उदयपुर से करीब तीस किलोमीटर दूर, उदयपुर अहमदाबाद मार्ग पर, जावर न केवल यशद/जस्ता या ज़िन्क की खान के लिए विख्यात है अपितु यहां स्थित जावर माता का मंदिर भी जन आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इसके अलावा यहाँ कई जैन, शिव तथा विष्णु के मंदिर हैं |
नागर शैली का यह कलात्मक प्राचीन मंदिर दसवीं शताब्दी के आस-पास बना हुआ माना जाता है। मंदिर में गर्भगृह, अंतराल, सभामण्डप और अर्धमण्डप आदि बने हुए हैं। गर्भगृह के अन्दर महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है तथा बाह्य दीवारों पर देवी-देवता, दिक्पाल देवांगनाएं तथा नृत्य-वादन करती कलात्मक प्रतिमाएं सुशोभित हैं। यूं तो यहां प्रतिदिन भक्तों की भीड़ लगी रहती है किन्तु नवरात्रों पर यहां का सम्पूर्ण परिवेश भक्तिमय हो उठता है।
मंदिर का उल्लेख:
- महाराणा लाख के एक तामपत्र जिसमे महाराणा लाखा ने इस मंदिर के लिए मंदिर के पुजारी परिवार को भूमि दान में दी थी का उल्लेख वीर विनोद के लेखक कविवर श्यामदास और डा गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने भी किया है किन्तु किसी को मूल ताम्रपत्र देखने का मौका प्राप्त नहीं हुवा |
- डा अरविन्द कुमार अपनी पुस्तक जावर का इतिहास में जावर माता के मंदिर का विस्तृत रूप से उल्लेख किया हैं|
तथ्य वांछित:
- मंदिर की दीवार पर लगे शिलालेख से ज्ञात होता है कि इसका निर्माण सन् १४९७ में कराया गया है।
- महाराणा रायमल का राजतिलक जावर में ही हुआ था।
- महाराणा कुंभा की राजकुमारी रमाबाई द्वारा निर्मित ‘रमाकुण्ड’ नामक एक विशाल जलाशय भी है। जलाशय के तट पर रामस्वामी नामक एक सुन्दर विष्णुमंदिर भी है।
- मेवाड़ का काशी – जावर
संदर्भ:
- राजस्थान पत्रिका: वेबसाइट
- राजस्थान सुजस: डाउनलोड
- sharadvyasato