राजस्थान के लोकदेवता : रामदेवजी लोकदेवताओं मे एक प्रमुख अवतारी पुरूष है। समाज सुधारक के रूप में रामदेवजी ने मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा व जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया। गुरू की महत्ता पर जोर देते हुए इन्होने कर्मो की शुद्धता पर बल दिया। उनके अनुसार कर्म से ही, भाग्य का निर्धारण होता है। वे सांप्रदायिक सौहार्द के प्रेरक थे। एकमात्र ऐसे लोक देवता जो कवि भी थे।
बाल्यकाल
तंवर वंशीय अजमालजी और मैणादे के पुत्र रामदेवजी का जन्म बाड़मेर जिले की शिव तहसील के ऊँडूकासमेर गाँव में हुआ था। इन्हें मल्लीनाथजी के समकालीन माना जाता है। बालयवस्था में ही सातलमेर (पोकरण) क्षेत्र मल्लीनाथजी से प्राप्त करने के पश्चात् भैरव नामक क्रूर व्यक्ति का अंत करके वहाँ के लोगों को अराजकता व आतंक मुक्त किया था।
श्रद्धालु
रामदेवजी वीर होने के साथ-साथ समाज-सुधारक भी थे। उनके द्वारा कामड़िया पंथ की स्थापना की गई। इस पंथ के अनुयायियों द्वारा रामदेवजी के मेले में ‘तेरहताली नृत्य’ प्रस्तुत किया जाता है। रामदेवजी को हिन्दू ‘विष्णु का अवतार’ व मुस्लिम ‘रामसापीर’ मानते है। इनके मेघवाल भक्तों को रिखीजाँ कहा जाता है। राजस्थान व गुजरात में रामदेवजी की विशेष रूप से पूजा की जाती है।
रामदेवजी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
अन्य नाम | रामसापीर(मुस्लिम समाज), रूणेचा का धणी |
जन्म | विक्रम सवत् 1462 (1405 ई.) |
जन्म स्थान | ऊँडूकासमेर(बाड़मेर) |
पिता | अजमल जी |
माता | मैणा दे |
पत्नी | नेतल-दे |
बहन | मेघावल जाति की डालीबाई |
गुरू | बालिनाथ |
कुल | तंवर वंश |
घोड़ा | लीला |
समाधि | भाद्रपद शुक्ला एकादशी 1458 ई. में जीवित समाधि ली। |
समाधि स्थल/ मंदिर | राम सरोवर पाल (रूणेचा, जैसलमेर) 1931 ई. में रामदेव जी की समाधि पर बीकानेर महाराजा. गंगासिंह जी ने मंदिर बनवाया। |
मेला | भाद्रपद शुक्ला द्वितीय से एकादशी तक रामदेवरा रामदेवजी के मेले का मुख्य आकर्षण-कामड़िया पंथ के लोगों द्वारा किया जाने वाला तेरह ताली नृत्य है। |
पूजा स्थल(थान) | सामान्यतः गाँवों में किसी वृक्ष के नीचे ऊँचे चबूतरे पर रामदेवजी के प्रतीक चिह्न ‘पगलिये’ स्थापित किये जाते है। |
पूजा प्रतीक | पगलिये पंचरंगी ध्वजा – नेजा |
फड़ | फड़ के साथ वाद्ययंत्र – रावण हत्था गीत – बयावले |