राजस्थान की बावड़ियां
राजस्थान की विषम प्राकृतिक परिस्थितियों व भौगोलिक कारकों के कारण यहाँ पेयजल की उपलब्धता हमेशा ही कम रही, किन्तु इस मरु प्रदेश के वासियों ने अपने जलप्रबंधन कौशल से सदियों से इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना किया। पानी की बूंद-बूंद को सहेजना और उसका सदुपयोग करना राजस्थान के लोगों की दिनचर्या का हिस्सा है। जल प्रबंधन के अपने इस कौशल को राजस्थान के लोग पीढ़ी- दर-पीढ़ी संचरित कर रहे हैं। यहाँ बने पुरातात्विक जल संरक्षण स्थलों से यहाँ के लोगों की जल संरक्षण परंपरा का पता चलता है।
इतिहास
तालाब का सुव्यवस्थित और सुसज्जित रूप कुंड या बावड़ी कहलाता है। राजस्थान में बापी (बावड़ी) निर्माण की परम्परा अति प्राचीन है। यहाँ पर हड़प्पा युग की संस्कृति में बावड़ियाँ बनाई जाती थीं। प्राचीन शिलालेखों में बावड़ी निर्माण का उल्लेख प्रथम शताब्दी से मिलता है। भीलवाड़ा के गंगापुर के निकट नांदसा गांव में एक यूप स्तंभ मिला है, जो विक्रम संवत 282 में लिखा गया शिलालेख है। तीसरी सदी के शिलालेख में पुष्करराज तीर्थ का उल्लेख मिलता है। झालावाड़ संग्रहालय में रखे गंगाधर शिलालेख में बावड़ी के निर्माण का उल्लेख किया गया है। यह शिलालेख विक्रम संवत 480 में लिखा गया था। ये शिलालेख बताते हैं कि राजस्थान में बावड़ी और सरोवर निर्माण की परंपरा सदियों पुरानी है।
पौराणिक साहित्य के विभिन्न ग्रंथों में वापी, कूप और तड़ाग (बावड़ी, कुओं और तालाब) के विभिन्न प्रकारों, उनके निर्माण तथा रख- रखाव के तरीकों के साथ ही इनके निर्माण एवं नवीनीकरण के कारण व्यक्ति को प्राप्त होने वाले यश एवं पुण्यों का वर्णन किया गया है। इन ग्रंथों में बावड़ी को वापिका, वापी, कर्कधु, शर्कधु आदि नामों से पुकारा जाता था।
- कालिदास के मेघदूत में यक्ष द्वारा अपने घर के भीतर बावड़ी का वर्णन किया है।
- सुंदरकांड में अशोक वाटिका में हनुमान ने ऐसी बावड़ी देखी जिनमें पीले रंग के कमल खिले हुए थे।
- राजस्थान की प्रारंभिक बावड़ियों में अंबलेश्वर की शुंगकालीन बावड़ी महत्वपूर्ण है। पत्थर से बनी यह बावड़ी आकार में गोल है। इसके नजदीक ही समकालीन ब्राह्मी लिपि में लिखा एक स्तंभ मिलता है।
- प्राचीनकाल में अधिकांश बावड़ियाँ मन्दिरों के सहारे बनाई जाती थी। इसके अलावा राजस्थान में ज्यादातर बावड़ियां वर्गाकार मिलती हैं, जो समय के साथ बावड़ी निर्माण की कला के बदलने और बेहतर होने की और इंगित करती हैं।
राजस्थान की बावड़ियां
देश में बावड़ियों का प्रचलन सबसे अधिक राजस्थान व गुजरात में है। राजस्थान में अधिकांश सभी जिलों में बावड़ियां पाई जाती हैं, किन्तु इनमे से कुछ अपने अद्वितीय स्थापत्य और निर्माण की वजह से विश्व प्रसिद्ध हैं, जिन्हें देखने बड़ी संख्या में पर्यटक आते है।
बावड़ियों के निर्माण की प्रकृति एवं डिजाइन उस जगह की प्राकृतिक स्थितियों, वर्षा की मात्रा, भूमिगत जल स्तर मिट्टी के प्रकार, निर्माण करने वाले की आर्थिक स्थिति आदि पर निर्भर करती थी। पश्चिम में बीकानेर से कच्छ के रण के तट तक के कुएं एवं बावड़ियां आकार में भिन्न होती हैं और घाटों से घिरी हुई हैं तथा पानी के लिए जलग्रहण क्षेत्र में नीचे की ओर जाती हुई हैं। अरावली के पहाड़ी पथ में बावड़ियां अत्यधिक कौशल युक्त कलात्मक वास्तुकला की अनुपम कृतियां हैं।
बूंदी, अलवर, टोंक, भीलवाड़ा और जयपुर क्षेत्रों में पाए जाने वाले इन कुंडों के आसपास कलात्मक सीढ़ियां और स्तंभ के मनोहारी अलंकरण अत्यंत आकर्षक हैं। जलस्रोतों में उत्कृष्ट नक्काशियों, मेहराब, बरामदों और प्रस्तर उत्कीर्णन करने का कार्य किया गया है।
बावड़ियों के प्रकार
प्राचीन शिलालेखों में बावड़ी के संस्कृत रूप वापी के उल्लेख प्रथम शताब्दी में मिलते हैं। बावड़ियां आस्था का प्रतीक होती थीं राजपूताना में सर्वप्रथम बावड़ी निर्माण राव जोधा ने करवाया था। भोज द्वारा रचित वास्तुशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अपराजितपृच्छा’ में बावड़ियों के चार प्रकार बताए गए हैं
नंदा – इसमें एक या दो द्वार तथा तीन कूट होते हैं।
भद्रा – दो दीवारों एवं षट कूट वाली सुंदर बावड़ी
जया – इस दुर्लभ बावड़ी में तीन द्वार व नौ कूट होते थे।
सर्वतोमुख – इसमें चार द्वार तथा बारह सुंदर कोट होते थे।
राजस्थान की प्रमुख बावड़ियां
राजस्थान में बावड़ियों के निर्माण में बंजारों का सर्वाधिक योगदान रहा है। यहाँ की बावड़ियां विभिन्न प्रकार से अलंकृत व सज्जित की गई हैं तथा ये उस समय के लोगों की कला के प्रति परिष्कृत सुरुचि की प्रतीक हैं। ये बावड़ियां गहरी, चौकोर तथा कई मंजिला होती हैं। ये सामूहिक रूप से धार्मिक उत्सवों पर स्नान के लिए भी प्रयोग में आती थीं।
शिलालेख सिद्ध करते हैं कि राहगीरों, राज-परिवारों, धार्मिक स्थलों, श्मशान, यज्ञ और शिकार करने, दान करने, अकाल राहत कार्यों आदि प्रयोजन से सराय, विश्रामगृह, बावड़ी, कुंड, कुओं आदि का निर्माण करवाया जाता था। राजस्थान में करीब तीन हजार से ज्यादा बावड़ियां और कुंड हैं।छोटी काशी बूंदी में सैकड़ों बावड़ियां हैं, इसलिए बूंदी शहर को बावड़ियों का शहर या सिटी ऑफ स्टेपवेल के नाम से जाना जाता है
चांद बावड़ी, (आभानेरी, दौसा)
बांदीकुई से 8 किलोमीटर दूर आभानेरी मंदिरों के समूह के साथ ही अपनी बावड़ी के लिए भी प्रसिद्ध है। आभानेरी गांव में स्थित चांद बावड़ी भारत की सबसे सुंदर बावड़ियों में से एक है। यह भारत की प्राचीनतम बावड़ियों में से है जो अब भी सजीव हैं भारत की इस सर्वाधिक गहरी बावड़ी का निर्माण निकुंभ वंश के राजा चंदा या चंद्रा ने 8वीं से 9वीं शताब्दी में करवाया था। यह एक वैष्णव मंदिर से संबद्ध है जिसे हर्षत माता मंदिर के नाम से जाना जाता हैं।
चांद बावड़ी के अंदर बनी आकर्षक सीढ़ियां कलात्मक और पुरातत्व कला का शानदार उदाहरण हैं। 13 मंजिल की इस बावड़ी के अंदर 3,500 सीढ़ियां हैं। यहाँ “अंधेरी उजाला” के नामक एक छोटा सा कमरा भी है। बावड़ी की सबसे नीचे की दो ताखों में गणेश एवं महिषासुरमर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं हैं इसके साथ ही यहाँ देव प्रतिमाएं एवं देव कुलिकाएं गढ़ी हुई है जो इसके सौंदर्य को बढ़ाती है।
चौकोर आकार में बनी यह बावड़ी हर ओर से 35 मीटर लंबी है। चार में से तीन कोनों में सीढ़ियां हैं, जो गहराई तक पहुंचती हैं। इस क्षेत्र की जलवायु रुखी- सूखी है और उस समय यहां पानी की बहुत कमी रहती थी, इसलिए इतनी गहरी बावड़ी का निर्माण करवाया गया। इस बावड़ी में जमा किया गया पानी एक साल तक स्थानीय लोगों की जरूरतें पूरी करता था। इस बावड़ी के नीचे एक लंबी सुरंग है। जो भांडारेज स्थित बड़ी बावड़ी से होती हुई आलूदा गांव के कुंड कुबाणा तक जाती है।
रानी जी की बावड़ी, बूंदी
बावड़ियों का शहर के नाम से प्रसिद्ध छोटी काशी बूंदी में तकरीबन 71 छोटी-बड़ी बावड़ियां स्थित हैं। इनमे ‘रानी जी की बावड़ी’ की गणना एशिया की सर्वश्रेष्ठ बावड़ियों में की जाती है। इसमें लगे सर्पाकार तोरणों की कलात्मक पच्चीकारी अत्यंत आकर्षक है। बावड़ी की दीवारों में विष्णु के दशावतार मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, इंद्र, सूर्य, शिव, पार्वती,सरस्वती, गणेश नव ग्रहों और गजलक्ष्मी आदि देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएं हैं।
इस कलात्मक बावड़ी में प्रवेश के लिए तीन दरवाजे हैं। यह बावड़ी करीब 300 फीट लंबी एवं 40 फीट चौड़ी है। बावड़ी की गहराई 200 फीट के आस-पास है। यहां बना तोरण द्वार भव्य है जो 8 स्थानों पर बना हुआ है। इसकी महराबे 30 मीटर तक ऊंची हैं।
इस बावड़ी का निर्माण राव राजा अनिरुद्ध सिंह की रानी राजमाता नाथावती ने 1699 ई. में अपने पुत्र बुध सिंह के शासनकाल में करवाया था रानी जी की बावड़ी के अंदर जाने के लिए 100 से अधिक सीढ़ियां बनी हैं। इसकी स्थापत्य कला बहुत ही दर्शनीय व आकर्षक है। यह मुगल एवं राजपूत स्थापत्य कला का मिश्रण है। यह कलात्मक बावड़ी उत्तर मध्य युग की अनुपम देन है। इस बावड़ी को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित इमारत का दर्जा प्रदान किया गया है। इसके अलावा बूंदी में स्थित चंपा बाग की बावड़ी गर्मी में शीतल जल के लिए प्रसिद्ध है, जबकि गुलाब बावड़ी कुंडली आकार की है और दिन के तीसरे पहर में अपने आप ही पानी से भर जाती है।
बूंदी की अन्य बावडियां :
1 | साबू नाथ की बावड़ी | 11 | नाहर घुस की बावड़ी |
2 | दमरा व्यास बावड़ी | 12 | चेन राय करीला की बावड़ी |
3 | थाबाई जी बावड़ी नानकपुरिया | 13 | बालचंद पाड़ा की बावड़ी |
4 | मनोहर डाकरा बावड़ी | 14 | अनारकली की बावड़ी |
5 | नीमराणा की बावड़ी | 15 | माननासी बावड़ी |
6 | मेघनाथ की बावड़ी | 16 | भिस्तियों की बावड़ी एल (L) बावड़ी |
7 | नाथ की बावड़ी | 17 | पठान की बावड़ी |
8 | दीवान की बावड़ी | 18 | सांमरिया की बावड़ी |
9 | मोचियों की बावड़ी | 19 | माता की बावड़ी भावलदी बावड़ी |
10 | श्याम बावड़ी | 20 | गुलाब बावडी |
भांडारेज की बावड़ी, दौसा
दौसा से 11 किलोमीटर दूर स्थित भांडारेज गांव में स्थित भांडारेज की बावड़ी प्राचीन शिल्पकला का सुंदर उदाहरण है। पांच मंजिल की इस बावड़ी की सीढ़ियां तल तक जाती हैं। सीढ़ियों को छायादार बनाने के लिए उनके ऊपर बरामदे बनाए हुए हैं। प्रवेश द्वार भी आकर्षक एवं भव्य हैं।
यहां से प्राप्त शिलालेख से पता चलता है कि इस बावड़ी का निर्माण 1789 संवत में कुभाणी शासक दीप सिंह व दौलत सिंह ने करवाया था। इसी से थोड़ी दूर नानगरामजी का कुंड है जिसे छोटी बावड़ी कहते हैं। यहां मिले शिलालेख के अनुसार संवत 1891 में राव रणजीत सिंह धूला ने यहां स्थित ब्रज गोपालजी के मंदिर और ठाकुर आनंद सिंह के पुत्र मानसिंह ने छोटी बावड़ी का निर्माण करवाया था।
नीमराना की बावड़ी, कोटपुतली-बहरोड़
इस बावड़ी का निर्माण 18वीं सदी में राजा टोडरमल ने नीमराना में करवाया था। इस नौ मंजिला बावड़ी की लंबाई 250 फीट व चौड़ाई 80 फीट है। इसमें समय पर एक छोटी सैनिक टुकड़ी को छुपाया जा सकता था। मध्यकालीन इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना यह है कि इस नौ मंजिला बावड़ी के निचले भाग में तापमान 19 डिग्री कम हो जाता है।
हाड़ी रानी की बावड़ी, (टोडारायसिंह, केकड़ी)
बूंदी की राजकुमारी हाड़ी रानी ने लगभग 16वीं शताब्दी में बेजोड़ स्थापत्य कला के इस नमूने का निर्माण करवाया था। हाड़ी रानी का विवाह सोलंकी शासक से हुआ था। इसके एक और बने अनूठे विश्राम कक्ष अपने आकार ऊंचाई व ठंडक के कारण जाने जाते हैं।
पन्ना मीना की बावड़ी, (आमेर, जयपुर)
17वीं सदी की अत्यंत आकर्षक इस बावड़ी के एक और जयगढ़, आमेर दुर्ग व दूसरी और पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता है। यह अपनी अद्भुत आकार की सीढ़ियों, अष्टभुजा किनारों और बरामदों के लिए विख्यात है। चांद बावड़ी तथा हाड़ी रानी की बावड़ी के समान इसमें भी तीन तरफ सीढ़ियां है। इसके चारों किनारों पर छोटी-छोटी छतरियां और लघु देवालय इसे मनोहारी रूप प्रदान करते हैं।
रंगमहल की बावड़ी, (सूरतगढ़, श्रीगंगानगर)
रंगमहल किसी समय यौधेय गणराज्य की राजधानी था। पहले सिकंदर के आक्रमण और उसके बाद हूणों के आक्रमण से रंगमहल पूरी तरह नष्ट हो गया। उत्खनन में यहां से एक प्राचीन बावड़ी प्राप्त हुई है जिसमें 2 फीट लंबी तथा 2 फीट चौड़ी ईंटें लगी हैं। यह बावड़ी इस बात का प्रतीक है कि शकों के भारत आगमन के बाद भी रंगमहल सुरक्षित था, क्योंकि बावड़ी बनाने की कला शक अपने साथ भारत लाए थे।
भीकाजी की बावड़ी, अजमेर
अजमेर से 18 किमी पूर्वोत्तर दिशा में अजमेर जयपुर रोड पर स्थित यह बावड़ी भीकाजी की बावड़ी के नाम से जानी जाती है। इसमें संगमरमर पर हिजरी 1024 (1615 ई.) का फारसी लेख उत्कीर्ण है। अभिलेख फलक पर उकडू बैठा हुआ हाथी, अंकुश एवं त्रिशूल बना है। पुरातात्विक महत्व की इस बावड़ी में पानी तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हैं।
ओसियां बावड़ी, जोधपुर(ग्रामीण)
ओसियां बावड़ी जोधपुर से 65 किमी की दूरी पर स्थित है, इसमें एक तरफ मंदिरों का समूह तथा दूसरी तरफ रेगिस्तान है। ओसियां में मां सच्चियाय का भव्य मंदिर बना हुआ है तथा यहां पूर्व में 108 मंदिर थे ओसियां बावड़ी देसी-विदेशी पर्यटकों को मंदिर एवं स्मारकों की स्थापत्य कला के कारण आकर्षित करती है।
वर्तमान में ओसियां में 18 स्मारक एवं दो बावड़ी स्थित हैं। मंदिरों में एक महावीर स्वामी का जैन व हिंदू मंदिर है। इनमें सूर्य मंदिर, हरिहर के 3 मंदिर, विष्णु जी के मंदिर, शीतला माता का मंदिर, शिव मंदिर, महावीर स्वामी का जैन मंदिर और सबसे विशाल सच्चियाय माता का मंदिर है।
जोधपुर की अन्य बावडियां :
1 | रघुनाथ बावड़ी | 1 | मंडोर बावड़ी |
2 | पांचवा मंजीषा बावड़ी | 13 | राम बावड़ी |
3 | व्यास जी की बावड़ी | 14 | खरबूजा बावड़ी |
4 | हाथी बावड़ी | 15 | धाय बावड़ी |
5 | ईदगाह बावड़ी | 16 | सुमन वोहरा की बावड़ी |
6 | नई सड़क बावड़ी | 17 | नैनसी बावड़ी |
7 | अनारा बावड़ी | 18 | राजाराम की बावड़ी |
8 | व्यास बावड़ी | 19 | चतानियां की बावड़ी |
9 | जालाप बावड़ी | 20 | शिव बावड़ी |
10 | गोररूंथा बावड़ी | 21 | नापर जी की बावड़ी |
11 | एक चट्टान बावड़ी | 22 | तापी बावड़ी |
राजस्थान की बावड़ियां : दूध बावड़ी, माउंट आबू
माउन्ड आबू में स्थित शक्ति पीठ ‘अधर देवी’ मंदिर की तलहटी में दूध बावड़ी स्थित है यह एक पवित्र कुआं और माउंट आबू के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। कुएं का पानी दूधिया रंग का होने के कारण इसका नाम दूध बावड़ी रखा गया। इस कुएं के पानी के रंग के साथ कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। एक ऐसी ही किंवदंती के अनुसार यह कुआं देवी-देवताओं के लिए दूध का स्रोत है। स्थानीय निवासियों द्वारा इस पानी को पवित्र माना जाता है। अनेक लोग इस कुएं को गायों की देवी कामधेनु का प्रतीक भी मानते हैं।
गड़सीसर सरोवर की बावड़ी, जैसलमेर
जैसलमेर में इस सरोवर का निर्माण सन् 1340 में रावल गड़सी के शासनकाल में करवाया गया था। इस कृत्रिम सरोवर का मुख्य प्रवेश द्वार ‘टीलों की पिरोल’ के रूप में विख्यात है।
मेड़तनी की बावड़ी, झुंझुनूं
मेड़तनी की बावड़ी झुंझुनूं में स्थित है। इसका निर्माण शार्दूल सिंह के मरणोपरांत उनकी पत्नी बख्त कंवर ने अपने पति की याद में पीपल चौक तथा मनसा देवी मंदिर के बीच करवाया था।
झुंझुनूं की अन्य बावडियां :
1 | खेतानों की बावड़ी | 4 | नवलगढ़ कस्बे की बावड़ी |
2 | तुलस्यानों की बावड़ी | 5 | चेतनदास की बावड़ी(लोहार्गल) |
3 | जीतमल का जोहड़ा |
बाटाडू की कुआं बावड़ी, बालोतरा
बालोतरा जिले की बायतु पंचायत समिति के ग्राम बाटाडू में आधुनिक संगमरमर से निर्मित यह कुआँ बावड़ी स्थित है। सन् 1947 में मारवाड़ क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ा। उस दौरान सिणधरी रावल गुलाबसिंह ने पीने का पानी उपलब्ध करने हेतु इसका निर्माण करवाया था। यह कुआं 60 फीट लंबा, 35 फीट चौड़ा, 6 फीट ऊंचा व 80 फीट गहरा है।
कुएं की उत्तर दिशा में एक बड़ा कुंड बना है, जिसकी गहराई 5 फीट है। इस कुंड के बीच में एक मकराना निर्मित पत्थर के स्टैंड के ऊपर बड़े आकार में संगमरमर की गरुड़ प्रतिमा बनी हुई है। जो कुएं का मुख्य आकर्षक है। इसके चारों ओर श्लोकों के साथ ही कई राजा-महाराजाओं और देवी-देवताओं की कला का वर्णन किया गया है।
खानिया की बावड़ी, जयपुर
खानिया की बावड़ी चूलगिरी जैन मंदिर के सामने घाट की गुणी आगरा रोड पर स्थित है, इसका निर्माण ज्येष्ठ माह एकादशी सम्वत 1899 में महाराजा जगत सिंह द्वारा शुद्ध पानी हेतु कराया गया था। चार मंजिली इस बॉडी में पानी का स्रोत पहाड़ी के गुप्त झरने हैं। इसमें एक शिव मंदिर भी बना हुआ है।
9 सितम्बर 2022 को इन्दिरा गांधी शहरी रोजगार गारन्टी योजना (IRGY-Urban) का शुभारम्भ इसी स्थान से हुआ था। इसी कार्य योजना के तहत इस बावड़ी की मरम्मत, रंगरोगन एवं डिसिल्टिंग का कार्य किया गया।
राजस्थान की बावड़ियां/ राजस्थान की बावड़ियां/राजस्थान की बावड़ियां / राजस्थान की बावड़ियां /राजस्थान की बावड़ियां