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Subject – भारतीय इतिहास
Topic – स्वातंत्र्योत्तर सुदृढ़ीकरण और पुनर्गठन- देशी रियासतों का विलय तथा राज्यों का भाषायी आधार पर पुनर्गठन। आधुनिक विश्व का इतिहास – पुनर्जागरण व धर्म सुधार |
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Q1 दांते ‘डिवाइन कॉमेडी’ में कौन सी प्रतीकात्मक यात्रा करते हैं? (2M)
दांते की ‘डिवाइन कॉमेडी’ एक प्रतीकात्मक यात्रा है जो मृत्यु के बाद के जीवन के तीन क्षेत्रों को पार करती है: इन्फर्नो (नरक), पुर्गाटोरियो (पर्गेटरी), और पैराडाइसो (स्वर्ग)। (Trick → इन पु पा)
- आत्मा की अंधकार से शुद्धि और अंततः दिव्य मिलन की ओर आत्मा की प्रगति चित्रित
- दांते की तीर्थयात्रा पाप, पश्चाताप और दैवीय कृपा और मोक्ष की अंतिम खोज के साथ मानव संघर्ष का प्रतीक है
महत्व:
- उनके मानवतावादी दृष्टिकोण ने बाद के विचारकों को मानव चेतना की गहराई का पता लगाने के लिए प्रेरित किया।
- स्थानीय भाषा का उन्नयन → इसे लैटिन के बजाय टस्कन भाषा (इतालवी) में लिखा।
Q2 मार्टिन लूथर के योगदान ने धर्मसुधार आंदोलन को महत्वपूर्ण रूप से कैसे प्रभावित किया?(5M)
16वीं शताब्दी में प्रोटेस्टेंट सुधार को जगाने और आकार देने में मार्टिन लूथर की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनके निम्नलिखित योगदानों ने सुधार को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया:
- 95 थीसिस (1517): लूथर द्वारा विटनबर्ग में कैसल चर्च के दरवाजे पर 95 थीसिस लगाना धर्मसुधार के लिए उत्प्रेरक थी। थीसिस में भोग-विलास की बिक्री की आलोचना की गई और पापों की क्षमा देने के पोप के अधिकार पर सवाल उठाया गया।
→ प्रभाव: इस घटना ने सुधार की शुरुआत को चिह्नित किया।
- केवल ग्रन्थ (सोला स्क्रिप्टुरा): लूथर ने चर्च परंपराओं पर बाइबिल के अधिकार पर जोर दिया।
→ प्रभाव: व्यक्तियों को बाइबल से सीधे जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया और ईश्वर के साथ अधिक व्यक्तिगत और प्रत्यक्ष संबंध को बढ़ावा दिया।
- आस्था द्वारा औचित्य का सिद्धांत (सोला फाइड): यीशु मसीह में अत्यधिक विश्वास से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। उन्होंने मोक्ष के लिए पाप स्वीकारोक्ति, प्रार्थना और भोग की खरीदारी जैसे अच्छे कार्यों की आवश्यकता पर कैथोलिक चर्च की शिक्षा को चुनौती दी।
→ प्रभाव: इसने प्रोटेस्टेंट मान्यताओं को कैथोलिक चर्च से अलग करने में केंद्रीय भूमिका निभाई।
- बाइबिल का वर्नाक्यूलर (जर्मन) में अनुवाद, इसे आम लोगों के लिए सुलभ बनाता है जो पहले पादरी द्वारा उपयोग किए जाने वाले लैटिन अनुवादों पर निर्भर थे।
→ प्रभाव: व्यापक दर्शकों को स्वतंत्र रूप से धर्मग्रंथों को पढ़ने और व्याख्या करने की अनुमति दी गई। और स्थानीय भाषा का विकास
- 3 पैम्फलेट प्रकाशित
- जर्मन राष्ट्र के ईसाई कुलीन वर्ग के लिए → पादरी वर्ग के विशेषाधिकारों को समाप्त किया जाना चाहिए, राजा को चर्च का प्रमुख बनाया जाना चाहिए
- चर्च की बेबीलोनियाई कैद पर → पोप पर हमला
- एक ईसाई की स्वतंत्रता पर → यीशु – सोला फाइड और बाइबिल – सोला स्क्रिप्टुरा
- सभी विश्वासियों का पुरोहितत्व।
→ प्रभाव: इस विचार ने कैथोलिक चर्च की पदानुक्रमित संरचना को कमजोर कर दिया, अधिक समतावादी और विकेन्द्रीकृत प्रोटेस्टेंट चर्चों के विकास में योगदान दिया।
- गृह युद्ध और ऑग्सबर्ग की संधि: मार्टिन लूथर के सीधे विचारों, पोप की दिव्यता और एकाधिकार को अस्वीकार करते हुए यीशु और बाइबिल के अधिकार को स्वीकार करना, गृह युद्ध का कारण बना
→ प्रभाव: ऑग्सबर्ग की संधि के बाद लूथरनवाद को मान्यता।
- अन्य प्रभाव : राष्ट्रवाद का विकास, शिक्षा का प्रचार-प्रसार तथा समाज में नैतिक अनुशासन बढ़ा
इस प्रकार लूथर के विचारों ने न केवल कैथोलिक चर्च की विशिष्ट प्रथाओं को चुनौती दी बल्कि प्रति सुधार की नींव भी रखी।
Q3 आधुनिक भारत में वल्लभभाई पटेल का क्या योगदान है?(10M)
वल्लभभाई पटेल, जिन्हें “भारत का लौह पुरुष” भी कहा जाता है, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता और ब्रिटिश शासन से आजादी के लिए देश के संघर्ष में एक प्रमुख व्यक्ति थे।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भूमिका:
- खेड़ा सत्याग्रह (1918): गांधीजी के आग्रह पर स्वेच्छा से सूखे के दौरान राजस्व संग्रहण को निलंबित करने की मांग की।
- गांधीजी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- रचनात्मक कार्य (1920): युद्धविराम अवधि के दौरान “नो चेंजर” के रूप में रचनात्मक गतिविधियों में लगे रहे। शराबबंदी, छुआछूत, जातिगत भेदभाव के खिलाफ और महिला सशक्तिकरण के लिए काम किया।
- बारडोली सत्याग्रह (1928): अत्यधिक भूमि करों और जुर्माने को वापस लेने के लिए बातचीत और सामूहिक प्रतिरोध का नेतृत्व किया।
- आंदोलन की सफ़लता में उनकी भूमिका के लिए उन्हें “सरदार” की उपाधि मिली।
- कराची अधिवेशन (1931) के अध्यक्ष: कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुने गए, मौलिक अधिकारों और राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम पर संकल्प अपनाया।
विभाजन पर:
- वल्लभभाई पटेल मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में बढ़ते मुस्लिम अलगाववादी आंदोलन के समाधान के रूप में भारत के विभाजन को स्वीकार करने वाले पहले कांग्रेस नेताओं में से एक थे।
संविधान सभा :
- अल्पसंख्यकों, जनजातीय और बहिष्कृत क्षेत्रों, मौलिक अधिकारों और प्रांतीय संविधानों पर समितियों की अध्यक्षता की।
रियासतों का एकीकरण (1947):
- 562 रियासतों को सफलतापूर्वक भारतीय संघ में एकीकृत किया, उन्हें स्वतंत्र भारत के साथ जुड़ने के लिए मजबूर करने के लिए जूनागढ़ और हैदराबाद में सेना भेजने जैसे मजबूत कदम उठाए और इस प्रकार “भारत के लौह पुरुष” की उपाधि अर्जित की।
भारत के पहले उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्री के रूप में,
- पटेल ने प्रशासनिक और नौकरशाही ढाँचे की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अखिल भारतीय सेवा विजन:
- संघीय प्रशासनिक व्यवस्था में सामंजस्य और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए मजबूत अखिल भारतीय सेवाओं की वकालत की।
वल्लभभाई पटेल ने समकालीन भारत को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है, इसकी क्षेत्रीय एकता, प्रशासनिक व्यवस्था और शासन सिद्धांतों को आकार दिया है। उनकी स्थायी विरासत स्वतंत्रता के बाद के भारत के विकास में आधारशिला बनी हुई है।
Q4 निम्नांकित पंक्ति का भाव विस्तार कीजिए: (शब्द सीमा : लगभग 100 शब्द)
लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर।
जीवन में उन्नत स्थिति को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में स्वयं के लघु होने का, अकिंचन होने का, विनयशील होने का बोध होना आवश्यक है। हम अपनी लघुता से मुक्ति चाहने की प्रक्रिया में ही प्रभुता को, बड़प्पन को, सामर्थ्य को प्राप्त करेंगे। किंतु यदि व्यक्ति में प्रभुता का अर्थात् सामर्थ्यवान होने का भान हो गया, अहम् का एहसास हो गया तो फिर वह ईश्वर से दूर हो जाएगा। यह संसार विराट है, यह विभिन्न शक्तियों का पुंज है। व्यक्ति इस संसार की शक्तियों के बीच एक तुच्छ-सा, लघु-सा प्राणी है। किंतु वह विकासशील है, वह निरंतर अपनी शारीरिक, बौद्धिक, भौतिक, आध्यात्मिक सामर्थ्य को बढ़ाता हुआ महान बन सकता है बशर्ते कि उसमें अपने तुच्छ होने का भाव हो, फलस्वरूप उसमें सीखने और विकसित होने की ललक हो। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने विज्ञान के महानतम अविष्कार को कर लेने के बाद भी यही महसूस किया था कि वह इस संसार-सागर के किनारे छोटी-छोटी लहरें गिनने भर का कार्य कर सकता है| जब तक व्यक्ति में ऐसे छोटे होने का भाव रहता है, वह उन्नति के उच्च से उच्चतर मार्ग को प्राप्त करता जाता है। विश्व के महान व्यक्तियों ने अपने-आपको तुच्छ मानकर ही अपने व्यक्तित्व की ऊँचाइयों को प्राप्त किया है। किंतु यदि व्यक्ति को अपनी उन ऊँचाइयों का बोध हो जाए, घमंड हो जाए तो वह तुरंत स्खलित हो जाएगा फिर प्रभु की प्राप्ति का मार्ग तो संपूर्ण समर्पण चाहता है, वह तो तुलसीदास के- राम सो बड़ो है कौन, मो सो कौन छोटो’ के भाव से ही प्राप्त किया जा सकता है| रावण, कंस, बालि आदि शक्तिशाली व्यक्ति भी प्रभुता के दंभ में ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाए। अत: लघु के भाव से प्रभुता प्राप्त की जा सकती है किंतु प्रभुता के मदद से ईश्वर को नहीं प्राप्त किया जा सकता।