महाराणा कुम्भा के शासनकाल की जानकारी ‘एकलिंग महात्म्य’, ‘रसिक प्रिया’, ‘कुम्भलगढ़ प्रशस्ति’ आदि से मिलती है। वह 1433 ई. में गददी पर बैठा। कुम्भा ने अपने शासनकाल के प्रारंभ में स्थानीय और पड़ोसी राज्यों को जीत कर अपनी शक्ति को बढ़ाया। महाराणा कुम्भा ने 1437 ई. में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर भीषण आक्रमण किया और दोनों सेनाओं के मध्य सारंगपुर के पास जोरदार संघर्ष हुआ।
इस युद्ध में महमूद खिलजी की सेना को परास्त होकर भागना पड़ा। इस भागती सेना का कुम्भा ने माण्डू तक पीछा किया और महमूद महाराणा कुम्भा को बंदी बना लिया, किन्तु 6 माह चित्तौड़ में रखने के बाद महमूद को मुक्त कर दिया। मुक्त होकर महमूद ने बार-बार कुम्भा के विरूद्ध युद्ध किए, मगर वह कभी सफल नहीं हुआ। इसके बाद कुम्भा ने गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन और नागौर के शासक शम्सखों की संयुक्त सेना को तथा मालवा और गुजरात की संयुक्त सेना को हराया और अपने समय का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बन गया।
कुम्भा एक पराक्रमी योद्धा और कुशल रणनीतिज्ञ ही नहीं थे, वरन् वह साहित्य व कला का महान् संरक्षक भी थे । महाराणा कुम्भा का काल भारतीय कला के इतिहास में स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। मेवाड़ में स्थित 84 दुर्गों में से 32 दुर्ग कुम्भा द्वारा निर्मित हैं। इनमें कुम्भलगढ़ का दुर्ग विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो कि अजय दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है। दुर्ग के चारों ओर विशाल प्राचीर है, जिसे चीन की दीवार के बाद विश्व की दूसरी सबसे लम्बी दीवार माना जाता है। इसे बुर्जियों द्वारा सुरक्षित किया गया था। महाराणा कुम्भा का 1468 ई. में स्वर्गवास हुआ।