राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी भाग एक पठारी भाग है, जिसे ‘दक्षिणी-पूर्वी पठार एवं हाडौती के पठार’ के नाम से जाना जाता है। यह मालवा के पठार का विस्तार है | इस क्षेत्र की औसत ऊँचाई 500 मीटर है तथा यहाँ अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में पर्वत श्रेणियों का विस्तार है जो क्रमशः बूंदी और मुकुन्दवाड़ा की पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है। यहाँ चम्बल नदी और इसकी प्रमुख सहायक कालीसिंह , परवन और पार्वती नदियाँ प्रवाहित है, उनके द्वारा निर्मित मैदानी प्रदेश कृषि के लिये उपयुक्त है।
दक्षिणी-पूर्वी पठार प्रदेश
- इस क्षेत्र में राज्य की 11 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
- दक्षिण पूर्वी पठारी प्रदेश राज्य के कुल क्षेत्रफल का 9.6 प्रतिशत है।
- इसका विस्तार भीलवाड़ा, कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बारां जिलों में है।
- यह पठारी भाग अरावली और विंध्याचल पर्वत के बीच संक्रान्ति प्रदेश है |
- इस प्रदेश में लाबा मिश्रित शैल एवं विन्ध्य शैलों का सम्मिश्रण है।
- दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग को दो भागों में बांटा गया है।
- विन्ध्यन कगार भूमि
- दक्कन लावा पठार
1. विन्थ्य कगार भूमि
- यह कगार भूमि क्षेत्र बड़े-बड़े बलआ पत्थरों से निर्मित है।
- यह चम्बल बनास नदियों के मध्य करौली धौलपुर जिले का भू-भाग है।
- उत्तर-पश्चिमी में चम्बल के बायें किनारे पर तीव्र ढाल वाले कगार है।
2. दक्कन लावा पठार
- यह भौतिक इकाई ऊपरमाल (उच्च पठार या पधरीला) के नाम से जानी जाती है।
- यह क्षेत्र पार्वती, कालीसिंध चम्बल व अन्य नदियों द्वारा सिंचित है।
- चम्बल और उसकी सहायक नदियों ने कोटा में एक त्रिकोणीय कांपीय बेसिन का निर्माण किया है।