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SUBJECT – विधि
TOPIC – विधि की अवधारणा- स्वामित्व एवं कब्जा, व्यक्तित्व, दायित्व, अधिकार एवं कर्त्तव्य | वर्तमान विधिक मुद्दे– सूचना का अधिकार, सूचना प्रौद्योगिकी विधि साइबर अपराध सहित (अवधारणा, उद्देश्य, प्रत्याशाएं), बौद्धिक सम्पदा अधिकार (अवधारणा, प्रकार एवं उद्देश्य) | माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007
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Q1 सैल्मंड ने ‘दायित्व’ शब्द को किस प्रकार परिभाषित किया है? 2M
Answer:
सैल्मंड के अनुसार, “दायित्व आवश्यकता का वह बंधन है, जो कि दोषी और दोष के उपचार के बीच होता है”।
यह परिभाषा किसी व्यक्ति पर कानूनी आवश्यकताओं के अनुसार कुछ कार्य करने या विशिष्ट व्यवहार से दूर रहने के लिए लगाए गए कानूनी दायित्व या जिम्मेदारी का सारांश प्रस्तुत करती है।.
Q2 माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के अनुसार ‘बालक’ को परिभाषित कीजिए । 2M
Answer:
माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 2 के अनुसार “बालक” के अन्तर्गत पुत्र , पुत्री, पौत्र और पौत्री हैं, किंतु इसमें कोई अवयस्क शामिल नहीं है।
Q3 सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में प्रयुक्त अभिव्यक्ति “सूचना का अधिकार” को परिभाषित कीजिए।क्या कोई सार्वजनिक प्राधिकरण आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी प्रदान करने से मुक्त है? 5M
Answer:
अधिनियम की धारा 2 के अनुसार, “सूचना का अधिकार” का अर्थ, इस अधिनियम के अधीन पहुँच योग्य सूचना , जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा या उसके नियंत्रणाधीन है और जिसमे निम्नलिखित का अधिकार सम्मिलित है –
(i) कार्य, दस्तावेजों, अभिलेखों का निरीक्षण;
(ii) दस्तावेजों या अभिलेखों के नोट्स, उद्धरण या प्रमाणित प्रतियां लेना;
(iii) सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना;
(iv) डिस्केट, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेट या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रीति में या प्रिंटआउट के माध्यम से जानकारी प्राप्त करना जहां ऐसी जानकारी कंप्यूटर या किसी अन्य युक्ति में भंडारित है ,अभिप्राप्त करना ।
छूट- अधिनियम की दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट खुफिया और सुरक्षा संगठनों को अधिनियम के तहत जानकारी प्रस्तुत करने से छूट दी गई है। हालाँकि, यदि मांगी गई जानकारी भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से संबंधित है तो यह छूट लागू नहीं होती है।
Q4 पेटेंट क्या है? भारत में पेटेंट की समयावधि क्या है? आईपी से संबंधित चार भारतीय कानूनों के नाम बताएं? 5M
Answer:
“पेटेंट” का अर्थ है पेटेंट अधिनियम 1970 के तहत किसी भी आविष्कार के लिए दिए गए पेटेंट। यह बौद्धिक संपदा का एक रूप है जो किसी आविष्कार (उत्पाद या प्रक्रिया ) के लिए दिया गया एक विशेष अधिकार है, जो सामान्य तौर पर किसी कार्य को करने का एक नया तरीका, एक नया प्रस्ताव या किसी समस्या का तकनीकी समाधान देता है । (WIPO)
भारत के आईपी कानूनों में शामिल हैं (कोई चार)
- ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 (2010 में संशोधित)
- कॉपीराइट अधिनियम, 1957
- डिज़ाइन अधिनियम, 2000
- पेटेंट अधिनियम, 1970 (2002 में संशोधित)
- वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक (रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण) अधिनियम, अधिनियम, 1999
- प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वेराइटीज़ एंड फार्मर्स राइट्स अधिनियम, 2001
- सेमीकंडक्टर इंटीग्रेटेड सर्किट लेआउट-डिज़ाइन अधिनियम, 2000
Q5 Elaborate any one of the following themes in approximately 150 words : [RAS Mains 2018]
Justice delayed is justice denied.
Answer:
Justice delayed is justice denied
“Without Justice, life would not be possible, and even if it were, it would not be worth living”.
“Justice Delayed is Justice Denied” is a legal principle. Delay and unresolved questions have been the cause of controversy for the Indian judiciary for a long time. In the last five decades, the judiciary, leading experts, and legal advisors have established many schemes to address posting and adjudication problems in India. Justice to all…the weak and the mighty, the rich and the poor…is the cornerstone of modern civilization. Justice to all is the quality of being impartial and prompt in dispensing justice. Delayed justice devalues the spirit of law. Timely justice upholds the honour & dignity of the aggrieved party and punishes those who violate the law. Delayed justice defeats the purpose of law while causing untold sufferings to those who need justice. Justice done in time has a positive effect on other institutions of the society. If justice is delayed, the sufferings continue to pile on till the time justice is done. The fact is that delayed justice is no justice at all. Doing justice is one thing and doing it in time is another. Delayed justice amounts to dehumanizing the institutions of our society. The sooner justice is done, the better it is. Else justice loses its soul and essence. As “justice delayed is justice denied,” they claim “justice hurried is justice buried” is equally valid. Therefore, the requisite condition of fair justice and balance of convenience is an appropriate, rational, and due hearing for all cases. Law is an outstanding achievement, which needs tremendous respect.