भारतीय साहित्य में कलाओं की अलग-अलग गणना दी गयी है। कामसूत्र में 64 कलाओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त ‘प्रबन्ध कोश’ तथा ‘शुक्रनीति सार’ में भी कलाओं की संख्या 64 ही है। ‘ललितविस्तर’ में तो 86 कलाएँ गिनायी गयी हैं। शैव तन्त्रों में चौंसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है। राजस्थान संस्कृति के विविध आयामों में व्याप्त मानवीय एवं रसात्मक तत्व उसके कला-रूपों में प्रकट हुए हैं। राजस्थान की कलाएँ भी भारतीय कला के भाँती प्राचीन हैं |