राजस्थान के लोकदेवता : पाबूजी राजस्थानी लोक साहित्य में पाबूजी को लक्ष्मण का अवतार माना जाता है। मेहरजाति के मुसलमान इन्हें पीर मानकर पूजा करते है| इन्हे ऊंटों का देवता भी कहा जाता है। मारवाड़ में ऊँट लाने का श्रेय इन्ही को है। ऊँट के बीमार होने पे इनकी पूजा की जाती है। रायका/ रेबारी जाति इन्हें अपना आराध्यदेव मानती है। साथ ही ये समाजसेवक भी थे, ‘नैणसी री ख्यात’ से पता चलता है की म्लेच्छ समझी जाने वाली थोरी जाति के सात भाइयों को इन्होने न केवल आश्रय दिया, वरन उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान दिलवाने का प्रयास किया। इनके मुख्य अनुयायी ‘थोरी, जाती के लोग है। जो ‘पाबूजी री फड़’ और ‘पाबूजी रा पावड़ा’ गाकर इनका सन्देश घर-घर पहुंचते है।
बाल्यकाल
पाबूजी का जन्म मारवाड़ के राव आसथान जी के पुत्र धांधलजी राठौड़ के यहां 1239 ई. में फलौदी तहसील के कोलू गाँव में हुआ था। इतिहासकार मुहणौत नैणसी, महाकवि मोडजी आशिया तथा लोगों में प्रचलित मान्यता के अनुसार इनका जन्म वर्तमान बाड़मेर से आठ कोस आगे खारी खाबड़ के जूना नामक ग्राम में अप्सरा के गर्भ से हुआ।
वीरता गाथा
अमरकोट के सूरजमल सोढ़ा की पुत्री सुपियार सोढ़ी (फुलम दे) के साथ पाबूजी का विवाह हुआ था। विवाह के मध्य ही उनके प्रतिद्वंद्वी बहनोई जायल (नागौर) नरेश जींदराव खींची ने पूर्व वैर के कारण देवल चारणी की गायों को घेर लिया। देवल ने पाबूजी से गायों को छुड़ाने की प्रार्थना की। तीन फेरे लेने के पश्चात् चौथे फेरे से पूर्व ही वे देवल चारणी की केसर कालमी घोड़ी पर सवार होकर गायों की रक्षार्थ रवाना हो गये। कड़े संघर्ष में 1276 ई. में इन्होने अनेक साथियों सहित वीर-गति प्राप्त की। उनकी पत्नी फूलमदे भी उनके साथ सती हो गयी। वीरता, प्रतिज्ञापालन, त्याग, शरणागत वत्सलता एवं गौ-रक्षा हेतु बलिदान होने के कारण जनमानस इन्हें लोक देवता के रूप में पूजता है।
पाबूजी से सम्बंधित यशोगान रचनाएँ
- पाबुजी रा छन्द – बीठूसूजा की रचना
- पाबूजी रा दोहा – लघराज की रचना
- पाबूप्रकाश- आशिया मोडजी की रचना (जीवनी)
- पाबूधणी री रचना – थोरी जाति द्वारा सारंगी पर किया जाने वाला यशोगान।
- पाबूजी की फड़(यश गाथा) – ऊँटों के स्वस्थ होने पर भोपे–भोपियों द्वारा गाई जाती है।
- पाबूजी के पावड़े ‘माठ’ वाद्य यंत्र के साथ थोरी जाति के लोगों द्वारा बांचे जाते है।
पाबूजी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
अन्य नाम | लक्ष्मण के अवतार, ऊंटों के देवता, प्लेग रक्षक देवता, गायों के देवता |
जन्म | 1239 ई. |
जन्म स्थान | कोलू गांव(फलौदी, जोधपुर) |
पिता | धांधलजी राठौड़ |
माता | कमला देवी |
पत्नी | सुपियार सोढ़ी {फुलम दे (अमरकोट के शासक सूरजमल सोढ़ा की पुत्री)} |
बहनोई | जींदराव खींची {जायल (नागौर) नरेश} |
कुल | धाँधलोत शाखा के राजपूत राठौड़ व राव सीहा के वंशज |
घोड़ा | केसर कालमी घोड़ी (देवल चारणी द्वता प्रदान) |
वीरगति | 1276 ई. में जोधपुर के देचु गांव |
मंदिर | कोलू (फलौदी) |
मेला | कोलु में चैत्र अमावस्या को पाबूजी का मेला लगता है। |
पूजा प्रतीक | भाला लिये अश्वारोही बांयी ओर झुकी पाग (पगड़ी) |
फड़ | फड़ के साथ वाद्ययंत्र – रावण हत्थे गीत – बयावले राजस्थान के सभी लोक देवताओं में सबसे छोटी फड़ है। |