13 April 2024 RAS Mains Answer Writing

Click here to download the schedule – English Medium | Hindi Medium

Subject – भारतीय इतिहास

Topic – एशिया व अफ्रीका में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद | विश्व युद्धों का प्रभाव |

For English Medium – Click Here

भारतीय इतिहास PYQsClick Here

Click on the question to see the model answer. Submit your answers below and complete the 90-day challenge for RAS Mains Answer Writing

Q1. 19वीं सदी के अंत में बर्लिन सम्मेलन के प्रमुख उद्देश्य और परिणाम क्या थे?(2M)

उद्देश्य: उस समय के प्रमुख यूरोपीय शक्तियों द्वारा आयोजित किया गया था ताकि अफ्रीकी क्षेत्रों के अधिग्रहण के लिए मार्गदर्शिका निर्धारित की जा सके, जिसका उद्देश्य संभावित संघर्षों और टकरावों से बचना था।

प्रतिभागी: भाग लेने वाले देश ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम, पुर्तगाल और इटली थे। हालाँकि, कोई अफ्रीकी प्रतिनिधित्व नहीं था।

प्रभाव:

  1. बर्लिन के सामान्य अधिनियम को अफ़्रीका के विखंडन को औपचारिक रूप देने के आधार स्वरुप देखा जा सकता है।
  2. प्रभावी (वास्तविक) कब्जे के सिद्धांत के आधार पर अफ्रीका को प्रभाव क्षेत्रों में विभाजित किया गया: इसमें जातीय, सांस्कृतिक और भाषाई मतभेदों की उपेक्षा की गई, जिससे बाद में संघर्ष हुए।

Q2. 19वीं सदी में साम्राज्यवाद के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियों पर चर्चा करें।(5M)
  1. औद्योगिक क्रांति की माँगें: बढ़े हुए उत्पादन और पूंजीवादी उद्देश्यों ने देशों को नए बाज़ार और कच्चे माल की तलाश के लिए प्रेरित किया।
  2. परिवहन में सुधार: स्टीमशिप और रेलमार्गों ने तेजी से व्यापार और विजित क्षेत्रों के दोहन की सुविधा प्रदान की।
  3. चरम राष्ट्रवाद: अहंकार और सत्ता की आकांक्षाओं से प्रेरित तीव्र राष्ट्रवाद ने उपनिवेशों की होड़ को जन्म दिया।
  4. सभ्यता मिशन’ विचारधारा: सभ्यता को ‘पिछड़े’ लोगों तक लाने में विश्वास ने शाही विस्तार को उचित ठहराया।
  5. खोजकर्ताओं और मिशनरियों की भूमिका: उनकी रिपोर्टों और प्रयासों ने उपनिवेशीकरण का मार्ग प्रशस्त किया।
  6. एशिया और अफ्रीका में कमजोर शासन: औद्योगीकरण की कमी और कमजोर शासन ने इन क्षेत्रों को यूरोपीय विजय के प्रति संवेदनशील बना दिया।

Q3 प्रथम विश्व युद्ध ने वैश्विक राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था को कैसे आकार दिया?(10M)

प्रथम विश्व युद्ध, जिसे अक्सर “महान युद्ध” कहा जाता है, एक वैश्विक संघर्ष था जो 1914 से 1918 तक केंद्रीय शक्तियों बनाम सहयोगी सेनाओं के बीच हुआ था।

वैश्विक राजनीति पर प्रभाव:

  1. ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य का विघटन
  2. पूर्ण राजशाही का अंत: ऑस्ट्रिया, जर्मनी, तुर्की (ओटोमन साम्राज्य) और रूस में पूर्ण राजशाही का अंत हो गया, जो शासन संरचनाओं में एक परिवर्तनकारी बदलाव का प्रतीक है।
  3. आत्मनिर्णय के नारे को मजबूत बनाना:
    • आत्मनिर्णय के सिद्धांत को प्रमुखता मिली, जिससे चेकोस्लोवाकिया, लिथुआनिया और लातविया जैसे नवगठित राज्यों में लोकतंत्र का विकास हुआ। तुर्की में कमाल पाशा ने गणतांत्रिक सरकार की स्थापना की।
  4. नई विचारधाराओं का उदय:
    • समाजवाद: रूस में बोल्शेविक क्रांति से समाजवाद का उदय हुआ।
    • फासीवाद: मुसोलिनी के अधीन इटली में फासीवाद का उदय हुआ।
    • नाज़ीवाद: हिटलर के अधीन जर्मनी में नाज़ीवाद का उदय हुआ।
    • सैन्यवाद: जापान ने सैन्यवाद में वृद्धि का अनुभव किया।
  5. संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान का उदय:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने “लिबर्टी लोन प्रोग्राम” के तहत सहयोगियों को 10 बिलियन डॉलर से अधिक का ऋण देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • अमेरिकी सैन्य उद्योग फला-फूला और राष्ट्रपति विल्सन ने शांति सम्मेलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
  6. राष्ट्र संघ (एलओएन) की स्थापना: स्थायी शांति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
    • इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का गठन किया गया।
  7. पेरिस शांति सम्मेलन और शांति संधियाँ:
    • वुडरो विल्सन के 14 बिंदुओं पर आधारित शांति संधियाँ तैयार की गईं।
    • सिद्धांतों में स्वशासन, जातीय आधार पर राज्य पुनर्गठन और समग्र निरस्त्रीकरण शामिल थे।
    • जर्मनी के साथ वर्साय की संधि: वर्साय की संधि में जर्मन भूमि हानि, निरस्त्रीकरण, युद्ध क्षतिपूर्ति और कुख्यात युद्ध अपराध खंड को रेखांकित किया गया।
    • तुर्की और अन्य के साथ सेवर्स की संधि

प्रथम विश्व युद्ध का सामाजिक प्रभाव गहरा और दूरगामी था, जिसने व्यक्तियों और समाजों को कई स्तरों पर प्रभावित किया:

  1. हानि और दुःख:
    • युद्ध के परिणामस्वरूप लगभग 80 लाख लोगों की मृत्यु हो गई और 2 करोड़ से अधिक लोग घायल हो गए। मानवीय लागत की विशालता ने समुदायों को अत्यधिक दुःख से जूझने पर मजबूर कर दिया।
  2. विस्थापन और प्रवासन:
    • शांति सम्मेलनों ने भू-राजनीतिक मुद्दों को संबोधित किया लेकिन अल्पसंख्यक आबादी के लिए स्थायी समाधान प्रदान करने में विफल रहे। समाधान की इस कमी के कारण विस्थापित समुदायों में अलगाव और अनिश्चितता की भावनाएँ पैदा हुईं।
  3. जनसांख्यिकीय बदलाव:
    • युद्ध ने एक सामाजिक संकट पैदा कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि हुई, विशेषकर महिलाओं और बच्चों में। हालाँकि, यूरोप के पुनर्निर्माण ने आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं के लिए अवसर पैदा किए, जिससे उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ।
  4. यूरोपीय नस्लीय वर्चस्व का अंत:
    • युद्ध ने न केवल यूरोपीय लोगों के बीच, बल्कि अफ्रीकी, भारतीय और जापानी सैनिकों के बीच भी वीरता का प्रदर्शन किया, जिससे यूरोपीय नस्लीय श्रेष्ठता की धारणा को चुनौती मिली।
  5. वैचारिक चुनौतियाँ:
    • यूरोप अपनी सभ्यता के बारे में गहन प्रश्नों से जूझ रहा था। ओसवाल्ड स्पेंगलर की पुस्तक “द डिक्लाइन ऑफ द वेस्ट” ने यूरोपीय सभ्यता की वास्तविक प्रकृति के बारे में प्रश्न उठाए।
  6. नास्तिकता का उदय:
    • युद्ध ने लोगों में नास्तिकता और मोहभंग की भावना को बढ़ाने में योगदान दिया। दर्दनाक अनुभवों ने कई लोगों को जीवन में आशा और खुशी की पारंपरिक धारणाओं पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया।
  7. युद्ध अपराध और सामाजिक अनैतिकता:
    • युद्ध में अभूतपूर्व स्तर की क्रूरता देखी गई, जिससे युद्ध अपराधों को बढ़ावा मिला। इसके अतिरिक्त, संघर्ष के समग्र माहौल के कारण सामाजिक अनैतिकता में वृद्धि हुई, जिससे युद्ध-पूर्व नैतिक मानकों को और अधिक चुनौती मिली।

प्रथम विश्व युद्ध का आर्थिक प्रभाव गहरा और बहुआयामी था:

  1. विश्व अर्थव्यवस्था का बिखरना: युद्ध से लगभग 400 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ, जिससे वैश्विक आर्थिक परिदृश्य बाधित हो गया।
  2. युद्ध अर्थव्यवस्था का विकास: संघर्ष के दौरान, युद्ध अर्थव्यवस्था में बदलाव आया, जिसमें लौह और इस्पात क्षेत्रों में उछाल आया, जबकि अन्य उद्योगों को बंद होने का सामना करना पड़ा।
  3. व्यापार का विनाश: व्यापार पैटर्न में व्यवधान के कारण कम खरीदने और अधिक बेचने की प्रथा शुरू हुई। इस स्थिति ने सीमा शुल्क में वृद्धि को प्रेरित किया।
  4. व्यापार पैटर्न में बदलाव: यूरोप, जो पहले अफ्रीका और एशिया का निर्यातक था, अमेरिका और जापान से आयातक बन गया। यह बदलाव अहस्तक्षेप विचारों के प्रचार के साथ हुआ।
  5. यूरोप में गंभीर ऋण संकट: युद्ध के परिणामस्वरूप यूरोप में एक महत्वपूर्ण ऋण संकट उत्पन्न हो गया। इसे संबोधित करने के लिए, कागजी मुद्रा का विस्तार किया गया, जिससे विशेष रूप से जर्मनी में मुद्रास्फीति बढ़ गई। ब्रिटेन जैसे देशों ने स्वर्ण मानक को त्याग दिया।
  6. ऋणदाता-देनदार गतिशीलता में बदलाव: अमेरिका एक ऋणी देश से अपनी स्थिति उलट कर सबसे बड़े ऋणदाता के रूप में उभरा।
  7. समाजवादी तत्वों का उदय: श्रमिक कल्याण और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की स्थापना पर चर्चा के साथ समाजवादी तत्वों को प्रमुखता मिली।

उपनिवेशों के लिए स्वर्ण युग: युद्ध ने उपनिवेशों के लिए अवसर पैदा किए क्योंकि पूंजीपतियों ने इन क्षेत्रों में नए उद्योग शुरू किए।

Q4 निम्नांकित पंक्ति का भाव-विस्तार कीजिए : (शब्द सीमा : लगभग 100 शब्द)  [RAS Mains 2021]

‘हिंसा बुरी चीज़ है पर दासता उससे भी बुरी हैI’

 ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का मंत्र प्राचीनकाल से मिलता है। अपने हित-साधन के लिए दूसरे के अस्तित्त्व को समाप्त कर देना, यहाँ तक कि दूसरे को दुःख पहुँचाना बुरा कार्य है। वास्तव में हिंसा मनुष्य को पशु के समान बना देती है और व्यक्ति में प्रेम तथा स्नेह की भावना समाप्त हो जाती है। निस्संदेह हिंसा बुरी चीज़ है, लेकिन दासता उससे भी अधिक बुरी है। मनुष्य विवेकशील प्राणी है और दासता की बेड़ियों में नहीं बंध सकता। यदि किसी को विवशता के कारण दास बनकर रहना पड़ता है, तो वह जीवन मृत्यु के समान है।  इसलिए कहा गया है ‘पराधीन सपने हुँ सुख नाहीं’।                                      
                                                          जीवित होते हुए मुर्दे की भाँति जीना भी हिंसा से कम नहीं है। दासता से मनुष्य का मानसिक विकास नहीं हो पाता। अतः विचारकों ने यह भी कहा कि गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए यदि अहिंसा का मार्ग भी छोड़ना पड़े, तो वह बुरी बात नहीं होगी। दासता को अंगीकार कर लेने में तो स्वतंत्रता का प्राकृतिक अधिकार छिन जाता है। तब हम अपने विकास की संभावनाओं का, आज़ाद होकर नए-नए कार्य करने की सृजनशीलता का गला घोंट देते हैं। फिर हमारे पास उस मनुष्यता के लिए बचता ही क्या है, जो स्वतंत्र रहकर ही नवनिर्माण करते रहना चाहती है। संस्कृत में भी कहा गया है- जीवनात्तु पराधीनाज्जीवानां मरणं वरम्‌ अर्थात्‌ पराधीन जीवन से तो मरना अच्छा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गाँधी जी के नेतृत्व में अनेक बार ऐसे विवाद खड़े हुए कि अंग्रेजों के साथ हिंसात्मक व्यवहार से पेश आया जाए या उनकी-गुलामी स्वीकार कर ली जाए । ऐसे में, अहिंसा को मानवता की सबसे बड़ी ताकत माना किंतु स्वतंत्रता को सर्वोपरि माना गया। महात्मा गांधी ने कहा था कि -“अहिंसा कायरता की आड़ नहीं है, वीर व्यक्ति का सर्वोच्च गुण है।” 

गाँधी जी ने भी अनेक बार इसी तरह का मत दिया कि कायरता को स्वीकार करने के स्थान पर तो तलवार उठाना बेहतर है। गाँधी जी ने हिंसा और अहिंसा में अहिंसा का वर्णन किया किंतु हिंसा और गुलामी में से तो हिंसा अपनाकर भी आज़ादी प्राप्त करने को बेहतर माना। 

                                                               अत: हिंसा अपने आप में श्रेयस्कर नहीं है किंतु दासता को स्वीकार करने का अर्थ हैं- शासक की तमाम तरह की हिंसाओं को हमेशा के लिए स्वीकार करना और हार मान लेना , जो हिंसा से भी बुरा है।

हिंसा कलंक इंसान पर, मिटे न इसका दाग;

दासता मरण इंसान का, कभी फले ना बाग

error: © RajRAS