12 April 2024 RAS Mains Answer Writing

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Subject – भारतीय इतिहास

Topic – अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम, फ्रांसीसी क्रांति 1789 ईस्वी व औद्योगिक क्रांति।

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Q1 औद्योगिक क्रांति के दौरान वस्त्र उद्योग में प्रमुख तकनीकी प्रगति क्या थी?(2M)

औद्योगिक क्रांति (18वीं शताब्दी के मध्य) ने वस्त्र उद्योग में महत्वपूर्ण तकनीकी प्रगति की। प्रमुख हैं:

  • फ्लाइंग शटल (1733): ब्रिटिश बुनकर जॉन के द्वारा → तेज़ गति से बुनाई
  • स्पिनिंग जेनी (1764): जेम्स हरग्रीव्स द्वारा आविष्कार किया गया → एक साथ कई धागों की कताई की अनुमति दी गई, जिससे उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  • वॉटर फ़्रेम (1769): रिचर्ड आर्कराइट द्वारा विकसित → पानी से चलने वाली कताई मशीन जो महीन और मजबूत सूत का उत्पादन करती है
  • पावर लूम (1785): एडमंड कार्टराईट द्वारा नवप्रवर्तित → भाप इंजन द्वारा संचालित बुनाई प्रक्रिया को स्वचालित किया गया, जिससे कपड़ा उत्पादन में दक्षता बढ़ी।
  • कॉटन जिन (1793): एली व्हिटनी के आविष्कार, कॉटन जिन ने बीजों से कपास के रेशों को अलग करने का  मशीनीकरण किया, जिससे कपास प्रसंस्करण में क्रांति आ गई।
  • भाप इंजन: हालांकि भाप इंजन सिर्फ कपड़ा उद्योग के लिए नहीं है, भाप इंजन ने कपड़ा मशीनरी के लिए अधिक कुशल ऊर्जा स्रोत प्रदान किया और औद्योगिक विस्तार को बढ़ावा दिया।
  • फ़ैक्टरी प्रणाली: मशीनों और श्रम को एकीकृत करना, उत्पादन विधियों को परिवर्तित करना।
  • मैकेनिकल कॉम्बिंग और कार्डिंग मशीनें
  • रोटरी प्रिंटिंग प्रेस (1785): रॉबर्ट बार्कले द्वारा आविष्कार → मुद्रित कपड़ों के बड़े पैमाने पर उत्पादन की सुविधा प्रदान की गई।

इन नवाचारों ने सामूहिक रूप से कपड़ा उद्योग को नया आकार दिया, जो हस्त शिल्प कौशल से मशीनीकृत, बड़े पैमाने पर उत्पादन विधियों में बदलाव का प्रतीक है।

Q2 फ्रांसीसी क्रांति में प्रबोधन कालीन विचारकों द्वारा निभाई गई भूमिका की जांच करें।(5M)

प्रबोधन कालीन विचारकों ने फ्रांसीसी क्रांति को रेखांकित करने वाले मूल्यों और सिद्धांतों को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • मोंटेस्क्यू (1689-1755):
    • मोंटेस्क्यू की “द स्पिरिट ऑफ द लॉज़” ने अत्याचार के खिलाफ सुरक्षा के रूप में शक्तियों के पृथक्करण का प्रस्ताव रखा। → राजनीतिक शक्ति को तीन शाखाओं में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा: विधायी, कार्यकारी और न्यायिक ⇒ नियंत्रण और संतुलन के साथ एक संतुलित सरकार की वकालत की
    • फ़्रांस में विशेषाधिकार आधारित सामाजिक व्यवस्था का पर्दाफाश
    • चर्च के विलासितापूर्ण जीवन को भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार पाया
  • वोल्टेयर (1694-1778):
    • भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक सहिष्णुता और चर्च और राज्य को अलग करने का समर्थन किया।
    • उनके लेखन ( जैसे “कैंडाइड“) ने दमनकारी संस्थानों की आलोचना की और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की वकालत की।
    •  “फिलॉसॉफिकल डिक्शनरी” (1764) में – “आप जो कहते हैं, मैं उससे असहमत हूं, लेकिन मैं इसे कहने के आपके अधिकार की मरते दम तक रक्षा करूंगा।”
    • भ्रष्ट राजतंत्र एवं दमनकारी चर्च का विरोध किया
  • जीन-जैक्स रूसो (1712-1778):
    • योगदान: रूसो के “द सोशल कॉन्ट्रैक्ट” ने सामान्य इच्छा के माध्यम से सरकार की वैधता पर जोर दिया। उनके विचारों ने लोकतांत्रिक सिद्धांतों और लोकप्रिय संप्रभुता की अवधारणाओं को प्रभावित किया।
    • उद्धरण: “मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है, और हर जगह वह जंजीरों में जकड़ा हुआ है।” → सामाजिक असमानता
    • “लिबर्टे, एगलिटे, फ्रेटरनिटे” (स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व) का क्रांतिकारी नारा रूसो के आदर्शों को दर्शाता है।
  • मैक्सिमिलियन रोबेस्पिएरे (1758-1794): रोबेस्पिएरे का मानना ​​था कि नागरिक गुण, आम भलाई के प्रति प्रतिबद्धता, एक सफल गणतंत्र और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक था । (पर ये भाई साहब तो अंत में गिलोटिन पे उतर आये)
  • अमेरिकी क्रांति का प्रभाव
    • जनरल लफ़ायेट: अमेरिकी क्रांति में लड़े → लोकतांत्रिक विचारों से प्रेरित

इस प्रकार, प्रबोधन विचारकों के प्रभाव ने, अन्य ऐतिहासिक विकासों के साथ मिलकर, ‘मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की घोषणा (1789)’ में व्यक्तिगत अधिकारों की अभिव्यक्ति को प्रेरित किया।

Q3 अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के उद्भव के लिए जिम्मेदार कारकों की व्याख्या करें।(10M)

औपनिवेशिक उत्तरी अमेरिका में 1775 और 1783 के बीच एक महत्वपूर्ण वैचारिक और राजनीतिक बदलाव आया, जिसकी परिणति ब्रिटेन से स्वतंत्रता और संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना के रूप में हुई, जिसे अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है। इस उद्भव में योगदान देने वाले कारक इस प्रकार हैं:

  1. आर्थिक कारक: नेविगेशन अधिनियम (1651) जैसी ब्रिटिश नीतियां, जिसमें केवल ब्रिटिश जहाजों का उपयोग अनिवार्य था, और भारी आयात शुल्क लगाने (1673) ने फर टोपी और तांबा गलाने वाले कारखानों (1732) पर प्रतिबंध के साथ-साथ अमेरिकी उद्योग को प्रभावित किया।
  2. राजनीतिक कारक: चीनी अधिनियम (1764), स्टाम्प अधिनियम, मुद्रा अधिनियम (1765), और टाउनशेंड अधिनियम (1767) (कागज, पेंट, सिक्का, कांच और चाय को शामिल करते हुए), जैसी नीतियां ब्रिटिशों ने अमेरिकी उपनिवेशों में असंतोष फैलाया।
  3. व्यापारिक पूंजीवाद: व्यापारिक पूंजीवाद के तहत ब्रिटिश नीतियों का उद्देश्य औपनिवेशिक व्यापार (उदाहरण, नेविगेशन अधिनियम -1751, लौह अधिनियम, हैट अधिनियम) को सख्ती से नियंत्रित करके मातृ देश को समृद्ध करना था।
  4. होम रूल बनाम साम्राज्यवाद: अमेरिकी क्रांति शाही नियंत्रण के विरुद्ध होम रूल के लिए एक संघर्ष था। उपनिवेशवादियों ने ब्रिटिश हस्तक्षेप को अस्वीकार करते हुए अधिक स्वायत्तता और स्वशासन की मांग की।
  5. अमेरिकी उपनिवेशों की प्रकृति: अपने ब्रिटिश मूल और उच्च स्तर की राजनीतिक चेतना के कारण, अमेरिकी उपनिवेश लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति जागरूक थे, जिसका उदाहरण वर्जीनिया मैग्ना कार्टा जैसे दस्तावेजों से मिलता है।
  6. बुद्धिजीवियों की भूमिका: थॉमस पेन (“कॉमन सेंस”), बेंजामिन फ्रैंकलिन (अमेरिकन फिलॉसॉफिकल सोसाइटी), थॉमस जेफरसन, सैमुअल एडम्स (पत्राचार समिति), जेम्स ओटिस (“प्रतिनिधित्व के बिना कोई कराधान नहीं”) और पैट्रिक हेनरी (“मुझे आज़ादी दो या मौत दो”) ने अपने बौद्धिक योगदान के माध्यम से राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रज्वलित किया।
  7. इंग्लैंड के प्रति आत्मीयता की कमी: कई उपनिवेशवादियों को या तो धार्मिक रूप से प्रताड़ित किया गया या अपराधियों को उपनिवेशों में निर्वासित कर दिया गया, जिससे इंग्लैंड के प्रति भावनात्मक लगाव की कमी हो गई।
  8. प्रबुद्धता के विचारों का प्रभाव: जिसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, कारण और प्राकृतिक अधिकारों जैसी अवधारणाओं का समर्थन किया, प्राधिकरण पर सवाल उठाने की भावना को बढ़ावा दिया और अमेरिकी उपनिवेशवादियों के बीच स्वशासन की वकालत की।
  9. किंग जॉर्ज III द्वारा अपनाई गई नीतियां: निरंकुश शासन की उनकी अदूरदर्शी खोज ने उपनिवेशों को और भी अलग-थलग कर दिया।
  10. तात्कालिक कारण: बोस्टन नरसंहार (5 मार्च, 1770) और बोस्टन टी पार्टी (16 दिसंबर, 1773) जैसी घटनाओं ने प्रतिरोध के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम किया।

आर्थिक संघर्षों और प्रबुद्धता मूल्यों से प्रेरित अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम दुनिया भर में क्रांतियों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करता है, जिसने “सभी क्रांतियों की जननी” के रूप में अपनी प्रतिष्ठा अर्जित की और दुनिया भर में स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरित किया।

Q4 निम्नांकित पंक्ति का भाव विस्तार कीजिए: (शब्द सीमा: लगभग 100 शब्द)
          
महत्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में पलता है। 

छायायादी कवि जयशंकर प्रसाद का यह कथन उच्च आकांक्षाओं की प्राप्ति हेतु किए जाने वाले संघर्ष को प्रतिबिंबित करता है। जो व्यक्ति महत्त्वाकांक्षी होगा, अपने जीवन में बेहतर करने की चाह रखेगा, उसको अपने प्रति निर्मम होना ही पड़ेगा। सभ्यता के शुरुआती दौर से लेकर आज तक न जाने कितने रूप सामने आए है, समय ने न जाने कितनी करवटें ली है, परंतु मानव विकास की यह अनवरत यात्रा, विकास तथा उत्थान की जिजीविषा, आगे बढ़ते रहने की महत्त्वाकांक्षा, तमाम प्रतिकूलताओं तथा विषमताओं के बाद भी जारी रही। संस्कृत साहित्य में भी कहा गया है-

“कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।”

अर्थात मनुष्य को कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा रखनी चाहिए। महत्त्वाकांक्षा से जीवन के महान लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ता है। हमारे समाज में ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं।

महान उदाहरण विश्व के महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का जीवन है, जिन्होंने व्हील चेयर पर रहते हुए संपूर्ण विश्व को ब्रह्मण्ड के रहस्य से परिचित करवाया। इसी प्रकार रूसो, जिन्होंने तमाम समस्याओं तथा संकटों का सामना करते हुए फ्रांस की क्रांति का आधार तैयार किया जो स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व मूल्यों पर आधारित थी, ये मूल्य विश्व के लिए एक दर्शन समान है।

महाराणा प्रताप का जीवन भी इसका बेहतरीन उदाहरण है, जिन्होंने स्वाधीनता की महत्त्वाकांक्षा के कारण निर्वासित जीवन जिया तथा आजीवन कष्टों से अपना नाता जोड़े रखा।

सार यह है कि व्यक्ति को न केवल अपने जीवन में महत्त्वाकांक्षी होनी चाहिए, अपितु अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को मुकम्मल तस्वीर देने हेतु कठिन राहों पर चलने से भी घबराना नहीं चाहिए। अपितु उनका सामना धैर्य और सहिष्णुता से करना चाहिए।

गाँधी जी ने भी अनेक बार इसी तरह का मत दिया कि कायरता को स्वीकार करने के स्थान पर तो तलवार उठाना बेहतर है। गाँधी जी ने हिंसा और अहिंसा में अहिंसा का वर्णन किया किंतु हिंसा और गुलामी में से तो हिंसा अपनाकर भी आज़ादी प्राप्त करने को बेहतर माना। 

                                                               अत: हिंसा अपने आप में श्रेयस्कर नहीं है किंतु दासता को स्वीकार करने का अर्थ हैं- शासक की तमाम तरह की हिंसाओं को हमेशा के लिए स्वीकार करना और हार मान लेना , जो हिंसा से भी बुरा है।

हिंसा कलंक इंसान पर, मिटे न इसका दाग;

दासता मरण इंसान का, कभी फले ना बाग

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