राजस्थान में जैव विविधता | वन, जैव वानस्पतिक एवं पर्यावरणीय संतुलन की एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। राज्य में कुल घोषित वन क्षेत्र 32,737 वर्ग किमी है जो कि राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 9.57 प्रतिशत है। राज्य में वन आच्छादित क्षेत्र 4.86 प्रतिशत है जो कि वन क्षेत्र तथा उसके बाहर अवस्थित है।
राजस्थान में जैव विविधता
जैव-विविधता प्राकृतिक पर्यावरण का अभिन्न अंग है जिसमें प्राकृतिक वनस्पति, वन्य-जीव, पशु-पक्षी से लेकर कीट तथा सूक्ष्म जीव सम्मिलित होते हैं। वन्य जीव जैव-विविधता के प्रतीक हैं। राजस्थान के भौगोलिक वातावरण की विविधता के कारण यहाँ वन्य जीवों में विविधता है। राज्य में एक ओर विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर है तो दूसरी ओर शाकाहारी जीव तथा रेंगने वाले जीव तथा विविध प्रकार के पक्षी है।
- मांसाहारी पशुओं में बाघ, तेंदुआ, जरख, जंगली बिल्ली, बिज्जू, भेड़िया, सियार, लोमड़ी, जंगली कुत्ता आदि हैं।
- बाघ – मुख्यतया सवाई माधोपुर, धौलपुर, अलवर, करौली, कोटा, सिरोही, चित्तोड़गढ़, उदयपुर, बूंदी तथा दूंगरपुर के जंगलों में पाये जाते हैं।
- चीते – सिरोही, उदयपुर, भीलवाड़ा, दूंगरपुर, करौली, प्रतापगढ़, कोटा तथा अजमेर जिलो में मिलते हैं।
- शाकाहारी पशुओं में काला हिरण, चिंकारा, साँभर, नील गाय, चीतल, चौसिंधा, भालू, जंगली सूअर, खरगोश, बंदर, लंगूर प्रमुख है।
- काला हिरण – भरतपुर, सिरोही, जयपुर, बाड़मेर, अजमेर, कोटा जिले में।
- चिंकारा – भरतपुर, सवाई माधोपुर, जालौर, सिरोही, जयपुर, जोधपुर में।
- साँभर – भरतपुर, अलवर, सवाई माधोपुर, उदयपुर, चित्तोड़गढ़, कोटा, झालावाड़, जयपुर, बाड़मेर, अजमेर, दूंगरपुर, बाँसवाड़ा में।
- नील गाय – अजमेर, करौली, भरतपुर, झालावाड़, कोटा, गंगानगर, हनुमानगढ़ में।
- चीतल – भरतपुर में।
- राजस्थान का राज्य पक्षी गोंडावन – बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर क्षेत्रों में है।
- इसके अतरिक्त मोर, तीतर, काला तीतर, तिजौर, बटेर, सारस, बुलबुल, नीलकंठ, बाज, गिद्द, मैना, तोता, कबूतर, कौआ आदि अनेक पक्षी है।
- घना के पक्षी विहार को पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है, यहाँ का मुख्य आकर्पण प्रवासी साइबेरियन क्रेन है, जो यहाँ शीतकाल में आते हैं। इसी प्रकार फलौदी के निकट खींचन में कुरजा पक्षियों का प्रवास पर्यटकों के लिएआकर्षण का केन्द्र है।
जैव विविधता को संरक्षित रखने के प्रमुख कारक
- वनों के विनाश को रोकना।
- सुरक्षित एवं अनुकूल आवासीय स्थल को बनाये रखना जिससे वन्यजीवों को अनुकूल वातावरण मिल सके।
- वन्य जीवों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना।
- वन्य जीवों की विलुप्त होती प्रजातियों का समुचित ज्ञान प्राप्त करना तथा उनके संरक्षण की विशेष व्यवस्था करना।
- वन्य जीवों का उचित प्रबन्ध करना।
- वन्य जीवों के प्रति जनजागरण करना जिससे सामान्य जन इनकी सुरक्षा के प्रति सचेत हो।
जैव विविधता का संरक्षण
वन्य प्राणियों के विलुप्त होने के कारण जैव विविधता (Bio-diversity) पर संकट मंडराने लगे है। राजस्थान में जैव विविधता के संरक्षण हेतु निम्न प्रमुख प्रयास किये गए हैं |
अ. संरक्षित क्षेत्रों का विकास:
जैव विविधता संरक्षण हेतु राज्य में संरक्षित क्षेत्रों का विकास किया गया हैं | जैव विविधता के संरक्षण में राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके माध्यम से एक क्षेत्र विशेप में जीव-जन्तुओं को प्राकृतिक वातावरण में रहने का अवसर मिलता है जो वर्तमान में संकटग्रस्त होते जा रहे हैं। राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण पारिस्थितिकी तंत्र को बनाये रखने हेतु प्रयास है जिससे जैव विविधता को संरक्षित किया जाता है। राज्य में
- राष्ट्रीय उद्यान
- राष्ट्रीय उद्यान वे क्षेत्र है जिनके प्राकृतिक सौंदर्य अर्थात वनस्पति, वन्य-जीव आदि को राष्ट्रीय दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हुए विधि सम्मत निर्धारण कर उसे पूर्णतया संरक्षित रखा जाता है। इन क्षेत्रों में आखेट आदि पर पूर्ण प्रतिबन्ध होता है, यद्यपि पर्यटन हेतु इनका उपयोग किया जा सकता है।
- राज्य में 3 राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किये गए हैं
- वन्यजीव अभयारण्य
- अभयारण्य वे क्षेत्र है जिनमें वन्यजीवों का शिकार करना अथवा पकड़ना वर्जित होता है। इसी क्रम में कुछ क्षेत्रों को आखेट निपिद्ध क्षेत्र भी घोपित किया जाता है जहाँ आखेट प्रतिबन्धित होता है।
- राज्य में 27 वन्यजीव अभयारण्य स्थापित किये गए हैं
- संरक्षित क्षेत्र
- राज्य में 16 संरक्षित क्षेत्र स्थापित किये गए हैं
- बॉयोलोजिकल पार्क
- जयपुर, उदयपुर एवं जोधपुर में 3 बॉयोलोजिकल पार्क भी विकसित किए गए हैं।
ब. राजस्थान राज्य जैव विविधता बोर्ड
भारत सरकार द्वारा अधिसूचित जैविक विविधता अधिनियम, 2002 के प्रावधान के तहत राजस्थान राज्य जैव विविधता बोर्ड का गठन किया गया है। राजस्थान राज्य ने जैविक विविधता अधिनियम, 2002 की धारा-63(1) के तहत राजस्थान जैविक विविधता नियम, 2010 को अधिसूचित किया है।
स. राजस्थान वानिकी एवं जैव विविधता परियोजना फेज-2 (आर.एफ.बी.पी.-11)- जे.आई.सी.ए.
यह परियोजना जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेन्सी (जे.आई.सी.ए.) से वित्त पोषित है। परियोजना की कुल लागत ₹1,152.53 करोड़ निर्धारित की गई है, जिसमें से ₹884.80 करोड़ की राशि जे.आई.सी.ए. से ऋण के रूप में एवं शेष ₹267.73 करोड़ की राशि राज्य सरकार द्वारा वहन की जायेगी। परियोजना माह अक्टूबर, 2011 से प्रभावी चल रही है एवं मार्च, 2021 तक पूर्ण की जानी है।
परियोजना के अन्तर्गत राज्य के 15 जिलों यथा- बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर, पाली, सीकर, झुन्झुनूं, नागौर, चूरू, सिरोही, बाड़मेर, जालौर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, जयपुर तथा 7 वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों यथा- कुम्भलगढ़, फुलवारी की नाल, जयसमन्द, सीतामाता, बस्सी, कैला देवी एवं रावली टोडगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के कार्य करवाया जाना प्रस्तावित है।