इस मैदानी प्रदेश के चार प्रमुख उप–प्रदेश हैं:
(अ) बनास बेसिन-
- यह कांप मिटटी से बना उपजाऊ क्षेत्र है यह मैदान बनास तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा सिंचित है। इस मैदान को दक्षिण में मेवाड़ का मैदान तथा उत्तर में मालपुरां करौली का मैदान कहते हैं।
- इसका ढाल पूर्व की ओर है तथा समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 150 से 300 मीटर के मध्य है।
- मेवाड मैदान, बनास नदी तथा इसकी सहायक नदियां जैसे खारी, सोडरा, माँशी और मोरल जो बायें किनारे पर बहती हैं और बेड़च, बाजायिन और गोलवा जो दाहिने किनारे पर मिलती है, से सिंचित हैं। यह उदयपुर के पूर्वी भागों, पश्चिमी चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक, जयपुर, पश्चिमी सवाईमाधोपुर और अलवर के दक्षिणी भागों में विस्तृत हैं।
(ब) चम्बल बेसिन-
- इसके अन्तर्गत कोटा, सवाई माधोपुर, करौली तथा धौलपुर जिलों का क्षेत्र सम्मलित है। यह क्षेत्र डांग के नाम से जाना जाता है, डांग ऊबड़-खाबड़ अनुपजाऊ भूमि है। प्रदेश के सवाई माधोपुर, करौली एवं धौलपुर में चम्बल के बीहड़ स्थित है।
- चम्बल बेसिन क्षेत्र में मुख्यतः उत्खात स्थलाकृति (Badland Topography) फैली है, तथा यहाँ नवीन कांपीय जमाव भी पाए जाते हैं।
- कोटा के हाडौती क्षेत्र में चम्बल का मैदानी क्षेत्र स्थित है।
- खादर- 5 से 30 मीटर गहरे खड्डे वाली भूमि स्थानीय भाषा में खादर कहलाती है।
(स) मध्य माही बेसिन अथवा छप्पन मैदान
- यह माही नदी का प्रवाह क्षेत्र है जो मध्य प्रदेश से निकलकर राजस्थान से गुजरती हुई खंभात की खाड़ी में गिरती है।
- वागड़ – यह क्षेत्र असमतल तथा सर्वत्र छोटी-छोटी पहाड़ियों से युक्त कटा–फटा होने के कारण स्थानीय भाषा में ‘वॉगड’ नाम से पुकारा जाता है।
- छप्पन का मैदान – प्रतापगढ़ और बाँसवाड़ा के मध्य के भाग में छप्पन ग्राम समूह स्थित है अतः इसे ‘छप्पन का मैदान’ भी कहते है।
- कांठल का मैदान – प्रतापगढ़ का सम्पूर्ण क्षेत्र कांठल का मैदान कहलाता है।
(द) बाणगंगा बेसिन
- पूर्वी मैदानी भाग के उत्तरी बेसिन का बांणगंगा बेसिन कहते