राजस्थान में लघु एवं कुटीर उद्योग

राजस्थान में लघु एवं कुटीर उद्योग

कुटीर उद्योग

कुटीर उद्योगों या ग्राम उद्योगों में ऐसे उद्योग सम्मिलित होते है जो श्रमिक के द्वारा अपने परिवार के सदस्यों की सहायता से अपने घर या अन्य स्थान पर चलाये जाते हैं। इन पर कारखाना अधिनियम लागू नही होता। राजस्थान स्टेट इण्डस्ट्रीज एक्ट, 1961 के अनुसार ग्रामीण उद्योग से आशय ऐसे उद्योग से है जो राज्य के ग्रामीण व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पूर्ण अथवा अंशकालिक उद्योग के रुप में किया जाता है।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (Micro, Small and medium enterprises) वे उद्योग हैं जिनमें काम करने वालों की संख्या एक सीमा से कम होती है तथा उनका वार्षिक उत्पादन (turnover) भी एक सीमा के अन्दर रहता है।

लघु उद्योग – लघु उद्योगों में ऐसे उद्योग सम्मिलित होते है जो श्रमिक के घर पर नहीं चलाये जाते। डॉ० आबिद हुसैन समिति, 1947, के अनुसार 3 करोड़ रुपये तक की पूंजी वाले उद्योग लघु उद्योग में आते हैं वाजपेयी सरकार ने इसे एक करोड़ तक सीमित कर दिया था। एक करोड़ से अधिक लागत वाले उद्योग मध्यम या भारी उद्योगों में सम्मिलित होते हैं।

  • देश की प्रथम औद्योगिक नीति 1948 में घोषित की गई इसमें लघु व कुटीर उद्योगों के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया। 
  • भारत सरकार ने 2 अक्टूबर, 2006 से सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSMED Act, 2006) लागू किया था।
  • राज्य में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की व्यवधान रहित स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए, 17 जुलाई, 2019 को राजस्थान सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (फैसिलिटेशन ऑफ एस्टेबलिशमेंट एण्ड ऑपरेशन ) अधिनियम 2019, लागू किया गया।
  • राज्य के सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के विलम्बित भुगतान के निस्तारण हेतु सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास अधिनियम-2006 में प्रदत्त शक्तियों के तहत स्थापित 4 सूक्ष्म एवं लघु उद्यम सुविधा परिषदों का पुर्नगठन कर राज्य स्तर पर 2 एवं संभाग स्तर पर 7 सुविधा परिषदों का गठन किया गया है। इस प्रकार कुल 9 परिषदों का गठन किया गया है।
  • राजस्थान सरकार ने इस अधिनियम के निष्पादन हेतु एक वेब पोर्टल https://rajudyogmitra.rajasthan.gov.in/ लॉन्च किया।
  • वित्तीय वर्ष 2021-22 (दिसंबर 2021 तक) में पोर्टल द्वारा 2,766 डिक्लेरेशन ऑफ इंटेंट प्राप्त हुए
    • सूक्ष्म (माइक्रो) श्रेणी – 1,399
    • लघु श्रेणी – 811
    • मध्यम श्रेणी – 562

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के मानदंड:

उद्यम वर्गीकरण के मानदण्डों में दिनांक 1 जुलाई, 2020 से परिवर्तन के परिणामस्वरूप एक उद्यम को निम्नलिखित मानदण्डों के आधार पर सूक्ष्म, लघु या मध्यम उद्यमों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

  • अ) सूक्ष्म उद्यम : ऐसा उद्यम, जिसमें संयंत्र एवं मशीनरी या उपकरणों में निवेश एक करोड़ रूपये से अधिक नहीं हैं और कारोबार पांच करोड़ रूपये से अधिक नहीं है।
  • ब) लघु उद्यम : ऐसा उद्यम, जिसमें संयंत्र एवं मशीनरी या उपकरणों में निवेश दस करोड़ रूपये से अधिक नहीं हैं और कारोबार पचास करोड़ रूपये से अधिक नहीं है।
  • स) मध्यम उद्यम : ऐसा उद्यम, जिसमें संयंत्र एवं मशीनरी या उपकरणों में निवेश पचास करोड़ रूपये से अधिक नहीं हैं और कारोबार दो सौ पचास करोड़ रूपये से अधिक नहीं है।
उद्यमसंयंत्र और मशीनरी अथवा उपस्कर में निवेशकारोबार (वार्षिक टर्न ओवर रु.)
सूक्ष्म उद्योग1 करोड़ से कम5 करोड़ से कम
लघु उद्योग10 करोड़ से कम50 करोड़ से कम
मध्यम उद्योग50 करोड़ से कम250 करोड़ से कम
reference

राजस्थान में लघु एवं कुटीर उद्योग

राजस्थान में विभिन्न प्रकार के लघु एवं कुटीर उद्योग पाए जाते हैं। जिनका वर्णन निम्न है :

(अ) कृषि आधारित लघु एवं कुटीर उद्योग

  • तेल-घानी उद्योग – तिलहनों पर आधारित यह उद्योग राजस्थान के हज़ारों परिवारों की आजीविका का साधन है। इसकी उद्योगिक इकाईयाँ मुख्यत: राजस्थान के भरतपुर, कोटा, जयपुर, गंगानगर एवं पाली जिलों में कार्यरत है।
  • गुड़ एवं खण्डसारी उद्योग – राजस्थान के गन्ना उत्पादक जिलों में गन्ने के रस से गुड़ एवं खण्डसारी उत्पादन के लिये लघु एवं कुटीर उद्योगों के रुप में यह उद्योग कोटा, बून्दी, श्रीगंगानगर, भीलवाड़ा, उदयपुर जिलों में प्रमुख है।
  • आटा उद्योग – गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में आटा उद्योग पनपा है जो मुख्य रुप से जयपुर, भरतपुर, अलवर, कोटा, सवाई माधोपुर, गंगानगर, टोंक, बून्दी और भीलवाड़ा जिलों में पनप रहे है।
  • दाल उद्योग – राजस्थान में कई प्रकार की दलहन उपज होती हैं जिनमें उड़द, मूंग, चना, मोठ और अरहर आदि से लोग दाल बनाते हैं और उनकी औद्योगिक इकाइयां बीकानेर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़, पाली, भरतपुर, टोंक और अलवर जिलों में कार्यरत हैं।
  • चावल उद्योग – राजस्थान में चावल उत्पादक क्षेत्रों में यह उद्योग लघु एवं कुटीर उद्योगों के रुप में चलाया जा रहा है। इसके प्रमुख क्षेत्र बांसवाड़ा, डूंगरपुर, कोटा-बूंदी, गंगानगर, झालावाड़, बारां, सवाईमाधोपुर एवं भरतपुर जिलों में है।
  • हाथ-करघा, खादी ग्रामोद्योग – खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के सहयोग से राजस्थान के कई स्थानों पर खादी निर्माण, निवार, चादर, तौलिया, धोती आदि वस्त्रों का निर्माण होता है।
  • बंधाई, छपाई एवं रंगाई उद्योग – राजस्थान के कई भागों में रंगाई, छपाई एवं बंधाई उद्योग बड़ी संख्या में पनपे हैं। रंगाई उद्योग मुख्यतः पाली एवं बालोतरा में हैं।
    • बंधाई का कार्य – जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, कुचामन एवं नागौर में है।
    • छपाई का कार्य – मुख्यतः जयपुर, जोधपुर, बाड़मेर, चित्तौड़गढ़ एवं भरतपुर में होता है।
  • गोटा-किनारी उद्योग – राजस्थान के अजमेर, जयपुर तथा खण्डेला में गोटा किनारी उद्योग काफी लम्बे समय से पनप रहा है। वहां औरतें और लड़के भी इस कार्य में रोजगाररत हैं।

(ब) पशुओं के उत्पाद पर आधारित लघु एवं कुटीर उद्योग

  • चर्म उद्योग – राजस्थान में चमड़े से कई प्रकार की कलात्मक वस्तुओं का निर्माण होता है। जूतियां, बटुए, बैल्ट, बैग, आसन आदि वस्तुएं जयपुर, अजमेर, जोधपुर, बाड़मेर आदि कई स्थानों पर बनती है। बीकानेर में ऊंट की खाल से विविध सामान बनाये जाते है।
  • हाथी दांत का कार्य – जयपुर इसके लिये राजस्थान का विख्यात केन्द्र है। जोधपुर एवं पाली में भी हाथी-दांत की चूड़ियां बनाई जाती है।
  • पशुओं की हड्डी पीसने का उद्योग – राजस्थान में भारत की कुल पशु संख्या के 22% हैं अतः उनकी हड्डियाँ बहुतायत से मिलती हैं जिसे पीसकर अन्य उद्योगों में कच्चे माल के रुप में काम में लिया जाता है। हड्डी पीसने के कारखाने प्राय: जयपुर, जोधपुर, कोटा, भीलवाडा एवं फालना में हैं।

(स) वनों पर आधारित लघु एवं कुटीर उद्योग

  • लकड़ी के विविध सामान के उद्योग – राजस्थान में लकड़ी के दरवाजे, फर्नीचर तथा खिलौने बनाने का कार्य काफी लोकप्रिय एवं कलात्मक होता है। रोहिडा तथा शीशम की लकड़ी से ढोल, ढप, तबला, ढोलक तथा अन्य लकड़ी के वाद्य यंत्र बनाये जाते हैं। बांस के पंखे, टोकरियाँ तथा चिक तैयार की जाती है। लकड़ी चीरने की कई आरा मशीनें कार्यरत है। ये राज्य के प्रायः सभी जिलों में लघु एवं कुटीर उद्योगों के रुप में चलाये जाते हैं।
  • कागज उद्योग – धोसूण्डा में हाथ से कागज बनाने का कार्य होता है। कोटा के स्ट्राबोर्ड का कारखाना लघु उद्योग के रुप में चल रहा है। इसी प्रकार कागज की कुछ छोटी इकाइयां उदयपुर, बांसवाड़ा, कोटा, अजमेर में स्थापित की जा सकती है।
  • बीड़ी उद्योग – राजस्थान में तेन्दू पत्ता बहुत मात्रा में मिलने से राज्य के कई स्थानों पर बीड़ी बनाने का कार्य किया जाता है। इसके प्रमुख क्षेत्र जोधपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टोंक, कोटा और अजमेर जिले हैं। टोंक में सरकार की मयूर बीड़ी फैक्ट्री प्रमुख हैं।
  • दियासलाई उद्योग – राजस्थान के कई भागों में दियासलाई के लिये नरम लकड़ी मिलती है अतः अजमेर, पाली, फालना और अलवर आदि स्थानों पर दियासलाई के उद्योग को प्रोत्साहन मिला है।
  • कत्था, गोंद एवं लाख उद्योग – वनों की उपज पर आधारित ये उद्योग राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। कत्था राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में खैर के पेड़ से तैयार किया जाता है। इसके मुख्य क्षेत्र कोटा, बूंदी, झालावाड़, सवाई माधोपुर, धौलपुर और अलवर हैं। धोक, बबूल, खैर, कूमटा और कड़ाचा पेड़ों से गोंद उद्योग को बढ़ावा मिला है।
  • जंगलों में पेड़ों से लाख भी प्राप्त होती हैं उस लाख से चूड़ियाँ, खिलौने एवं कलात्मक वस्तुएं तैयार की जाती हैं। यह उद्योग जयपुर, उदयपुर, जोधपुर और अजमेर में काफी पनपा है।

(द) खनिज आधारित उद्योग

  • संगमरमर उद्योग – राजस्थान के कई भागों में उत्तम कोटि का संगमरमर मिला है। उससे कई उद्योग स्थापित हुए हैं। यह उद्योग मकराना, सिरोही, राजनगर, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, किशनगढ़ और जयपुर में पनपा है। इसकी कटाई, घिसाई और पोलिशिंग करने की कई लघु औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित हो गई है।
  • इमारती पत्थर उद्योग – राजस्थान के कई भागों में इमारती पत्थर निकलता है। उसकी घिसाई, कटाई एवं पोलिशिंग के लिये भी राजस्थान में कई लघु उद्योग इकाइयां स्थापित हुई हैं जिनमें कोटा, रामगंज मंडी, चित्तौड़गढ़, उदयपुर आदि प्रमुख हैं।
  • ग्रेनाइट उद्योग – राजस्थान में अच्छी किस्म का ग्रेनाइट कई रंगों में पाया जाता है। उसकी कटाई, घिसाई एवं पोलिशिंग के कारखाने चित्तौड़, उदयपुर तथा जोधपुर में हैं।

(य) राजस्थान में अन्य लघु उद्योग

  • ऊन उद्योग – राजस्थान में लगभग 1.43 करोड़ भेड़ों से प्रतिवर्ष 19.5 हजार टन ऊन प्राप्त होती है। उसका उपयोग करने के लिये बीकानेर और जोधपुर में दो कारखाने स्थापित किये गये हैं। ऊन को प्रोसिस करने के लिये 29 फैक्ट्रियाँ बीकानेर, जोधपुर, ओसिया, सीकर, भीलवाड़ा, केकड़ी, पाली और ब्यावर में कार्यरत है।
  • रसायन उद्योग – डीडवाना में सोडियम सल्फेट कारखाना, देवारी में रासायनिक खाद बनाने का कारखाना है।
  • इंजीनियरिंग उद्योग – राजस्थान में इसके 20 उद्योग हैं, जयपुर में मीटर बनाने का जयपुर मेटल का कारखाना, बाल बियरिंग बनाने का कारखाना, पानी के मीटर बनाने का कारखाना आदि उल्लेखनीय है। कृषि उपकरणों के लिये सिरोही, चित्तौड़, नागौर, सोजत और दिगोद में कारखाने लगाये गये है

राजस्थान के खादी, हथकरघा उद्योग

महात्मा गांधीजी ने जनवरी, 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटकर मई 25, 1915 को अहमदाबाद के कोचरब स्थान पर आश्रम की स्थापना करके खादी बुनाई से खादी कार्य आरम्भ किया। इसके पश्चात साबरमती नदी के तट पर साबरमती आश्रम की स्थापना हुई जहां से चरखे की खोज और विकास कार्य के साथ खादी का विस्तार किया गया । तदुपरांत खादी कार्यक्रम को अखिल भारतीय संगठनात्मक स्वरूप देने की दृष्टि से 1925 में अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना की गई। राजस्थान में सन् 1926 में ग्राम अमरसर (जयपुर) में चरखा संघ की शाखा स्थापित हुई। सन् 1946 में चरखा संघ का नवसंस्करण किया गया, उसके फलस्वरूप क्षेत्रीय संस्थाओं की स्थापना का क्रम चला। राजस्थान में खादी एवं ग्राम उद्योगों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने की दृष्टि से खादी एवं ग्राम उद्योग बोर्ड की स्थापना 1955 में की गई।

  • राज्य में मुख्यतः सूती एवं ऊनी खादी का उत्पादन होता है।
  • कुल खादी व सूती खादी का सर्वाधिक उत्पादन जयपुर में होता है
  • ऊनी खादी का सर्वाधिक उत्पादन बीकानेर में होता है
  • राज्य में हथकरघा के विकास हेतु कार्यालय आयुक्त, उद्योग नोडल विभाग है।
  • हथकरघा विकास हेतु हथकरघा विकास निगम तथा राजस्थान राज्य बुनकर सहकारी संघ कार्यरत है।
  • सिल्क व ऊनी खादी भी पश्चिमी राजस्थान में उत्पादित होती है।
  • राजस्थान में सूती खादी उत्पादनों में रेजी, खेस, दरी, दोसूती आदि मुख्य हैं।

राजस्थान खादी एवं ग्रामोद्योग

इस बोर्ड का प्रमुख उद्देश्य परम्परागत उद्योगों की उत्पादकता को बढ़ाना समेकित विकास के लिए मार्केट को बढाना तथा बिल की समस्या का समाधान करना प्रमुख उद्देश्य हैं राजस्थान खादी ग्रामोद्योग के द्वारा एक सम्पूर्ण योजना का खाका तैयार किया गया है। जिसके प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार है

  • उत्पादन में वृद्धि
  • उत्पादन में वृद्धि एवं तकनीकी विकास
  • उत्कृप्ट उत्पाद
  • समेकित विकास को ध्यान में रखते हुए नई डिजाइन को प्रोत्साहित करना
  • युवाओं में ,खादी का प्रचार
  • रोजगार में वृद्धि
  • कार्य के लिए स्वच्छ वातावरण का विकास
  • न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि
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