rati ghati yudh

राती घाटी युद्ध

राती घाटी युद्ध

  • युद्ध सन – 1534
  • युद्ध स्थल – बीकानेर
  • युद्ध लड़ा गयालाहौर अधिपति व मुगल बादशाह बाबर के पुत्र कामरां व बीकानेर नरेश राव जैतसी के बीच
  • युद्ध का जयघोष -” राम-राम”
  • युद्ध का वर्णन करने वाले कवि – बिठू सूजा ने अपने काव्य छंद “राव जैतसी रो छंद” में किया।


भारतीय इतिहास में हुए भीषणतम युद्धों में बीकानेर शहर की धरती पर हुआ राती घाटी युद्ध प्रमुख है। यह युद्ध लाहौर अधिपति व मुगल बादशाह बाबर के पुत्र कामरां व बीकानेर नरेश राव जैतसी के बीच सन 1534 में हुआ था। राव जैतसी की ओर से इस युद्ध में तत्कालीन राजपूताना की विभिन्न रियासतों के साथ गुजरात, सिंध व मध्यप्रदेश की कई रियासतों की सेनाओं ने भाग लिया था। इतिहासकारों के अनुसार, 21 घंटे लगातार दिन व रात चलने वाला यह पहला युद्ध था। इस युद्ध में राव जैतसी की निर्णायक जीत हुई थी। इस युद्ध का जयघोष राम-राम था। इस युद्ध में छापामार पद्धति का भी उपयोग हुआ था। राती घाटी युद्ध उस समय का राष्ट्रीय युद्ध भी कहा जाता है।
कामरां के हमले की सूचना मिलने पर राव जैतसी ने नगरवासियों को शहर से दूर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया। करीब 2500 सैनिकों को ही सौभाग्यदीप दुर्ग में रखने के साथ शेष सेना को भी शहर से दूर जंगलों में लेकर चले गए। मार्गशीर्ष कृष्णा की चतुर्थी तिथि संवत 1591 के दिन कामरां जब बीकानेर शहर में पहुंचा तो उसे पूरा शहर खाली व उजड़ा हुआ लगा।
इतिहासकार जानकी नारायण श्रीमाली के अनुसार युद्ध के दिन बड़ी संख्या में भैंसों व बैलों के सींग पर मशालें बांध दी गई। ऊंटों की पलाण पर भी मशालें बांध दी गई। बैलों व भैंसों को सौभाग्यदीप की ओर भेजा गया। दूर से मशालें किसी विशाल सेना के रूप में दिखाई दीं।जिसे देख कर कामरां की विशाल सेना भी भयभीत हो गई थी।

युद्ध का काव्य वर्णन
राती घाटी युद्ध में भाग लेने वाले राव जैतसी के दरबारी कवि बिठू सूजा ने इस युद्ध का आंखों देखा वर्णन छंद रूप में “राव जैतसी रो छंद” में किया। राती घाटी शोध एवं विकास समिति के महामंत्री जानकी नारायण श्रीमाली के अनुसार साहित्यकार डॉ.एलपी टैस्सीटोरी ने सन 1917 में इस डिंगल भाषा के ग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद किया। जिसका सार कोलकाता से भी प्रकाशित हुआ। बीकानेर के इतिहासकार ठाकुर रामसिंह तंवर, नरोत्तम स्वामी, डॉ. सूर्यकरण पारीक ने 1931 में ग्रंथ के अनुवाद का बीड़ा उठाया। राजवी अमरसिंह ने 1986 में छंद राव जैतसी का हिंदी व अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित किया।

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