राजस्थान के प्रमुख लोक गीत
राजस्थान अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत के लिए जाना जाता है। यहां के लोक गीत भी इसी समृद्ध संस्कृति हिस्सा हैं। राजस्थान के लोक गीत न केवल संगीतमय हैं, बल्कि इनमें राजस्थानी जीवन और संस्कृति का गहरा समावेश है।
राजस्थान के लोक गीतों को उनकी विषय वस्तु के आधार पर कई श्रेणियों में बांटा जा सकता है। इनमें से कुछ प्रमुख श्रेणियां हैं:
- सामाजिक लोकगीत: जन साधारण द्वारा सामाजिक उत्सवों, जन्म, विवाह, स्वागत, विदाई, संस्कार, तीज, गणगौर, होली आदि के अवसरों पर गाया जाने वाला लोक संगीत। इन गीतों के भाव बहुत सुकोमल एवं मन को छूने वाले होते हैं। ईंडोणी, कांगसियो, गोरबंद, पणिहारी, लूर, ओल्यूं, हिचकी, सुपणा, मूमल, कुरजां काजलिया, कागा, जीरा, पोदीना, चिरमी तथा लांगुरिया आदि इसके उदाहरण है।
- धार्मिक लोकगीत: देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करने, उन्हें प्रसन्न करने तथा उनसे मनवांछित फल प्राप्त करने के उद्देश्य से राजस्थान में रात्रि जागरण की बड़ी पुरानी और व्यापक प्रथा रही है जिसे रातीजगा कहा जाता है। विनायक, महादेव, विष्णु, राम, कृष्ण, बालाजी (हनुमान), भैंरू, जुंझार, पाबू, तेजा, गोगा, रामदेव, देवजी, रणक दे, सती माता, दियाड़ी माता, सीतला माता, भोमियाजी आदि के भजन इन रात्रि जागरणों में गाये जाते हैं। मीरां, कबीर, दादू, रैदास, चंद्रस्वामी तथा बख्तावरजी के पद भी बड़ी संख्या में गाये जाते हैं। इन गीतों में धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं पर आधारित गीत शामिल होते हैं।
- वीर रस के लोकगीत: राजाओं एवं सामंतों की प्रशस्ति में तथा उनके आमोद-प्रमोद के लिए गाया जाने वाला लोक संगीत। सामंती परिवेश में प्रयुक्त लोक गीत वीर रस एवं श्रृंगार रस से परिपूर्ण हैं। इनमें वीरता, शौर्य और साहस पर आधारित गीत शामिल हैं।
राजस्थान में लोक गीतों की इतनी सुदीर्घ परम्परा का मूल कारण यहाँ निवास करने वाली वे अनेक जातियाँ हैं जो केवल गा-बजाकर ही अपना भरण पोषण करती हैं। इनके गीत परिष्कृत, भावपूर्ण तथा विविधता लिए होते हैं। शास्त्रीय संगीत की भांति इनमें भी स्थायी तथा अंतरे का स्वरूप दिखाई देता है। खयाल तथा ठुमरी की भांति इन्हें छोटी-छोटी तानों, मुरकियों तथा विशेष आघात देकर सजाया जाता है। इन गीतों को मांड, देस, सोरठ, मारू, परज, कालिंगड़ा, जोगिया, आसावरी, बिलावल, पीलू खमाज आदि राग-रागिनियों में गाया जाता है।
- जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर क्षेत्रों में गाये जाने वाले गीत – कुरजां पीपली, रतन राणो, मूमल, घूघरी केवड़ा आदि।
- जयपुर, कोटा, अलवर, भरतपुर, करौली तथा धौलपुर आदि मैदानी भागों में स्वरों के उतार-चढ़ाव वाले गीत गाये जाते हैं। इन क्षेत्रों में सामूहिक रूप से गाये जाने वाले भक्ति और श्रृंगार रस से ओत-प्रोत गीत गाये जाते हैं
मांड तथा मारू रागों का संक्षिप्त परिचय
मांड
राजस्थान की मांड गायकी अत्यंत प्रसिद्ध है। इसे थोड़े-बहुत अंतर के साथ क्षेत्र विशेष में अलग-अलग तरह से गाया जाता है।राग सोरठ, देस तथा मांड तीनों एक साथ गाई व सुनी जाती हैं। राजस्थान की प्रमुख मांड गायकी
- उदयपुर की मांड
- जोधपुर की मांड
- जयपुर-बीकानेर की मांड
- जैसलमेर की मांड
मारू
सेनाओं के रण प्रयाण के समय लोक गायकों द्वारा वीर भाव जागृत करने वाले सिंधु तथा मारू रागों पर आधारित गीत गाये जाते थे। पश्चिमी राजस्थान में गाये जाने वाले लोक गीत ऊंचे स्वर व लम्बी धुन वाले होते हैं जिनमें स्वर विस्तार भी अधिक होता है।
राजस्थान के प्रमुख लोक गीत
- ओल्यूँ – ओल्यूँ अर्थात स्मरण। ओल्यूँ किसी की स्मृति में गाई जाती है। बेटी की विदाई पर ओल्यूँ इस प्रकार गाई जाती है- कँवर बाई री ओल्यूँ आवे ओ राज
- ईडोणी -पानी भरने जाते समय स्त्रियां मटके को सिर पर टिकाने के लिए मटके के नीचे ईंडोणी का प्रयोग करती हैं। इस अवसर पर यह गीत गाया जाता है- म्हारी सवा लाख री लूम गम गई ईंडोणी
- कांगसियो – कंघे को राजस्थानी भाषा में कांगसिया कहा जाता है। यह श्रृंगार रस का प्रमुख गीत है- म्हारै छैल भँवर रो कांगसियो पणिहारियों ले गई रे ।
- कागा – इस गीत में विरहणी नायिका द्वारा कौए को सम्बोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मनाया जाता है- उड़-उड़ रे म्हारा काळा रे कागला, जद म्हारा पिवजी घर आवै।
- कालियो – यह श्रृंगार रस से ओत-प्रोत गीत है जो होली के अवसर पर चंग के साथ गाया जाता है।
- कामण – शादी विवाह के अवसर पर वर को जादू-टोने से बचाने के लिये स्त्रियाँ कामण गाती हैं।
- कुरजाँ – इस गीत में नायिका द्वारा परदेस में रहने वाले अपने प्रियतम को संदेश भिजवाने के लिए कुरजां पक्षी के माध्यम से यह गीत गाया जाता है- कुरजां ए म्हारौ भंवर मिलादयो ए।
- केसरिया बालम – यह राजस्थान का राज्य गीत है। इस रजवाड़ी गीत में विरहणी नारी अपने प्रियतम को घर आने का संदेश देती है- केसरिया बालम आवो नीं, पधारौ म्हारे देस
- गणगौर – गणगौर त्यौहार पर देवी पार्वती को समर्पित गणगौर के गीत गाये जाते हैं- खेलन द्यो गणगौर, भँवर म्हानै खेलन द्यो गणगौर ।
- गोरबंद – गोरबंद ऊँट के गले का आभूषण होता है जिस पर शेखावाटी क्षेत्र में लोक गीत गाये जाते हैं- म्हारो गोरबंद नखरालौ ।
- घुड़ला – मारवाड़ के घुड़ला पर्व पर कन्याएँ छिद्रित मटके में दिया रखकर घर-घर घूमती हुई गाती हैं- घुड़लो घूमेला जी घूमेला, घुड़ले रे बांध्यो सूत ।
- घूमर – यह राजस्थान का राज्य नृत्य है। त्योहारों व विशेष अवसरों पर घूमर नृत्य के साथ घूमर गाया जाता है- म्हारी घूमर छै नखराली ए माँ घूमर रमवा म्हें जास्यां ।
- घोड़ी – बारात की निकासी पर घोड़ी गाई जाती है – इन्द्रलोक सूँ आई ओ राज घोड़ी म्हारी चन्द्रमुखी
- चिरमी – वधू अपने ससुराल में अपने भाई और पिता की प्रतीक्षा में चिरमी के पौधे को सम्बोधित करके गाती है- चिरमी रा डाळा चार वारी जाऊँ चिरमी ने।
- जच्चा – बालक के जन्मोत्सव पर जच्चा या होलर गाये जाते हैं।
- जलो और जलाल – वधू के घर की स्त्रियाँ बारात का डेरा देखने जाते समय जलो और जलाल गाती हैं- म्हैं तो थारा डेरा निरखण आई ओ, म्हारी जोड़ी रा जला ।
- जीरा – यह लोक गीत कृषक नारी द्वारा जीरे की खेती में आने वाली कठिनाई को व्यक्त करने के लिये गाया जाता है ओ जीरो जीव रो बैरी रे, मत बाओ म्हारा परण्या जीरो ।
- झोरावा – यह जैसलमेर क्षेत्र में गाया जाने वाला विरह गीत है जो पति के परदेश जाने पर उसके वियोग में गाया जाता है।
- ढोला-मारू – सिरोही क्षेत्र में गायक जाति ढाढियों द्वारा गाया जाने वाला गीत जिसमें ढोला-मारू की प्रेमकथा का वर्णन किया जाता है।
- तेजा – जाट जाति के लोगों द्वारा कृषि कार्य आरंभ करते समय लोक देवता तेजाजी को सम्बोधित करके तेजा गाया जाता है।
- पंछीड़ा – हाड़ौती एवं ढूंढाड़ी क्षेत्रों में मेले के अवसर पर अलगोजे, ढोलक एवं मंजीरे के साथ पंछीड़ा गाया जाता है।
- पणिहारी – पानी भरने वाली स्त्री को पणिहारी कहते हैं। इस गीत में स्त्रियों को पतिव्रत धर्म पर अटल रहने की प्रेरणा दी गई है।
- पपैयो – यह दाम्पत्य प्रेम के आदर्श को दर्शाने वाला गीत है जिसमें प्रेयसी अपने प्रियतम से उपवन में आकर मिलने का अनुरोध करती है।
- पावणा – जवांई के ससुराल आने पर स्त्रियाँ उसे भोजन करवाते समय पावणा गाती हैं।
- पीपली – मरुस्थलीय क्षेत्र में वर्षा ऋतु में पीपली गाया जाता है जिसमें विरहणी द्वारा प्रेमोद्गार व्यक्त किये जाते हैं।
- बधावा – शुभ कार्य सम्पन्न होने पर बधावा अर्थात् बधाई गीत गाए जाते हैं।
- बना-बनी – लड़के के विवाह पर बना तथा लड़की के विवाह पर बनी गीत गाये जाते हैं।
- बीछूड़ो – यह हाड़ौती क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है। एक पत्नी को बिच्छू ने डस लिया है और वह मरने से पहले अपने पति को दूसरा विवाह करने का संदेश देती है- मैं तो मरी होती राज, खा गयो बैरी बीछूड़ो।
- मूमल – जैसलमेर में गाया जाने वाला श्रृंगारिक गीत जिसमें मूमल के नख- शिख का वर्णन किया गया है- म्हारी बरसाले री मूमल, हालौनी ऐ आलीजे रे देश
- मोरिया – इस सरस लोक गीत में ऐसी नारी की व्यथा है जिसका सम्बन्ध तो हो चुका है किंतु विवाह होने में देर हो रही है। इसे रात्रि के अंतिम प्रहर में गाया जाता है।
- रसिया – ब्रज क्षेत्र में रसिया गाया जाता है।
- रातीजगा – विवाह, पुत्र जन्मोत्सव, मुण्डन आदि शुभ अवसरों पर रात भर जागकर भजन गाये जाते हैं जिन्हें रातीजगा कहा जाता है।
- लांगुरिया – करौली क्षेत्र में कैला देवी के मंदिर में हनुमानजी को सम्बोधित करके लांगुरिया गाये जाते हैं- इबके तो मैं बहुअल लायो, आगे नाती लाऊंगो, दे-दे लम्बो चौक लांगुरिया, बरस दिनां में आऊंगो । लांगुरिया को सम्बोधित करके कामुक अर्थों वाले गीत भी गाये जाते हैं- नैक औढ़ी- इयौढ़ी रहियो, नशे में लांगुर आवैगो ।
- लावणी – नायक द्वारा नायिका को बुलाने के लिए लावणी गाई जाती है- श्रृंगारिक लावणियों के साथ-साथ भक्ति सम्बन्धी लावणियां भी प्रसिद्ध हैं। मोरध्वज, सेऊसंमन, भरथरी आदि प्रमुख लावणियां हैं।
- सीठणे – विवाह समारोह में आनंद के अतिरेक में गाली गीत गाये जाते हैं। जिन्हें सीठणे कहते हैं।
- सुपणा – विरहणी के स्वप्न से सम्बन्धित गीत सुपणा कहलाते हैं- सूती थी रंग महल में, सूत में आयो रे जंजाळ, सुपणा में म्हारा भँवर न मिलायो जी
- सूंवटिया – यह विरह गीत है। भील स्त्रियाँ पति के वियोग में सूंवटिया गाती हैं।
- हरजस – भगवान राम और भगवान कृष्ण को सम्बोधित करके सगुण भक्ति लोक गीत गाये जाते हैं जिन्हें हरजस कहा जाता है।
- हिचकी – ऐसी मान्यता है कि प्रिय के द्वारा स्मरण किए जाने पर हिचकी आती है। अलवर क्षेत्र में हिचकी ऐसे गाई जाती है- म्हारा पियाजी बुलाई म्हानै आई हिचकी ।
- हींडो – श्रावण माह में झूला झूलते समय हींडा गाया जाता है- सावणियै रौ हींडौ रे बाँधन जाय।
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