राजस्थान के लोक देवता -राजस्थान का जनजीवन अनेक धर्मिक मान्यताओं और आस्थाओं से परिपूर्ण है। तेरहवीं सदी से राजस्थान में राजनीतिक संक्रमण, इस्लाम के प्रवेश व तुर्क आक्रमणों तथा उत्तर भारत के भक्ति आन्दोलन आदि के कारण यहाँ के जन-जीवन में एक नवीन परिवर्तन हुआ।
मुस्लिम प्रभाव तथा रूढ़िवाद और बाह्याडम्बर से उत्पन्न वातावरण में कुछ ऐसे संत और विचारक हुए जिन्होंने जाति-पांति के भेदभावों से ऊपर उठकर प्राणिमात्र के कल्याण की कामना की तथा मंदिरों और मूर्तियों की अपेक्षा ध्यान, मनन एवं नाम-स्मरण की दिशा में भक्ति का सहज रूप दिया जिससे विभिन्न अंधविश्वासों और रूढ़ियों से ग्रस्त जनमानस में नवीन चेतना एवं स्फूर्ति जागृत हुई। आमजन ने इनकी दिखाई राह का न केवल अनुसरण किया, वरन इन्हें देवता तुल्य मानते हुए, इन्हें राजस्थान के लोक देवता व लोक संत का दर्जा प्रदान किया।
लोकदेवता से तात्पर्य उन महापुरूषों से है जिन्होंने अपने वीरोचित कार्य तथा दृढ़ आत्मबल द्वारा समाज में सांस्कृतियों मूल्यों की स्थापना, धर्म की रक्षा एवं जन-हितार्थ हेतु सर्वस्व न्यौछावर कर दिया तथा ये अपनी अलौकिक शक्तियों एवं लोक मंगल कार्य हेतु लोक आस्था के प्रतीक हो गये। इन्हें जनसामान्य का दु:खहर्ता व मंगलकर्ता के रूप में पूजा जाने लगा। इनके थान देवल, देवरे या चबूतरे जनमानस मे आस्था के केन्द्र के रूप में विद्यमान हो गये। राजस्थान के सभी लोक देवता छुआछूत, जाति-पाँति के विरोधी व गौ रक्षक रहे है। एवं असाध्य रोगों के चिकित्सक रहे है। इनके विचार व कथन 15वीं व 16वीं शताब्दी मे संकलित हुए, जो वाणी, निशानी, छन्द, दोहा, ख्यात, वात, पद, गीता आदि के रूप में प्रसिद्ध है।
लोक देवी-देवताओं से सम्बंधी महत्वपूर्ण शब्दावली :
- नाभा – भक्त द्वारा अपने गले में बांधी गई आराध्य देव की सोने, चाँदी, पीतल, ताँबे आदि धातु की बनी छोटी प्रतिकृति
- परचा – अलौकिक शक्ति द्वारा किसी कार्य को करना अथवा करवा देना
- चिरजा – देवी की पूजा अराधना के पद, गीत या मंत्र (रात्रि जागरणों में अधिकांशत महिलाओं द्वारा गाए जाते है)
- देवरे/थान – ग्रामीण अंचलों में चबूतरेनुमा बने हुए लोक देवों के पूजा स्थल
- पंचपीर – मारवाड़ अंचल में पाबूजी, हडबू जी, रामदेवजी, मांगलिया व मेहा सहित पाँच लोक देवताओं के पंचपीर कहा गया है। जो कि निम्न दोहे मे परिलक्षित होते है।
पाबू, हडबू, रामदे, मांगलिया मेहा |
पांचू पीर पधारज्यों, गोगाजी जेहा ||
राजस्थान के लोक देवता:
मल्लिनाथ जी
1358 ई. में मारवाड़ के रावल सलखा और जाणीदे के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में जन्मे मल्लिनाथ जी अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् चाचा कान्हड़दे के यहाँ महेवा में शासन प्रबंध देखने लगे। 1374 ई. में चाचा कान्हड़देव की मृत्यु के पश्चात् वे महेवा के स्वामी बन गए। राज्य विस्तार के क्रम में 1378 ई. में फिरोज तुगलक के मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को इन्होंने परास्त किया।
अपनी रानी रूपांदे की प्रेरणा से वे 1389 ई. में उगमसी भाटी के शिष्य बन गये और योग-साधना की दीक्षा प्राप्त की। योग साधना से इन्हे सिद्ध पुरुष के रूप में ख्याति प्राप्त हुई। मल्लीनाथजी ने मारवाड़ के सारे संतों को एकत्र करके 1399 ई. में एक वृहत् हरि-कीर्तन आयोजित करवाया। इसी वर्ष चैत्र शुक्ल द्वितीया को इनका स्वर्गवास हो गया। तिलवाड़ा (बाड़मेर) गाँव में लूनी नदी के तट पर इनका मंदिर है। जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक विशाल पशु-मेला लगता है। जोधपुर के पश्चिमी परगने का नामकरण इन्हीं के नाम पर ‘मालानी’ किया गया था। इनकी आज भी मालानी (बाड़मेर) में अत्यधिक मान्यता है।
मल्लिनाथ जी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
सिद्धि | भविष्यद्रष्टा, सिद्ध पुरुष |
जन्म | 1358 ई. |
पिता | रावल सलखा |
माता | जाणीदे |
पत्नी | रूपांदे |
गुरु | उगमसी भाटी(1389 ई. में उगमसी भाटी के शिष्य बन गये और योग-साधना की दीक्षा प्राप्त की।) |
स्वर्गवास | 1399 ई. में चैत्र शुक्ल द्वितीया को |
मंदिर | लूणी नदी के किनारे तिलवाड़ा (बाड़मेर) में इनका मंदिर स्थित है। तिलवाड़ा में रानी रूपा-दे का मंदिर भी है। |
मेला | तिलवाड़ा (बाड़मेर) में चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक विशाल पशु-मेला आयोजित किया जाता है। |
धार्मिक विश्वास | मल्लीनाथ जी निर्गुण व निराकर ईश्वर को मानते है। |
उपदेश | इन्होने अज्ञान को छोड़ सत्य को भजने, सत्संगति करने, ऋषियों के मार्ग का अनुसरण करने तथा जाती पाँति के बंधनो को त्याग सर्वशक्तिमान ईश्वर की उपासना का उपदेश दिया। |
मेहाजी मांगलिया
मेहाजी मांगळिया को राजस्थान के पंचपीरों में गिना जाता हैं। इनका जन्म 15वीं शताब्दी में पंवार क्षत्रिय परिवार में हुआ था। ये राव चूण्डा के समकालीन थे। इनका पालन-पोषण ननिहाल में मांगळिया गोत्र में होने के कारण ये मेहाजी मांगळिया के नाम से प्रसिद्ध हुए। ये जैसलमेर के राव राणगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए। लोगों की सेवा, सहायता करने एवं उन्हें संरक्षण देने के कारण वे लोक देवता के रूप में पूजे गये। बापणी में इनका मन्दिर है, जहाँ भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को मेला भरता है।
मेहाजी मांगलिया के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
मुख्य अनुयायी | मांगलियों के इष्ट देव |
जन्म | 15 वीं शताब्दी, राव चुड़ा के समकालीन |
जन्म स्थान | बापणी गाँव, जोधपुर |
कुल | पंवार क्षत्रिय (ननिहाल में मांगळिया गोत्र में पालन-पोषण होने के कारण ये मेहाजी मांगळिया के नाम से प्रसिद्ध हुए।) |
मंदिर | बापणी गाँव(जोधपुर) माना जाता है की इनकी पूजा करने वाले भोपों की वंश वृद्धि नहीं होती। |
मेला | बापणी गाँव जोधपुर में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) को मेहाजी का मेला लगता है। |
वीरगति | जैसलमेर के राव राणगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए |
हरभूजी
हरभूजी भूंडोल(नागौर) के महाराज सांखला के पुत्र और राव जोधा (1438-89 ई.) के समकालीन थे। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् वे भूंडोल छोड़ हरभमजाल में बस गए। यहाँ रामदेवजी की प्रेरणा से इन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्यागकर उनके गुरु बालीनाथजी से दीक्षा ले ली।
लोक-मान्यता है कि मण्डोर को मेवाड़ के अधिकार से मुक्त कराने के प्रयासों के दौरान इन्होंने राव जोधा को आशीष के साथ एक कटार भी दी थी। इस सहायता व आशीर्वाद से जब यह भूभाग जोधा के अधीन आ गया तो जोधा ने इन्हें ‘बेंगटी’ गाँव भेंट किया। जहाँ 1721 ई. में महाराजा अजित सिंह द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया। इन्हे बहुत बड़ा शकुन शास्त्री, वचनसिद्ध और चमत्कारी महापुरुष माना जाता था। मनौती पूर्ण होने पर श्रद्धालु इनके मंदिर में स्थापित हड़बू जी की छकड़ा गाड़ी की पूजा करते है।
हरभूजी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
सिद्धि | शकुन शास्त्र के ज्ञाता |
जन्म | 15 वीं शताब्दी में, राव जोधा (1438-89 ई.) के समकालीन, रामदेव जी के मौसरे भाई |
जन्म स्थान | भूडोल (नागौर) |
पिता | मेहाजी साँखला (भूडोल के शासक) |
कुल | सांखला राजपूत |
गुरु | बालीनाथजी |
मंदिर | बैगटी गाँव (फलौदी, जोधपुर) 1721 ई. महाराजा अजित सिंह द्वारा मंदिर का निर्माण |
पुजारी | सांखला जाति के होते है। |
पूजा प्रतीक | पूजा स्थल पर मूर्ति के स्थान पर हड़बू जी की छकड़ा गाड़ी की पूजा की जाती है। |
सामाजिक योगदान | खेतिहर और निम्न जातियों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान, मूर्तिपुजा तीर्थ यात्रा का विरोध, ईश्वर स्मरण, सत्संग, अच्छे कर्म पर जोर। |
वीर कल्लाजी राठौड़
कल्ला जी का जन्म 1544 ई. में मेड़ता के निकट सामियाना गाँव (नागौर) में राव जयमल राठौड़ के छोटे भाई आससिंह के यहाँ हुआ था। मीरा इनकी बुआ थी। कल्ला जी बाल्यावस्था से ही अपनी कुलदेवी नागणेची की आराधना करते थे। ये अस्त्र-शस्त्र चलाने और औषधि विज्ञान में भी निपुण थे। 1562 ई. में मेड़ता पर अकबर के आक्रमण के दौरान कल्ला जी ने युद्ध में घायल जयमल को दोनों हाथों में तलवार पकड़ाकर उसे अपने कंधे पर बिठा लिया और स्वयं भी दो तलवारें लेकर युद्ध करने लगे। जयमल और कल्ला जी दोनों ने शत्रु सेना में तबाही मचा दी। इसी वीरता के कारण उनकी ख्याति चार हाथ, दो सिर वाले देवता के रूप में हुई। इन्हे शेषनाग का अवतार मानकर इनकी पूजा नागरूप में भी की जाती है। डूंगरपुर जिले के सामलिया गाँव में कल्ला जी की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति पर प्रतिदिन केसर तथा अफीम चढ़ाई जाती है। कल्ला जी के मध्यप्रदेश, मारवाड़ बाँसवाड़ा, डूंगरपुर और मेवाड़ में करीब पाँच सौ मंदिर हैं। इनके मंदिरों के पुजारी सर्पदंश से पीड़ित लोगों का उपचार करते हैं।
वीर कल्लाजी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
अन्य नाम | केहर, कमधण, कमधज, योगी, बाल ब्रह्मचारी, कल्याण |
जन्म | 1544 ई. |
जन्म स्थान | सामियाना गाँव मेड़ता (नागौर) |
पिता | आससिंह राठौड़ |
कुल | राठौड़ |
गुरु | योगी भैरवानाथ |
मंदिर | चित्तौड़ दुर्ग में भेरवपॉल के पास छतरी डूंगरपुर जिले के सामलिया गाँव में कल्ला जी की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है जिस पर प्रतिदिन केसर तथा अफीम चढ़ाई जाती है। |
मेला | आश्विन शुक्ला नवमी को |
पुजारी | इनके मंदिरों के पुजारी सर्पदंश से पीड़ित लोगों का उपचार करते हैं |
पूजा प्रतीक | शेषनाग का अवतार मानकर इनकी पूजा नागरूप में भी की जाती है |
भौमिया जी
- भौमिया जी- भूमि के रक्षक देवता
- राजस्थान के किसान इनकी पूजा प्रायः खेत-खलिहान मे करते है।
केसरिया कुँवर जी
- केसरिया कुँवर जी लोकदेवता गोगाजी के पुत्र थे।
- इनका भोपा सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति का इलाज करता है।
- इनका भोपा सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति का ज़हर मुँह से चूस कर बाहर निकाल देता है।
- सर्पदंश के इलाजकर्ता विशेष – इनका थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है जिस पर सफेद रंग का ध्वज फहराते है।
वीर बिग्गाजी
गौ-सेवक तथा गौ-रक्षक बिग्गाजी का जन्म 1301ई. में बीकानेर के रोड़ी गाँव में रावमहन व सुल्तानी के यहाँ एक जाट परिवार में हुआ था। इन्हे गायों से विशेष लगाव था अपना सम्पूर्ण जीवन गौ सेवा में व्यतीत किया मुस्लिम लुटेरों से गायों की रक्षार्थ ही इन्होने 1393 ई. में वीरगति प्राप्त की। जाखड़ गोत्र के जाट इन्हे अपना कुलदेवता मान कर पूजते है।
वीर बिग्गाजी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
मुख्य अनुयायी | जाखड़ समाज के कुल देवता |
जन्म | 1301 ई. |
जन्म स्थान | रोड़ी गाँव(बीकानेर) |
पिता | रावमहन |
माता | सुल्तानी |
कुल | जाखड़ जाट |
मंदिर | रोड़ी गाँव(बीकानेर) |
तल्लीनाथ जी
तल्लीनाथ जी जालौर के अत्यन्त प्रसिद्ध लोकदेवता है। इनका जन्म शेरगढ़ ठिकाने के शासक वीरमदेव के यहाँ हुआ था। इनका प्रारंभिक नाम गांगदेव था। सन्यास लेने के पश्चात् इन्होने गुरु जालंधर राव से दीक्षा प्राप्त की। प्रकृति प्रेमी होने के कारण इन्हें प्रकृति प्रेमी लोकदेवता भी कहते है। इन्होंने सदैव पेड़-पौधो की रक्षा व संवर्धन पर जोर दिया। जालौर के पाँचोटा गांव के निकट पंचमुखी पहाडी के बीच इनका स्थान है,पंचमुखी पहाड़ के आस-पास के क्षेत्र को स्थानीय लोग ओरण मानते है। यहाँ कोई पेड़-पौधों को नही काटता है। किसी व्यक्ति या पशु के बीमार पड़ने या जहरीला कीड़ा काटने पर इनके नाम का डोरा बाँधते है।
तल्लीनाथ जी के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
प्रारंभिक नाम | गांगदेव राठौड़ |
जन्म स्थान | शेरगढ़(जोधपुर) |
पिता | वीरमदेव(शेरगढ़) |
गुरु | जालन्धर राव |
मंदिर | पंचमुखी पहाड़, (पांचोटा गाँव, जालौर) |
पूजा प्रतीक | जालोर जिले के पाँचोटा गांव के निकट पंचमुखी पहाड़ी के बीच घोड़े पर सवार मूर्ति स्थापित |
भूरिया बाबा/गौतमेश्वर
- भूरिया बाबा मीणा जाती के इष्टदेव है।
- इनका मंदिर गौतमेश्वर महादेव सिरोही जिले में पहाड़ों के बीच सूकड़ी नदी के किनारे गौड़वाड़ क्षेत्र में स्थित है।
- मीणा जाति के लोग इनकी झूठी कसम नहीं खाते।
सिरोही जिले के औसलिया गाँव मे जवाई नदी के तट पर स्थित मंदिर में 13 अप्रैल से 15 अप्रैल के मध्य मीणाओं का सबसे बड़ा मेला लगता है। इस मेले मे वर्दी धारी पुलिसकर्मियों का प्रवेश वर्जित है।
देवबाबा
- देवबाबा ग्वालों के देवता है। इन्हे गुर्जरों व ग्वालों के पालनहार देवता भी कहा जाता है।
- इनका मुख्य मंदिर इनके जन्म स्थान नगला जहाज(भरतपुर) में स्थित है।
- भाद्रपद शुक्ल पंचमी व चैत्र शुक्ल पंचमी को नगला जहाज(भरतपुर) मे इनका मेला लगता है।
वीर फत्ता जी
वीर फत्ता जी का जन्म सांथू गांव (जालौर) में गज्जारणी परिवार में हुआ था। लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए ये वीरगति को प्राप्त हुए थे इनके जन्मस्थान सांथू गाँव, जालौर में इनका मुख्य मंदिर स्थित है जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल नवमी को मेला लगता है।
वीरपनराजजी
वीरपनराजजी का जन्म नगा गाँव, जैसलमेर के क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इन्होने काठोड़ी गाँव जैसलमेर के बाह्मण परिवार की गाय को मुस्लिम लुटेरों से बचाते हुए प्राणोत्सर्ग किया। पनराजसर गाँव, जैसलमेर में इनका मुख्यमंदिर स्थित है।
हरिराम बाबा
हरिराम बाबा के सम्बन्ध में कुछ तथ्य
जन्म | 1602 ई. (विक्रमी संवत 1659) |
पिता | रामनारायण |
माता | चन्दणी देवी |
गुरु | भूरा |
मंदिर | झोरड़ा गाँव (नागौर) |
मेला | चैत्र शुक्ल चतुर्थी व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को लगता है। |
पूजा प्रतीक | इनके मंदिर मे साँप की बाम्बी व बाबा के चरण प्रतीक के रूप में पूजा |
मामादेव
मामादेव राजस्थान के ऐसे लोकदेवता हैं, जिनकी मूर्ति मिट्टी या पत्थर की न होकर लकडी के कलात्मक व विशिष्ट तोरण होता है जिसे गाँव के मुख्य प्रवेश मार्ग पर स्थापित किया जाता है। इन्हे बरसात का देवता माना जाता है इन्हे प्रसन्न करने के लिए भैंसे की बलि दी जाती है।प्रतीक रूप में अश्वारूढ मृणमूर्तियाँ है जोकि हरजी गाँव जालौर की प्रसिद्ध है।
बाबा झुंझार जी
बाबा झुंझार जी का जन्म इमलोहा गाँव सीकर के राजपूत परिवार में हुआ था। मुस्लिम लुटेरों से गाँव की रक्षा करते हुए ये अपने भाइयों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए। इनका मुख्य मंदिर स्यालोदड़ा (सीकर) में स्थित है जहाँ प्रतिवर्ष रामनवमी को मेला लगता है।
गालव ऋषि
1857 की क्रांति के समय के क्रांतिकारी गालव ऋषि को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है। इनका मुख्य पीठ गलता जी (जयपुर) में स्थित है। इस तीर्थ को राजस्थान का बनारस भी कहा जाता है।
इलोजी
राजस्थान के लोक देवता इलोजी को मारवाड़ में छेड़छाड़ के लोक देवता कहा जाता है अविवाहितों को दुल्हन व नवदम्पतियों को सुखद जीवन, बाँज स्त्रियों को संतान का वरदान देते है।
झरड़ा जी/रूपनाथ
रूपनाथ जी का जन्म जोधपुर के कोलूमण्ड में हुआ था। ये पाबूजी के बड़े भाई बुढों जी के पुत्र थे। इन्होंने जिदराव खींची को मारकर पिता व चाचा की मृत्यु का बदला लिया था। इन्हे हिमाचल प्रदेश मे बालकनाथ के नाम से पूजा जाता है। इनका मंदिर शिम्भूदडा गाँव (नोखा मण्डी, बीकानेर) व कोलुमण्ड (जोधपुर) में स्थित है।
डूंगरजी-जवाहरजी(काका भतीजा)
डूंगरजी-जवाहरजी डाकू के रूप में प्रसिद्ध सीकर के लोकदेवता है। ये दोनों धनी लोगों को लूटकर सारा धन गरीबों में बाँट देते थे। इन्होने नसीराबाद छावनी को लूटा था।
अमराजी भगत (अनगढ़ बावजी)
लोकदेवता अमराजी भगत का जन्म चित्तौड़गढ़ जिले की भदेसर तहसील के गांव नरबदिया में गाडरी समाज में हुआ था। उनके पिता का नाम रामलाल और माता का नाम दाखी बाई था। अमराजी महान संत व समाज सुधारक थे। इन्होने समाज में फैली कुरीतियों, मांसाहार, शराब सेवन से दूर रहने का सन्देश समाज को दिया है। राजस्थान के प्रमुख तीर्थ स्थल सांवरिया सेठ के निर्माण में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। अमरा भगत जी की मूर्ति को किसी ने बनाया अर्थात गढ़ा नहीं है इसी कारण इन्हे अनगढ़ कहा जाता है। अनगढ़ बावजी गाडरी समाज के आराध्य देव माने जाते है। इन्होने नरबदिया में जीवित समाधी ली थी।
- राज्य सरकार चित्तौड़गढ़ जिले की भदेसर तहसील के गांव दौलतपुरा में लोकदेवता अमरा जी भगत (अनगढ़ बावजी) का पैनोरमा बनाएगी। मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने पैनोरमा निर्माण के लिए 4 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी है।
- इस पैनोरमा में अमराजी भगत द्वारा किए गए सामाजिक सरोकार के कार्यों को विभिन्न माध्यमों के जरिए दर्शाया जाएगा।
- पैनोरमा के मुख्य भवन में हॉल, सभागार, पुस्तकालय, प्रवेश द्वार, छतरी, स्कल्पचर्स, ऑडियो-वीडियो सिस्टम, शिलालेख सहित विभिन्न आर्ट वर्क विकसित किए जाएंगे।