तेजाजी

राजस्थान के लोकदेवता : तेजाजी

राजस्थान के लोकदेवता : तेजाजी

लौपे नाहिं लगार, वासक तेजा रा वचन।
कदी न भाजे कार, नौखण्ड भादे नीकली॥

भवंग असल गया भाग, नाहिं कबै आवे नजर।
नाहिं सतावै नाग, नौखण्ड मांदे वनकली॥

बाल्यकाल

तेजाजी का जन्म, माघ शुक्ला चतुदर्शी को 1073 ई. में नागौर जिले के खड़नाल ग्राम में नागवंशीय जाट कुल में ताहड़जी व रामकुंवरी के घर में हुआ था।

वीरता गाथा

लोकगीतों के अनुसार एक बार जब तेजाजी अपनी पत्नी पेमल को लेने अपने ससुराल पनेर गए, उसी दिन मेर लोग लाछा गुजरी की गायें चुरा कर ले गये। गूजरी की प्रार्थना पर वे गायों को मुक्त कराने जा ही रहे थे की रास्ते में इन्हें सुरसुरा नामक स्थान पर इन्हें एक सर्प मिला। तेजाजी ने सर्प को डसने से रोकते हुए वचन दिया कि वे गायों को मुक्त कराने के बाद स्वयं यहाँ आयेंगे।

भीषण संघर्ष के बाद उन्होंने गायें मुक्त कराने में सफलता प्राप्त की। परन्तु अत्यधिक घायल होने पर भी वे अपने वचन के अनुसार वापस सर्प के पास आये। पूरे शरीर पर घाव होने के कारण इन्होंने सर्प के डसने के लिए जिह्वा आगे कर दी। सर्प-दंश के कारण सुरसुरा (किशनगढ़) में भाद्रपद शुक्ल दशमी को इनकी मृत्यु हो गई। इनकी पत्नी पेमल भी इनके साथ सती हो गई। तेजाजी के इस शौर्यपूर्ण कृत्य, वचन पालन और गौरक्षा ने उन्हें देवत्व प्रदान किया।

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श्रद्धालु

राजस्थान के जाट तेजाजी के प्रति अत्यधिक श्रद्धा रखते है। इनके मुख्य थान सुरसरा, अजमेर, सैंदरिया व भाँवता(अजमेर) में है। गोगाजी की ही तरह इन्हे भी नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि यदि सर्प-दंशित व्यक्ति के दायें पैर में तेजाजी की तांत (डोरी) बांध दी जाये तो उसे विष नहीं चढ़ता। इन्हे काला-बाला का देवता तथा कृषि कार्यों के उपासक देवता के रूप में भी पूजा जाता है।

तेजाजी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य

अन्य नाम काला-बाला का देवता
जन्ममाघ शुक्ला चतुदर्शी को 1073 ई.
जन्म स्थान खड़नाल ग्राम (नागौर)
पिता ताहड़जी
माता रामकुंवरी
पत्नी पैमल-दे (पनेर के रामचंद्र जी झांझर की पुत्री)
कुल नागवंशीय जाट
मारवाड़ के जाटो के इतिहास पुस्तक मे तेजाजी का धौल्पा गौत्र बताया गया है।
घोड़ीलीलण (सिंणगारी)
स्मृति स्थल/ मंदिर परबतसर (नागौर)
मेलातेजा दशमी (भाद्रपद शुक्ल दशमी) के अवसर पर पंचमी से पूर्णिमा तक परबतसर (नागौर) में विशाल पशु-मेला लगता है।
पूजा स्थल(थान) तेजाजी के चबूतरे को थान व पुजारी को घोड़ला कहा जाता है।
पूजा प्रतीक तलवारधारी, अश्वरोही योद्धा के रूप में, जिनकी जिह्वा को सर्प डस रहा है
तेजाजी की तांत (डोरी)मान्यता है कि यदि सर्प-दंशित व्यक्ति के दायें पैर में तेजाजी की तांत (डोरी) बांध दी जाये तो उसे विष नहीं चढ़ता।

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